15+ झांसी की रानी लक्ष्मीबाई पर सर्वश्रेष्ठ कविता | Jhansi Ki Rani Poem In Hindi

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झांसी की रानी लक्ष्मीबाई वास्तविक अर्थ में आदर्श वीरांगना थीं। वे कभी आपत्तियों से नहीं घबराई, कभी कोई प्रलोभन उन्हें अपने कर्तव्य पालन से विमुख नहीं कर सका। अपने पवित्र उद्देश्य की प्राप्ति के लिए वह सदैव आत्मविश्वास से भरी रहीं। महारानी लक्ष्मीबाई का जन्म काशी में 19 नवंबर 1835 को हुआ। इनके पिता का नाम मोरोपंत ताम्बे और माता का नाम भागीरथी बाई था। रानी लक्ष्मीबाई को बचपन में मनुबाई नाम से बुलाया जाता था।

रानी लक्ष्मीबाई का विवाह सन् 1850 में गंगाधर राव से हुआ जो कि सन् 1838 से झांसी के राजा थे। जिस समय लक्ष्मीबाई का विवाह उनसे हुआ तब गंगाधर राव पहले से विधुर थे। सन् 1851 में लक्ष्मीबाई को पुत्र पैदा हुआ लेकिन चार माह बाद ही उसका निधन हो गया। रानी लक्ष्मीबाई के पति को इस बात का गहरा सदमा लगा और 21 नवंबर 1853 को उनका निधन हो गया।

राजा गंगाधर राव ने अपने जीवनकाल में ही अपने परिवार के बालक दामोदर राव को दत्तक पुत्र मानकर अंग्रजी सरकार को सूचना दे दी थी। परंतु ईस्ट इंडिया कंपनी की सरकार ने दत्तक पुत्र को अस्वीकार कर दिया । इसके बाद शुरु हुआ रानी लक्ष्मीबाई के जीवन में संघर्ष, लाड डलहौजी ने गोद की नीति के अंतर्गत दत्तकपुत्र दामोदर राव की गोद अस्वीकृत कर दी और झांसी को अंग्रजी राज्य में मिलाने की घोषणा कर दी।

लेकिन रानी लक्ष्मीबाई झांसी अग्रेजों की होने देना नहीं चाहती थी, उन्होंने विद्रोह कर दिया। रानी लक्ष्मीबाई ने सात दिन तक वीरतापूर्वक झांसी की सुरक्षा की और अपनी छोटी-सी सशस्त्र सेना से अंग्रेजों का बड़ी बहादुरी से मुकाबला किया। रानी ने खुलेरूप से शत्रु का सामना किया और युद्ध में अपनी वीरता का परिचय दिया। वे अकेले ही अपनी पीठ के पीछे दामोदर राव को कसकर घोड़े पर सवार हो, अंगरेजों से युद्ध करती रहीं और अंत में रानी का घोड़ा बुरी तरह से घायल हो गया और वे वीरगति को प्राप्त हुई। इस तरह उन्होंने स्वतंत्रता के लिए बलिदान का संदेश दिया।

 

Jhansi Ki Rani Poem

 

सुभद्राकृमारी चौहान दुवारा रचित ‘झाँसी की रानी’ कविता आज भी हमारे मन में जोश भर देती है, तथा वीरांगना लक्ष्मीबाई के प्रति सम्मान तथा गौरव का भाव संप्रेषित करती है। इस कविता में गुलाम भारत की स्थिति का वर्णन करते हुए कवयित्री सन् 1857 के विद्रोह के संदर्भ में रानी लक्ष्मीबाई के शौर्य और वीरता का वर्णन करती है।

 

झाँसी की रानी

Jhansi Ki Rani Poem In Hindi

 

सिंहासन हिल उठे राजवंशों ने भृकुटी तानी थी,

बूढ़े भारत में भी आई फिर से नयी जवानी थी,

गुमी हुई आज़ादी की कीमत सबने पहचानी थी,

दूर फिरंगी को करने की सबने मन में ठानी थी।

 

चमक उठी सन सत्तावन में,

वह तलवार पुरानी थी।

बुंदेले हरबोलों के मुँह

हमने सुनी कहानी थी।

खूब लड़ी मर्दानी वह तो

झाँसी वाली रानी थी।

 

कानपूर के नाना की, मुँहबोली बहन ‘छबीली’ थी,

लक्ष्मीबाई नाम, पिता की वह संतान अकेली थी,

नाना के सँग पढ़ती थी वह, नाना के सँग खेली थी,

बरछी, ढाल, कृपाण, कटारी उसकी यही सहेली थी।

 

वीर शिवाजी की गाथायें,

उसको याद ज़बानी थी।

बुंदेले हरबोलों के मुँह,

हमने सुनी कहानी थी।

खूब लड़ी मर्दानी वह तो,

झाँसी वाली रानी थी।

 

लक्ष्मी थी या दुर्गा थी वह स्वयं वीरता की अवतार,

देख मराठे पुलकित होते उसकी तलवारों के वार,

नकली युद्ध-व्यूह की रचना और खेलना खूब शिकार,

सैन्य घेरना, दुर्ग तोड़ना ये थे उसके प्रिय खिलवाड़।

 

महाराष्ट्र-कुल-देवी उसकी,

भी आराध्य भवानी थी।

बुंदेले हरबोलों के मुँह,

हमने सुनी कहानी थी।

खूब लड़ी मर्दानी वह तो,

झाँसी वाली रानी थी।

 

हुई वीरता की वैभव के साथ सगाई झाँसी में,

ब्याह हुआ रानी बन आई लक्ष्मीबाई झाँसी में,

राजमहल में बजी बधाई खुशियाँ छाई झाँसी में,

सुभट बुंदेलों की विरुदावलि-सी वह आयी थी झांसी में।

 

चित्रा ने अर्जुन को पाया,

शिव को मिली भवानी थी।

बुंदेले हरबोलों के मुँह,

हमने सुनी कहानी थी।

खूब लड़ी मर्दानी वह तो,

झाँसी वाली रानी थी।

 

उदित हुआ सौभाग्य, मुदित महलों में उजियारी छाई,

किंतु कालगति चुपके-चुपके काली घटा घेर लाई,

तीर चलाने वाले कर में उसे चूड़ियाँ कब भाई,

रानी विधवा हुई, हाय! विधि को भी नहीं दया आई।

 

नि:संतान मरे राजा जी,

रानी शोक-समानी थी।

बुंदेले हरबोलों के मुँह,

हमने सुनी कहानी थी।

खूब लड़ी मर्दानी वह तो,

झाँसी वाली रानी थी।

 

बुझा दीप झाँसी का तब डलहौज़ी मन में हरषाया,

राज्य हड़प करने का उसने यह अच्छा अवसर पाया,

फ़ौरन फौजें भेज दुर्ग पर अपना झंडा फहराया,

लावारिस का वारिस बनकर ब्रिटिश राज्य झाँसी आया।

 

अश्रुपूर्ण रानी ने देखा,

झाँसी हुई बिरानी थी।

बुंदेले हरबोलों के मुँह,

हमने सुनी कहानी थी।

खूब लड़ी मर्दानी वह तो,

झाँसी वाली रानी थी।

 

अनुनय विनय नहीं सुनता है, विकट फिरंगी की माया,

व्यापारी बन दया चाहता था जब यह भारत आया,

डलहौज़ी ने पैर पसारे, अब तो पलट गई काया,

राजाओं नवाबों को भी उसने पैरों ठुकराया।

 

रानी दासी बनी, बनी यह

दासी अब महरानी थी।

बुंदेले हरबोलों के मुँह,

हमने सुनी कहानी थी।

खूब लड़ी मर्दानी वह तो,

झाँसी वाली रानी थी।

 

छिनी राजधानी दिल्ली की, लखनऊ छीना बातों-बात,

कैद पेशवा था बिठूर में, हुआ नागपुर का भी घात,

उदयपुर, तंजौर, सतारा,कर्नाटक की कौन बिसात?

जब कि सिंध, पंजाब ब्रह्म पर अभी हुआ था वज्र-निपात।

 

बंगाल, मद्रास आदि की भी

तो वही कहानी थी,

बुंदेले हरबोलों के मुँह

हमने सुनी कहानी थी,

खूब लड़ी मर्दानी वह तो

झाँसी वाली रानी थी॥

 

रानी रोयीं रनिवासों में, बेगम ग़म से थीं बेज़ार,

उनके गहने कपड़े बिकते थे कलकत्ते के बाज़ार,

सरे आम नीलाम छापते थे अंग्रेज़ों के अखबार,

‘नागपुर के ज़ेवर ले लो लखनऊ के लो नौलखा हार’।

 

यों परदे की इज़्ज़त परदेशी के हाथ बिकानी थी,

बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,

खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥

 

कुटियों में भी विषम वेदना, महलों में आहत अपमान,

वीर सैनिकों के मन में था अपने पुरखों का अभिमान,

नाना धुंधूपंत पेशवा जुटा रहा था सब सामान,

बहिन छबीली ने रण-चण्डी का कर दिया प्रकट आहवान।

 

हुआ यज्ञ प्रारम्भ उन्हें तो सोई ज्योति जगानी थी,

बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,

खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥

 

महलों ने दी आग, झोपड़ी ने ज्वाला सुलगाई थी,

यह स्वतंत्रता की चिनगारी अंतरतम से आई थी,

झाँसी चेती, दिल्ली चेती, लखनऊ लपटें छाई थी,

मेरठ, कानपुर,पटना ने भारी धूम मचाई थी,

 

जबलपुर, कोल्हापुर में भी कुछ हलचल उकसानी थी,

बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,

खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥

 

इस स्वतंत्रता महायज्ञ में कई वीरवर आए काम,

नाना धुंधूपंत, ताँतिया, चतुर अज़ीमुल्ला सरनाम,

अहमदशाह मौलवी, ठाकुर कुँवरसिंह सैनिक अभिराम,

भारत के इतिहास गगन में अमर रहेंगे जिनके नाम।

 

लेकिन आज जुर्म कहलाती उनकी जो कुरबानी थी,

बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,

खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥

 

इनकी गाथा छोड़, चले हम झाँसी के मैदानों में,

जहाँ खड़ी है लक्ष्मीबाई मर्द बनी मर्दानों में,

लेफ्टिनेंट वाकर आ पहुँचा, आगे बढ़ा जवानों में,

रानी ने तलवार खींच ली, हुआ द्वंद असमानों में।

 

ज़ख्मी होकर वाकर भागा, उसे अजब हैरानी थी,

बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,

खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥

 

रानी बढ़ी कालपी आई, कर सौ मील निरंतर पार,

घोड़ा थक कर गिरा भूमि पर गया स्वर्ग तत्काल सिधार,

यमुना तट पर अंग्रेज़ों ने फिर खाई रानी से हार,

विजयी रानी आगे चल दी, किया ग्वालियर पर अधिकार।

 

अंग्रेज़ों के मित्र सिंधिया ने छोड़ी राजधानी थी,

बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,

खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥

 

विजय मिली, पर अंग्रेज़ों की फिर सेना घिर आई थी,

अब के जनरल स्मिथ सम्मुख था, उसने मुहँ की खाई थी,

काना और मंदरा सखियाँ रानी के संग आई थी,

युद्ध श्रेत्र में उन दोनों ने भारी मार मचाई थी।

 

पर पीछे ह्यूरोज़ आ गया, हाय! घिरी अब रानी थी,

बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,

खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥

 

तो भी रानी मार काट कर चलती बनी सैन्य के पार,

किन्तु सामने नाला आया, था वह संकट विषम अपार,

घोड़ा अड़ा, नया घोड़ा था, इतने में आ गये सवार,

रानी एक, शत्रु बहुतेरे, होने लगे वार-पर-वार।

 

घायल होकर गिरी सिंहनी उसे वीर गति पानी थी,

बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,

खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥

 

रानी गई सिधार चिता अब उसकी दिव्य सवारी थी,

मिला तेज से तेज, तेज की वह सच्ची अधिकारी थी,

अभी उम्र कुल तेइस की थी, मनुज नहीं अवतारी थी,

हमको जीवित करने आयी बन स्वतंत्रता-नारी थी,

 

दिखा गई पथ, सिखा गई हमको जो सीख सिखानी थी,

बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,

खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥

 

जाओ रानी याद रखेंगे ये कृतज्ञ भारतवासी,

यह तेरा बलिदान जगावेगा स्वतंत्रता अविनासी,

होवे चुप इतिहास, लगे सच्चाई को चाहे फाँसी,

हो मदमाती विजय, मिटा दे गोलों से चाहे झाँसी।

 

तेरा स्मारक तू ही होगी, तू खुद अमिट निशानी थी,

बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,

खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥

 

झांसी की रानी

Jhansi Ki Rani Poem In Hindi

 

सुना है जिसके पदचापों से,

धरती कंपन करती थी।

जिसकी तलवारों की चमक से,

शत्रु की सेना डरती थी।

 

लहू की बूंद बनी चिंगारी,

और धरा मुस्काई आई थी।

शबनम के अंदर से जब,

आग निकलकर आई थी।

 

उखाड़ फेंका उस दुश्मन को,

जिसने झांसी का अपमान किया।

है उनको सत् सत् नमन हमारा,

है उनको सत् सत् नमन।

 

जिसने मातृभूमि को,

अपना बलिदान दिया।

सत्तावन की तलवार लिखूं,

या देश प्रेम की ज्वार लिखूं‌।

 

या दुश्मन की छाती पर पड़ता,

रानी का इक इक बार लिखूं।

बिगुल बजाती आजादी का,

इक नारी की हुंकार लिखूं।

 

या बुंदेलों की मुख से होती,

झांसी की जय जयकार लिखूं।

जिसने अलख जगाकर,

आजादी की कार्य बड़े महान किया।

 

है उनको सत् सत् नमन हमारा,

है उनको सत् सत् नमन।

जिसने मातृभूमि को,

अपना बलिदान दिया।

 

खेल खिलौने के उम्र में,

जो तलवारों की दीवानी थीं।

ब्रिटिश सल्तनत भी,

जिसके आगे पानी-पानी थी।

 

थी उसे गुलामी मंजूर नहीं,

अंग्रेजों की एक न मानी थी‌।

मैं अपनी झांसी न दूंगी,

जिसने अपने मन में ठानी थी।

 

जिसकी शौर्य गाथा का,

बुंदेलों ने गुणगान किया।

है उनको सत् सत् नमन हमारा,

है उनको सत् सत् नमन।

 

जिसने मातृभूमि को,

अपना बलिदान दिया।

रण कौशल ऐसा था,

जिसने शत्रु भी थर्राया था।

 

 रणचंडी को भेंट चढ़ाने,

अरि मुण्डों को लेकर आया था।

अरिदल काँप गए थे,

रण मैं जब लक्ष्मीबाई आई थी।

 

मातृभूमि पर एक बेटी ने,

अपने प्राण लुटायी आई थी।

मर के कैसे जीते हैं,

जिसने दुनिया को ज्ञान दिया।

 

है उनको सत् सत् नमन हमारा,

है उनको सत् सत् नमन।

जिसने मातृभूमि को,

अपना बलिदान दिया।

  – नीरज कुमार

 

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