Poem On Village In Hindi :- आज के पोस्ट में गांव पर सुंदर कविता आपके साथ साझा किया गया है। और यह कविता पसंद आएं तो दोस्तों के साथ अवश्य साझा करें।
बिना गाँव के कहाँ गुजारा
Poem On Village
नदियाँ, पर्वत, झरने सुंदर,
ऐसा गाँव हमारा है।
इसे बचाएँगे मिल करके,
अपना अब ये नारा है।
जो गाँवों के रहवासी हैं,
उनको अनपढ़ मत समझो।
ये हीरे हैं सुन्दर इनको,
पत्थर अनगढ़ मत समझो।
भारत बसता है गाँवों में,
इसके बिन क्या चारा है?
इसे बचाएँगे मिल करके,
अपना अब ये नारा है।
पहले लूटा अंग्रेजों ने,
अब अपने ही लूट रहे।
कैसा है अधिकार,
लूट की खुल्ल्मखुल्ली छूट रहे।
आज गाँव का मालिक ही क्यों
अब लगता बेचारा है।
इसे बचाएँगे मिल करके,
अपना अब ये नारा है।
हम विकास की ओर बढ़ रहे,
मगर तनिक यह ध्यान रहे।
हर हालत में बचा रहे और
विकसित हिन्दुस्तान रहे।
नदी, गाँव, वन-उपवन सुन्दर,
इनका क्यों बँटवारा है?
इसे बचाएँगे मिल करके,
अपना अब ये नारा है।
स्वार्थ में पड़ कर हम अपनी,
धरा कभी न बेचेंगे।
इसको उन्नत कर देंगे हम,
भले खून से सींचेंगे।
सच बोलें तो बिना गाँव के,
अपना कहाँ गुजारा है।
इसे बचाएँगे मिल करके,
अपना अब ये नारा है।।
-गिरीश पंकज
मेरा गाँव
Poem On Village In Hindi
मेरा गांव बड़ा है प्यारा,
हरे भरे हैं, खेत सलोने।
बाग बगीचे कोने कोने,
मिलती ताज़ी सब्जी, फल।
कुओं में रहता ठंडा जल,
गन्ने रस गुड़ चने का साग।
खाते सब जन गाते, फाग,
संध्या बेला पशु घर आते।
गलियारों में, धूल उड़ाते,
खेलों की भी रहती धूम।
गुल्ली डंडा लंभा चूम,
गांव किनारे पगडंडी पर।
छोटा सा स्कूल हमारा,
मेरा गांव बड़ा, है प्यारा।
-इश्तियाक
गाँव
Poem On Village in hindi
हरे-भरे हैं खेत जहाँ पर,
ऊँचे-ऊँचे वन हैं।
सौंधी धरती महक बिखेरे,
स्वच्छ सलौने तन हैं।
ईर्ष्या, द्वेष, वैर भावना,
जिनको बस दुश्मन हैं।
मिट्टी लिपटे पुते भवनों में,
सोने जैसा मन हैं।
तिलहन, अरहर, मूंग, चने से,
लद-लद खिलती दालें।
गोधूलि में स्वर्ग सलौनी,
खिल उठती चौपालें।
सेंमल, पैंयां, जै, फ्योंली हो,
हो बुरांस या सरसों।
बचपन के दिन नहीं भूलते,
बीते कितने बरसों।
सुन्दर, स्वच्छ हवा उपवन की,
पानी अमृत जैसा।
स्वर्ग सरीका गाँव मिले ना,
कितना खर्चों पैसा।
नहीं प्रदूषण मन-जीवन में,
और न द्वेष ही मन में।
सभी सुखी, निर्भय हो विचरें,
अपने इस जीवन में।
सीधे-सादे लोग यहाँ के,
मन है चांदी जैसा।
जब मानव का खून एक है,
तो फिर अंतर कैसा?
अतिथि जहाँ का देवतुल्य है,
नाता अपनेपन का।
सभी कुटुंब से एक रहें हम,
ध्येय यही जीवन का।
-डॉ. दिनेश चमोला
गाँव
Poem On Village In Hindi
सभ्यता संस्कृति और परम्परा,
अपनापन स्नेह है प्यार बड़ा।
मिल-जुलकर रहना एक साथ,
नहीं शिकवा गिला टिकता यहाँ।
शांति शालीनता और व्यवहार,
प्यार अपनापन और लगाव।
यहाँ कद्र होती सदा रिश्तों की,
अपने बेगाने में दूरी नहीं होती।
मिल-जुलकर भेदभाव मिटाकर,
आपस में भाईचारा निभाकर।
एकदूजे का हाथ बटाते सदा,
साथ निभातें मुसीबत में सब।
जब कानों में आहट मिल जाती,
सब भेदभाव मन के मिट जाती।
दौड़े आते सब अपना बन,
साथ देते मुश्किल में हर कदम।
पर्व त्यौहार विवाह संस्कार,
शुभ कार्य में भागीदारी निभा।
गले लगाते खुशियाँ मनाते,
मानवता का सब परिचय देते।
खुला आसमान खुला दरवाजा,
प्रकृति की मिलती सदा ही हवा।
हरियाली ही हरियाली होती,
खुशनुमा सा जिन्दगी होती हमारी।
शोर शराबा प्रदुषण से दूर,
शहर के चाँकाचौंध भीड़ से दूरर्श।
मिलती हमें यहाँ मानवता की शिक्षा,
बहुत प्यारा होता यह गाँव हमारा।
-अंजली रॉय
गाँव
Poem On Village In Hindi
शहरों-सा झुलस रहा है अब गाँव,
पीपल रहा न चौक में,
मिट गई ठंडी छाँव।
जल-जंगल सभी हो गये यहाँ लापता,
कंक्रीट के जंगलों ने पसारा चहुंओर पाँव,
शहरों-सा झुलस रहा है अब गाँव।
ताल-तलैया, नदी-पोखर, कुएँ सब सूखे,
मानव बनकर दानव खेल रहा स्वार्थ के दाँव,
शहरों-सा झुलस रहा है अब गाँव।
कोख हुई धरती की बंजर देखो आज,
हर जीव भटक रहा, मिले न किसी को ठाँव,
शहरों-सा झुलस रहा है अब गाँव।
पेड़-पौधों को काट रौंद दी सारी प्रकृति,
डूब जाएगी आने वाली नवपीढ़ी की नाव,
शहरों-सा झुलस रहा है अब गाँव।
साथी! अगर धरती बचानी है अपनी तो,
प्रकृति प्रेम की और बढ़ाओ अब पाँव,
शहरों-सा झुलस रहा है अब गाँव।
-मुकेश कुमार
गाँव
Poem On Village In Hindi
मैंने सपने में अपने आप को गाँव में पाया।
टूटे घरों, सूखे-खेतों का मंजर सामने आया।।
वह रास्ते अब लोगों से सुनसान हो गये।
घरों को छोड़कर गये, लोग अब मेहमान हो गये।।
वह पहाड़, हरियाली अपने पास बुलाती है।
अकेले होने पर, याद गाँव की आती है।।
चलो सभी शहरों से कभी-कभी गाँव हो आयें।
जीवन में शान्ति, सूकून व आनन्द को पायें।।
-प्रशांत जोशी
मेरा गांव
Poem On Village In Hindi
ईर्ष्या, द्वेष, दम्भ से,
स्नेह जहां पलता भरपूर।
सीधे सच्चे लोग यहां,
मन निर्मल नदिया की धारा है।
मेरा गांव बड़ा प्यारा है।
जहां पंछी दल चहके तो,
अलस सवेरा होता है।
उदयाचल से आकर सूरज,
जहां डालता डेरा है।
मेरा गांव बड़ा प्यारा है।।
हरियाली इन खेतों की,
आंखों को बड़ी सुहाती है।
उगता धरती से स्वर्ण जहां,
निर्मल वह गांव हमारा है।
मेरा गांव बड़ा प्यारा है।
सावन के झूले लगते हैं,
यहां बैसाखी के मेले।
त्योहारों पर झूम रहा,
ये पूरा गांव हमारा है।
मेरा गांव बड़ा प्यारा है।
आपाधापी से दूर बसा,
प्रकृति भी है शांत यहां।
हरियाली बिखरी हर ओर,
खुशियों का यहां बसेरा है।
मेरा गांव बड़ा प्यारा है।
-डाॅली सिंह
मेरा गाँव
Poem On Village In Hindi
मेरा गाँव, आज भी गाँव है।
कहीं नीम तो कहीं पीपल की छाँव है।।
जामुन के पेड़ आम के बगीचे।
इमली खूब खाते हैं पेड़ के नीचे।।
गाँव के चारों ओर बसवाड़ी है।
कहीं कांटे कहीं बेलझर कहीं झाड़ी है।।
गाँव के बाहर खेतों में हरियाली है।
सुबह-शाम दिखती सूरज की लाली है।।
कहीं-कहीं तो लोग,
एक दूसरे को नहीं पहचानते हैं।
मेरे गाँव में आज भी लोग,
छप्पर उठाने आते हैं।।
अब गाँव में सबके,
चेहरे पर खुशी मिलती है।
बैंक, टावर, इलेक्ट्रॉनिक,
ये सुविधाए गाँव में मिलती हैं।।
मेरा गाँव अब धीरे-धीरे बदल रहा है।
गाँव का युवा
आत्मनिर्भर होकर संभल रहा है।।
-अनूप कुमार वर्मा