आज के इस पोस्ट में आप सभी के लिए यहाँ पर बहुत ही सुंदर और सरस निबंध प्रस्तुत किया गया है। यह Hindi Essay On Friendship पर आधारित हैं। इस पोस्ट में मित्रता पर निबंध Mitrata Par Nibandh के साथ उसके महत्व के बारे में भी बताया गया है।
Importance of Friendship Essay In Hindi – इस लेख में मित्रता के बारे में बताया गया है कहा जाता है कि मित्रभावना मनुष्य की सबसे मूल्यवान निधि होती है। शास्त्रों में बताया गया है कि सच्ची मित्रता मनुष्य के लिए बहुत ही उपयोगी और सहायक होती है परन्तु आज के समाज में ऐसे मित्र वेश के रूप में बैठे हुए हैं वे रह रह कर शत्रुता का व्यवहार करते हैं।
हमें सच्ची मित्रता सोच समझ कर ही करना चाहिए जो हमें अंधकार रूपी गलत मार्ग से निकालकर हमे सही मार्ग पर चलने का प्रेरित करता है वही सच्ची मित्रता कहलाता है।
आइए इस Hindi Essay On Friendship ( मित्रता पर निबंध ) को पढ़ कर उसके मौलिक गुणों को समझ सकें और साथ ही साथ अपने परीक्षा की तैयारी के लिए आप इस लेख का मदद भी ले सकते हैं।
मित्रता पर निबंध
Hindi Essay On Friendship
मित्रता वह भावना होती है जो दो मनुष्यों के हदय को जोड़ने का कार्य करती है।
इस संसार में हमारे विभिन्न तरह के रिश्ते होते है। कुछ रिश्ते हमारे जन्म के साथ होते हैं और कुछ ऐसे ही बन जाते है लेकिन इस संसार में सबसे बहुमुल्य और महत्वपूर्ण रिश्ता माना गया है वह है सच्ची मित्रता |
मित्रता का अर्थ यह है कि वे संवेदनशील हो, सच्चे सहायक हो, सुख-दुःख का साथी हो, हमदर्दी के साथ हितैषी भी रखता हो।
शास्त्रों में यह कहा गया है कि मित्रता मनुष्य की सबसे मूल्यवान निधि है। सच्चा मित्र मनुष्य का सबसे बड़ा सहायक होता है। आज के बेह-मतलबी संसार में बहुत सी चीजें नकली और दिखावटी हो गई है। प्रिय उच्चतम रिश्तों में भी धोखेबाजी, छल और कपट की नियत भी आ चुकी है। हमारे समाज में सब दिखावटी की चीजे है।
ऐसा कहना गलत है कि समाज में सच्चे और परोपकारी मित्र नहीं होते हैं। जिन्हें समाज में सच्चे और परोपकारी मित्र मिल जाते हैं। वह सचमुच ही भाग्यशाली होते है। जिसे ऐसे सत्पुरूष, निस्वार्थ और उदार मित्र प्राप्त हो जाते है वे जीवन पर्यंत तक उनके सहायक और प्रशंसक होते है।
उन्हें किसी भी कठिन परिस्थिति में उनका सहयोग, विपत्ती में धैर्य मिलेगा, आगे बढ़ने में सहयोग प्राप्त होगा। वे जीवन पथ पर मूल्यवान निदेशक की तरह खड़े रहते हैं और किसी समय ठोकर लगने पर प्रेम और नई उत्साह के साथ हमेशा उन्हें आगे बढ़ने की प्रेरणा देते हैं। हमें अपने साथ सदाचारी और सेवाभावी ही मित्र को ही रखना चाहिए ।
मित्रता उम्र की मोहताज नहीं होती हैं हमें मित्रता के बीच में जाति-धर्म को नहीं रखना चाहिए ।
मित्रता दो तरह की होती है। एक अच्छी और दूसरी बुरी अच्छे और सच्चे मित्र हमेशा सही ही मार्ग दिखाते है। और वही बुरी मित्रता हमें अंधकार रूपी गलत मार्ग पर छोड़ कर चले जाते है इसलिए हमें जीवन में सही मित्र चुनते समय सावधानी भी बरतनी चाहिए। हमें चरित्रवान व्यक्तियों से ही मित्रता करनी चाहिए ताकि मित्रता बढ़ने पर किसी भी प्रकार का मतभेद न हो जाए ।
बुरी विचार वाले व्यक्तियों से मित्रता करना बहुत ही घातक भी हो सकता है। कुछ दिनों के बाद उन लोगों के बीच में झगड़ा हो जाता है और वह आगे चलकर दोनों अलग हो जाते है। और वही बुरी मित्रता आगे जाने पर कही मार-पीट जैसे भयानक रुप भी ले सकता है।
वही सच्ची मित्रता नि:स्वार्थ मानी जाती है। वह जरूरत मंद होने पर अपने मित्र की हमेशा सहायता करते रहते हैं। सच्ची मित्रता अपने मित्र को हमेशा उचित कार्य करने की सलाह देती है।
मित्रता का सर्वश्रेष्ठ उदाहरण भगवान श्री कृष्ण और सुदामा को सबसे माना गया है। संक्षेप में यह कहा गया है कि सच्ची मित्रता वह साथी होता है जिसे हम अपने सभी प्रकार की रहस्यों, संकटों और सुख दुःख का साथी बनाते हैं। जिससे हम अपने प्रवृतियों और आदतों का अलग होने के बावजूद भी हम उन्हें प्यार करते हैं ।
अगर आप लोगों के पास एक सच्चे मित्र हो तो उन्हें प्यार से सभाल कर रखना चाहिए क्योंकि आज की दिखावटी संसार में प्रत्येक वस्तु ही नकली और कपटी दिखाई दे रहा है। आज कल की मित्रता तो बाना पहनकर शत्रुता का व्यवहार करते हैं। शत्रु से रक्षा करना सरल बात है लेकिन मित्रवेश में छिपे शत्रुओं से रक्षा करना बहुत ही कठिन कार्य होता है।
सच्ची मित्रता ढाढ़स और वरदान का प्रतीक माना जाता है। वे लोग सचमुच ही भाग्यशाली के पात्र है जिनका सच्चे और परोपकारी मित्र प्राप्त होते हैं।
निष्कर्ष ( Conclusion ) – सच्ची मित्रता समान गुण वाले व्यक्तियों में ही टीक सकती है। उसमें स्वार्थ का कण भी नहीं होता है जो मित्र कपटी और स्वार्थी होता है। उनकी मित्रता धोखे में बदल जाती है और एक दिन शत्रुता में परिणत हो जाती है।
संसार में अनेकों ऐसे बेहमतलबी इंसान होते हैं जो मित्र धर्म का पालन नहीं करते, बल्कि स्वार्थ सिद्ध किया करते है जब उनका स्वार्थ पूर्ण हो जाता है। वे मित्र को दूध में पड़े मक्खी की सामान बाहर निकाल कर फेंक देते हैं।
सच्ची मित्रता के मार्ग पर चलने के लिए यह हमें सदा स्मरण करना चाहिए –
इच्छेच्चेद्विपुलां मैत्रीं त्रीणि तत्र न कारयेत् |
वाग्वादमर्थसम्बन्धं परोक्षे दारभाषणम् ||
इस श्लोक का यह अर्थ है कि जो व्यक्ति स्थायी और सच्ची मित्रता का निर्वाह करना चाहता है तो उन्हें तीन बातों का ध्यान देना चाहिए ।
1. वाद – विवाद न होना अर्थात बेमतलब की बातचीत नहीं करना चाहिए क्योंकि कभी कभी जोश में आकर कड़वी बातों का भी प्रयोग कर देने से मित्रता के बीच में दरार आने की संभावना आ जाती है ।
2. रुपए – पैसे का लेन देन इसका मतलब यह है कि हमें अपने संबंधित मित्रों से जितना हो सकें हमें दूर रहना चाहिए ।
3. मित्र की पत्नी से अकेले में बातचीत करना यानि कि अगर हम सच्ची मित्रता का पालन करते हैं तो हमें अपने सच्चे मित्र की धर्म पत्नी से कभी भी बातचीत नहीं करना चाहिए क्योंकि इससे चरित्र पर संदेह उत्पन्न होता है और अंत में मित्रता टूट जाती है ।
हमें मित्र से भी अपनी गुप्त बातें प्रकट नहीं करनी चाहिए क्योंकि पता नहीं वे कब वह शत्रु बन जाए?
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