- हरिवंश राय बच्चन की कविताएं | Harivansh Rai Bachchan Poems In Hindi
हरिवंश राय बच्चन की कविताएं
Harivansh Rai Bachchan Poems
अग्निपथ कविता
वृक्ष हों भले खड़े,
हों घने हों बड़े,
एक पत्र छाँह भी,
माँग मत, माँग मत, माँग मत,
अग्निपथ अग्निपथ अग्निपथ।
तू न थकेगा कभी, तू न रुकेगा कभी,
तू न मुड़ेगा कभी,
कर शपथ, कर शपथ, कर शपथ,
अग्निपथ अग्निपथ अग्निपथ।
यह महान दृश्य है,
चल रहा मनुष्य है,
अश्रु श्वेत रक्त से,
लथपथ लथपथ लथपथ,
अग्निपथ अग्निपथ अग्निपथ।
हरिवंश राय बच्चन की कविताएं
Inspirational Harivansh Rai Bachchan Poems
हिम्मत करने वालों की कभी हार नहीं होती
लहरों से डरकर नौका पार नहीं होती
हिम्मत करने वालों की कभी हार नहीं होती
नन्ही चींटीं जब दाना लेकर चढ़ती है
चढ़ती दीवारों पर सौ बार फ़िसलती है
मन का विश्वास रगों में साहस भरता है
चढ़कर गिरना, गिरकर चढ़ना, ना अखरता है
मेहनत उसकी बेकार हर बार नहीं होती
हिम्मत करने वालों की कभी हार नहीं होती।
डुबकियां सिंधु में गोताखोर लगाता है
जा जा कर ख़ाली हाथ लौटकर आता है
मिलते ना सहज ही मोती गहरे पानी मे
बढ़ता दूना विश्वास इसी हैरानी में
मुट्ठी उसकी ख़ाली हर बार नहीं होती
हिम्मत करने वालों की कभी हार नहीं होती।
असफलता एक चुनौती हैं स्वीकार करो
क्या कमी रह गयी, देखो और सुधार करो
जब तक ना सफल हो नींद-चैन को त्यागो तुम
संघर्षों का मैदान छोड़ मत भागो तुम
कुछ किये बिना ही जयजयकार नहीं होती
हिम्मत करने वालों की कभी हार नहीं होती।
हरिवंश राय बच्चन की कविताएं
Positive Harivansh Rai Bachchan Poems
जो बीत गई सो बात गई
जीवन में एक सितारा था
माना वह बेहद प्यारा था
वह डूब गया तो डूब गया
अंबर के आंगन को देखो
कितने इसके तारे टूटे
कितने इसके प्यारे छूटे
जो छूट गए फिर कहाँ मिले
पर बोलो टूटे तारों पर
कब अंबर शोक मनाता है
जो बीत गई सो बात गई
जीवन में वह था एक कुसुम
थे उस पर नित्य निछावर तुम
वह सूख गया तो सूख गया
मधुबन की छाती को देखो
सूखीं कितनी इसकी कलियाँ
मुरझाईं कितनी वल्लरियाँ
जो मुरझाईं फिर कहाँ खिलीं
पर बोलो सूखे फूलों पर
कब मधुबन शोर मचाता है
जो बीत गई सो बात गई
जीवन में मधु का प्याला था
तुमने तन मन दे डाला था
वह टूट गया तो टूट गया
मदिरालय का आँगन देखो
कितने प्याले हिल जाते हैं
गिर मिट्टी में मिल जाते हैं
जो गिरते हैं कब उठते हैं
पर बोलो टूटे प्यालों पर
कब मदिरालय पछताता है
जो बीत गई सो बात गई
मृदु मिट्टी के बने हुए
मधु घट फूटा ही करते हैं
लघु जीवन ले कर आए हैं
प्याले टूटा ही करते हैं
फ़िर भी मदिरालय के अन्दर
मधु के घट हैं, मधु प्याले हैं
जो मादकता के मारे हैं
वे मधु लूटा ही करते हैं
वह कच्चा पीने वाला है
जिसकी ममता घट प्यालों पर
जो सच्चे मधु से जला हुआ
कब रोता है चिल्लाता है
जो बीत गई सो बात गई
हरिवंश राय बच्चन की कविताएं
Harivansh Rai Bachchan Famous poems
नीड़ का निर्माण
नीड़ का निर्माण फिर-फिर,
नेह का आह्णान फिर-फिर।
वह उठी आँधी कि नभ में
छा गया सहसा अँधेरा,
धूलि धूसर बादलों ने
भूमि को इस भाँति घेरा,
रात-सा दिन हो गया, फिर
रात आई और काली,
लग रहा था अब न होगा
इस निशा का फिर सवेरा,
रात के उत्पात-भय से
भीत जन-जन, भीत कण-कण
किंतु प्राची से उषा की
मोहिनी मुस्कान फिर-फिर
नीड़ का निर्माण फिर-फिर,
नेह का आह्णान फिर-फिर।
वह चले झोंके कि काँपे
भीम कायावान भूधर,
जड़ समेत उखड़-पुखड़कर
गिर पड़े, टूटे विटप वर,
हाय, तिनकों से विनिर्मित
घोंसलो पर क्या न बीती,
डगमगाए जबकि कंकड़,
ईंट, पत्थर के महल-घर
बोल आशा के विहंगम,
किस जगह पर तू छिपा था,
जो गगन पर चढ़ उठाता
गर्व से निज तान फिर-फिर
नीड़ का निर्माण फिर-फिर,
नेह का आह्णान फिर-फिर।
क्रुद्ध नभ के वज्र दंतों
में उषा है मुसकराती,
घोर गर्जनमय गगन के
कंठ में खग पंक्ति गाती;
एक चिड़िया चोंच में तिनका
लिए जो जा रही है,
वह सहज में ही पवन
उंचास को नीचा दिखाती
नाश के दुख से कभी
दबता नहीं निर्माण का सुख
प्रलय की निस्तब्धता से
सृष्टि का नव गान फिर-फिर
नीड़ का निर्माण फिर-फिर,
नेह का आह्णान फिर-फिर।
हरिवंश राय बच्चन की कविताएं
Harivansh Rai Bachchan Poems
साथी, सब कुछ सहना होगा
साथी, सब कुछ सहना होगा।
मानव पर जगती का शासन,
जगती पर संसृति का बंधन,
संसृति को भी और किसी के प्रतिबंधो में रहना होगा।
साथी, सब कुछ सहना होगा।
हम क्या हैं जगती के सर में।
जगती क्या, संसृति सागर में।
एक प्रबल धारा में हमको लघु तिनके-सा बहना होगा।
साथी, सब कुछ सहना होगा।
आओ, अपनी लघुता जानें,
अपनी निर्बलता पहचानें,
जैसे जग रहता आया है उसी तरह से रहना होगा।
साथी, सब कुछ सहना होगा।
हरिवंश राय बच्चन की कविताएं
Harivansh Rai Bachchan Poems In Hindi On Life
जीवन पर कविता
मैंने भी जीवन देखा है।
अखिल विश्व था आलिंगन में,
था समस्त जीवन चुम्बन में।
युग कर पाए माप न जिसकी,
मैंने ऐसा क्षण देखा है,
मैंने भी जीवन देखा है।
सिंधु जहाँ था, मरु सोता है।
अचरज क्या मुझको होता है?
अतुल प्यार का अतुल
घृणा में मैंने परिवर्तन देखा है।
मैंने भी जीवन देखा है।
प्रिय सब कुछ खोकर जीता हूँ,
चिर अभाव का मधु पीता हूँ,
यौवन रँगरलियों से प्यारा मैंने सूनापन देखा है।
मैंने भी जीवन देखा है।
हरिवंश राय बच्चन की कविताएं
Harivansh Rai Bachchan Poems In Hindi
यात्रा और यात्री
साँस चलती है तुझे
चलना पड़ेगा ही मुसाफिर।
चल रहा है तारकों का
दल गगन में गीत गाता,
चल रहा आकाश भी है
शून्य में भ्रमता-भ्रमाता,
पाँव के नीचे पड़ी
अचला नहीं, यह चंचला है,
एक कण भी, एक क्षण भी
एक थल पर टिक न पाता,
शक्तियाँ गति की तुझे
सब ओर से घेरे हुए है;
स्थान से अपने तुझे
टलना पड़ेगा ही, मुसाफिर।
साँस चलती है तुझे
चलना पड़ेगा ही मुसाफिर।
थे जहाँ पर गर्त पैरों
को ज़माना ही पड़ा था,
पत्थरों से पाँव के
छाले छिलाना ही पड़ा था,
घास मखमल-सी जहाँ थी
मन गया था लोट सहसा,
थी घनी छाया जहाँ पर
तन जुड़ाना ही पड़ा था,
पग परीक्षा, पग प्रलोभन
ज़ोर-कमज़ोरी भरा तू
इस तरफ डटना उधर
ढलना पड़ेगा ही, मुसाफिर।
साँस चलती है तुझे
चलना पड़ेगा ही मुसाफिर।
शूल कुछ ऐसे, पगो में
चेतना की स्फूर्ति भरते,
तेज़ चलने को विवश
करते, हमेशा जबकि गड़ते,
शुक्रिया उनका कि वे
पथ को रहे प्रेरक बनाए,
किन्तु कुछ ऐसे कि रुकने
के लिए मजबूर करते,
और जो उत्साह का
देते कलेजा चीर, ऐसे
कंटकों का दल तुझे
दलना पड़ेगा ही, मुसाफिर।
साँस चलती है तुझे
चलना पड़ेगा ही मुसाफिर।
सूर्य ने हँसना भुलाया,
चंद्रमा ने मुस्कुराना,
और भूली यामिनी भी
तारिकाओं को जगाना,
एक झोंके ने बुझाया
हाथ का भी दीप लेकिन
मत बना इसको पथिक तू
बैठ जाने का बहाना,
एक कोने में हृदय के
आग तेरे जग रही है,
देखने को मग तुझे
जलना पड़ेगा ही, मुसाफिर।
साँस चलती है तुझे
चलना पड़ेगा ही मुसाफिर।
वह कठिन पथ और कब
उसकी मुसीबत भूलती है,
साँस उसकी याद करके
भी अभी तक फूलती है;
यह मनुज की वीरता है
या कि उसकी बेहयाई,
साथ ही आशा सुखों का
स्वप्न लेकर झूलती है
सत्य सुधियाँ, झूठ शायद
स्वप्न, पर चलना अगर है,
झूठ से सच को तुझे
छलना पड़ेगा ही, मुसाफिर।
साँस चलती है तुझे
चलना पड़ेगा ही मुसाफिर।
हरिवंशराय बच्चन
Harivansh Rai Bachchan Poems In Hindi
अँधेरे का दीपक
है अँधेरी रात पर
दीवा जलाना कब मना है?
कल्पना के हाथ से कमनीय
जो मंदिर बना था,
भावना के हाथ ने जिसमें
वितानों को तना था,
स्वप्न ने अपने करों से
था जिसे रुचि से सँवारा
स्वर्ग के दुष्प्राप्य रंगों से,
रसों से जो सना था,
ढह गया वह तो जुटाकर
ईंट, पत्थर, कंकड़ों को
एक अपनी शांति की
कुटिया बनाना कब मना है?
है अँधेरी रात पर।
दीवा जलाना कब मन है?
बादलों के अश्रु से धोया
गया नभ-नील नीलम
का बनाया था गया मधु-
पात्र मनमोहक, मनोरम
प्रथम ऊषा की किरण की
लालिमा-सी लाल मदिरा
थी उसी में चमचमाती
नव घनों में चंचला सम,
वह अगर टूटा मिलाकर
हाथ की दोनों हथेली,
एक निर्मल स्रोत से
तृष्णा बुझाना कब मना है?
है अँधेरी रात पर।
दीवा जलाना कब मना है?
क्या घड़ी थी, एक भी
चिंता नहीं थी पास आई,
कालिमा तो दूर, छाया
भी पलक पर थी न छाई,
आँख से मस्ती झपकती,
बात से मस्ती टपकती,
थी हँसी ऐसी जिसे सुन
बादलों ने शर्म खाई,
वह गई तो ले गई
उल्लास के आधार, माना,
पर अथिरता पर समय की
मुसकराना कब मना है?
है अँधेरी रात पर।
दीवा जलाना कब मना है?
हरिवंश राय बच्चन जी की कविताएं
Harivansh Rai Bachchan Poetry In Hindi
चल मरदाने
चल मरदाने, सीना ताने,
हाथ हिलाते, पांव बढाते,
मन मुस्काते, गाते गीत ।
एक हमारा देश, हमारा
वेश, हमारी कौम, हमारी
मंज़िल, हम किससे भयभीत ।
चल मरदाने, सीना ताने,
हाथ हिलाते, पांव बढाते,
मन मुस्काते, गाते गीत ।
हम भारत की अमर जवानी,
सागर की लहरें लासानी,
गंग-जमुन के निर्मल पानी,
हिमगिरि की ऊंची पेशानी
सबके प्रेरक, रक्षक, मीत ।
चल मरदाने, सीना ताने,
हाथ हिलाते, पांव बढाते,
मन मुस्काते, गाते गीत ।
जग के पथ पर जो न रुकेगा,
जो न झुकेगा, जो न मुडेगा,
उसका जीवन, उसकी जीत ।
चल मरदाने, सीना ताने,
हाथ हिलाते, पांव बढाते,
मन मुस्काते, गाते गीत ।
हरिवंश राय बच्चन की कविताएं
Harivansh Rai Bachchan Poetry In Hindi
क्या करूं संवेदना लेकर तुम्हारी
क्या करूँ संवेदना लेकर तुम्हारी?
क्या करूँ?
मैं दुखी जब-जब हुआ
संवेदना तुमने दिखाई,
मैं कृतज्ञ हुआ हमेशा,
रीति दोनो ने निभाई,
किन्तु इस आभार का अब
हो उठा है बोझ भारी।
क्या करूँ संवेदना लेकर तुम्हारी?
क्या करूँ?
एक भी उच्छ्वास मेरा
हो सका किस दिन तुम्हारा?
उस नयन से बह सकी कब
इस नयन की अश्रु-धारा?
सत्य को मूंदे रहेगी
शब्द की कब तक पिटारी?
क्या करूँ संवेदना लेकर तुम्हारी?
क्या करूँ?
कौन है जो दूसरों को
दु:ख अपना दे सकेगा?
कौन है जो दूसरे से
दु:ख उसका ले सकेगा?
क्यों हमारे बीच धोखे
का रहे व्यापार जारी?
क्या करूँ संवेदना लेकर तुम्हारी?
क्या करूँ?
क्यों न हम लें मान, हम हैं
चल रहे ऐसी डगर पर,
हर पथिक जिस पर अकेला,
दुख नहीं बँटते परस्पर,
दूसरों की वेदना में
वेदना जो है दिखाता,
वेदना से मुक्ति का निज
हर्ष केवल वह छिपाता;
तुम दुखी हो तो सुखी मैं
विश्व का अभिशाप भारी।
क्या करूँ संवेदना लेकर तुम्हारी?
क्या करूँ?
Childhood Poems By Harivansh Rai Bachchan in Hindi
बचपन पर कविता
सूरज ढल कर पच्छिम पंहुचा,
डूबा, संध्या आई, छाई,
सौ संध्या सी वह संध्या थी,
क्यों उठते-उठते सोचा था
दिन में होगी कुछ बात नई
लो दिन बीता, लो रात गई
धीमे-धीमे तारे निकले,
धीरे-धीरे नभ में फैले,
सौ रजनी सी वह रजनी थी,
क्यों संध्या को यह सोचा था,
निशि में होगी कुछ बात नई,
लो दिन बीता, लो रात गई
चिडियाँ चहकी, कलियाँ महकी,
पूरब से फिर सूरज निकला,
जैसे होती थी, सुबह हुई,
क्यों सोते सोते सोचा था,
होगी प्रात: कुछ बात नई,
लो दिन बीता, लो रात गई
मैंने मान ली तब हार
Famous Harivansh Rai Bachchan Poems
पूर्ण कर विश्वास जिसपर,
हाथ मैं जिसका पकड़कर,
था चला, जब शत्रु बन बैठा हृदय का गीत,
मैंने मान ली तब हार
विश्व ने बातें चतुर कर,
चित्त जब उसका लिया हर,
मैं रिझा जिसको न पाया गा सरल मधुगीत,
मैंने मान ली तब हार
विश्व ने कंचन दिखाकर
कर लिया अधिकार उसपर,
मैं जिसे निज प्राण देकर भी न पाया जीत,
मैंने मान ली तब हार
देश भक्ति पर कविता
Harivansh Rai Bachchan Poems on Deshbhakt Hindi
हम ऐसे आज़ाद हमारा झंडा है बादल
चांदी सोने हीरे-मोती से सजती गुडियाँ
इनसे आतंकित करने की बीत गई घड़ियाँ
इनसे सज धज बैठा करते जो हैं कठपुतले
हमने तोड़ अभी फेंकी है बेडी हथकड़ियाँ।
परंपरा गत पुरखों की हमने जाग्रत की फिर से
उठा शीश पर रक्खा हमने हिम किरीट उज्जवल
हम ऐसे आज़ाद हमारा झंडा है बादल।
चांदी-सोने-हीरे-मोती से सजवा छाते
जो अपने सिर धरवाते थे वे अब शरमाते
फूलकली बरसाने वाली टूट गई दुनिया
बच्चों के वाहन अंबर में निर्भय घहराते।
इंद्रायुध भी एक बार जो हिम्मत से ओटे
छत्र हमारा निर्मित करते साठ कोटि करतल
हम ऐसे आजाद हमारा झंडा है बादल।
Harivansh Rai Bachchan Poem on Friendship in Hindi
दोस्ती पर कविता
साथी सो न कर कुछ बात
पूर्ण कर दे वह कहानी,
जो शुरू की थी सुनानी,
आदि जिसका हर निशा में,
अन्त चिर अज्ञात साथी सो न कर कुछ बात।
बात करते सो गया तू,
स्वप्न में फिर खो गया तू,
रह गया मैं और
आधी रात आधी बात
साथी सो न कर कुछ बात।
हरिवंश राय बच्चन की कविताएं
Harivansh Rai Bachchan Poems in Hindi
मधुबाला
मैं मधुबाला मधुशाला की,
मैं मधुशाला की मधुबाला।
मैं मधु-विक्रेता को प्यारी,
मधु के धट मुझपर बलिहारी,
प्यालों की मैं सुषमा सारी,
मेरा रुख देखा करती है
मधु-प्यासे नयनों की माला।
मैं मधुशाला की मधुबाला।
इस नीले अंचल की छाया
में जग-ज्वाला का झुलसाया
आकर शीतल करता काया,
मधु-मरहम का मैं लेपन कर
अच्छा करती उर का छाला।
मैं मधुशाला की मधुबाला।
मधुघट ले जब करती नर्तन,
मेरे नूपुर के छम-छनन
में लय होता जग का क्रंदन,
झूमा करता मानव जीवन
का क्षण-क्षण बनकर मतवाला।
मैं मधुशाला की मधुबाला।
मैं इस आँगन की आकर्षण,
मधु से सिंचित मेरी चितवन,
मेरी वाणी में मधु के कण,
मदमत्त बनाया मैं करती,
यश लूटा करती मधुशाला।
मैं मधुशाला की मधुबाला।
था एक समय, थी मधुशाला,
था मिट्टी का घट, था प्याला,
थी, किन्तु, नहीं साकीबाला,
था बैठा ठाला विक्रेता
दे बंद कपाटों पर ताला।
मैं मधुशाला की मधुबाला।
तब इस घर में था तम छाया,
था भय छाया, था भ्रम छाया,
था मातम छाया, गम छाया,
ऊषा का दीप लिए सर पर,
मैं आई करती उजियाला।
मैं मधुशाला की मधुबाला।
सोने की मधुशाना चमकी,
माणित द्युति से मदिरा दमकी,
मधुगंध दिशाओं में चमकी,
चल पड़ा लिए कर में प्याला
प्रत्येक सुरा पीनेवाला।
मैं मधुशाला की मधुबाला।
थे मदिरा के मृत-मूक घड़े,
थे मूर्ति सदृश मधुपात्र खड़े,
थे जड़वत् प्याले भूमि पड़े,
जादू के हाथों से छूकर
मैंने इनमें जीवन डाला।
मैं मधुशाला की मधुबाला।
मुझको छूकर मधुघट छलके,
प्याले मधु पीने को ललके ,
मालिक जागा मलकर पलकें,
अँगड़ाई लेकर उठ बैठी
चिर सुप्त विमूर्च्छित मधुशाला।
मैं मधुशाला की मधुबाला।
प्यासे आए, मैंने आँका,
वातायन से मैंने झाँका,
पीनेवालों का दल बाँका,
उत्कंठित स्वर से बोल उठा,
‘कर दे पागल, भर दे प्याला!’
मैं मधुशाला की मधुबाला।
खुल द्वार गए मदिरालय के,
नारे लगते मेरी जय के,
मिट चिह्न गए चिंता भय के,
हर ओर मचा है शोर यही,
‘ला-ला मदिरा ला-ला’।
मैं मधुशाला की मधुबाला।
हर एक तृप्ति का दास यहाँ,
पर एक बात है खास यहाँ,
पीने से बढ़ती प्यास यहाँ,
सौभाग्य मगर मेरा देखो,
देने से बढ़ती है हाला।
मैं मधुशाला की मधुबाला।
चाहे जितना मैं दूँ हाला,
चाहे जितना तू पी प्याला,
चाहे जितना बन मतवाला,
सुन, भेद बताती हूँ अन्तिम,
यह शांत नही होगी ज्वाला।
मैं मधुशाला की मधुबाला।
मधु कौन यहाँ पीने आता,
है किसका प्यालों से नाता,
जग देख मुझे है मदमाता,
जिसके चिर तंद्रिल नयनों पर
तनती मैं स्वप्नों का जाला।
मैं मधुशाला की मधुबाला।
यह स्वप्न-विनिर्मित मधुशाला,
यह स्वप्न रचित मधु का प्याला,
स्वप्निल तृष्णा, स्वप्निल हाला,
स्वप्नों की दुनिया में भूला
फिरता मानव भोलाभाला।
मैं मधुशाला की मधुबाला।
छोटी कविता इन हिन्दी | Harivansh Rai Bachchan Short/Short Poem in Hindi
मैंने खेल किया जीवन से !
सत्य भवन में मेरे आया,
पर मैं उसको देख न पाया,
दूर न कर पाया मैं, साथी,
सपनों का उन्माद नयन से!
मैंने खेल किया जीवन से !
मिलता था बेमोल मुझे सुख,
पर मैंने उससे फेरा मुख,
मैं खरीद बैठा पीड़ा को यौवन के चिर संचित धन से !
मैंने खेल किया जीवन से !
थे बैठे भगवान हृदय में,
देर हुई मुझको निर्णय में,
उन्हें देवता समझा जो थे कुछ भी अधिक नहीं पाहन से !
मैंने खेल किया जीवन से !
हरिवंश राय बच्चन जी कविता
famous harivansh rai bachchan poems
दिन जल्दी-जल्दी ढलता है
हो जाय न पथ में रात कहीं,
मंजिल भी तो है दूर नहीं –
यह सोच थका दिन का पंथी भी जल्दी-जल्दी चलता है!
दिन जल्दी-जल्दी ढलता है!
बच्चे प्रत्याशा में होंगे,
नीड़ों से झाँक रहे होंगे –
यह ध्यान परों में चिड़ियों के भरता कितनी चंचलता है!
दिन जल्दी-जल्दी ढलता है!
मुझसे मिलने को कौन विकल?
मैं होऊँ किसके हित चंचल? –
यह प्रश्न शिथिल करता पद को, भरता उर में विह्वलता है!
दिन जल्दी-जल्दी ढलता है!
प्यार पर कविता
Poem on Love By Harivansh Rai Bachchan Hindi
आदर्श प्रेम
प्यार किसी को करवा लेकिन
कह कर उसे बताना क्या
अपने को अर्पण करना पर
और को अपनाना क्या।
गुण का ग्राहक बनना लेकिन
गा कर उसे सुनाना क्या
मन के कल्पित भावों से
औरों को भ्रम में लाना क्या।
ले लेना सुगंध सुमनों की
तोड़ उन्हें मुरझाना क्या
प्रेम हार पहनावा लेकिन
प्रेम पाश फैलाना क्या।
त्याग अंक में पत्ने प्रेम शिशु
उनमें स्वार्थ बताना क्या
दे कर हृदय हृदय पाने की
आशा व्यर्थ लगाना क्या।
उम्मीद है कि आपको [27+ प्रसिद्ध] हरिवंश राय बच्चन की कविताएं ( Harivansh Rai Bachchan Poems In Hindi, Harivansh Rai Bachchan Poetry In Hindi ) पसंद आयी होंगी। हिन्दी साहित्य जगत के महान लेखक हरिवंश राय बच्चन जी की कविताएं पढ़ने के लिए आपका धन्यवाद करता हूं।