Poem On Dussehra In Hindi :- दशहरा का त्योहार पूरे भारतवर्ष में बड़े ही धूम-धाम से मनाया जाता है। यह त्योहार हिन्दू धर्म का एक प्रसिद्ध त्योहार माना जाता है। यह त्योहार प्रतिवर्ष हिन्दी माह के अनुसार, अश्विन मास के शुक्ल पक्ष के दसवें, दिन मनाया जाता हैं। इस, त्योहार की शुरूआत इसके नौ दिन पहले से ही हो जाती है। दशहरे के त्योहार के नौ दिन पूर्व से नवरात्र की पूजा होती हैं। जिसमें अलग अलग दिन अलग-अलग देवियों की पूजा अर्चना की जाती हैं। नवरात्र के त्योहार में जगह-जगह मूर्तियों की स्थापना की जाती है, और कुछ लोग व्रत भी करते हैं। नौ दिन की नवरात्र के पश्चात दसवें दिन दशहरे का त्योहार मनाया जाता है।
दशहरे के दिन रावण का एक पुतला बनाकर उसे जलाया जाता है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन भगवान श्री राम ने रावण का वध किया था और तभी से प्रतिवर्ष रावण के पुतले को जलाकर यह त्यौंहार मनाया जाता है। दशहरे को विजयादशमी के नाम से भी जाना जाता है। यह, त्योहार दीपावली के बीस दिन पुर्व ही मनाया जाता हैं। कई जगह तो इस दिन को दिन के समय मेले का आयोजन होता है और रात्रि में रावण का पुतला दहन किया जाता है। हिन्दू धर्म की मान्यता के अनुसार यह दिन बहुत ही शुभ होता है क्योंकि इस दिन भगवान श्री राम ने रावण का वध करके बुराई पर अच्छाई की विजय प्राप्त की थी।
दशहरा
Poem On Dussehra In Hindi
पाप का अंत करने को,
फिर आया है दशहरा।
सत्य की जीत लेकर के,
फिर भाया है दशहरा।।
मार के रावण को राम ने,
दिया दुनिया को संदेश।
मिटा कर खौफ का राज,
बनाया सुंदर-सा परिवेश।।
असत्य की हानि हुई है,
जब-जब अत्याचार बढ़ा।
लिया है ईश्वर ने अवतार,
जब-जब अहंकार चढ़ा।।
झूठ, निंदा, पाप सब छोड़ो,
कहती अपनी वसुंधरा।
पाप का अंत करने को,
फिर आया है दशहरा।।
-गोविंद भारद्वाज
दशहरा पर सुंदर कविता
Dussehra Hindi Poem
रावण शिव का परम भक्त था,
बहुत बड़ा था अभिमानी।
दस सिर बीस भुजाओं वाला,
था राजा अभिमानी।
नहीं किसी की वह सुनता था,
करता था मनमानी।
औरों को पीड़ा देने की,
आदत रही पुरानी।
एक बार धारण कर उसने,
तन पर साधु-निशानी।
छल से सीता को हरने की,
हरकत की बचकानी।
पर-नारी का हरण न अच्छा,
कह कह हारी रानी।
भाई ने भी समझाया तो,
लात पड़ी थी खानी।
रामचन्द्र से युद्ध हुआ तो,
याद आ गई नानी।
शिव को याद किया विपदा में,
अपनी व्यथा बखानी।
जान बूझ कर बुरे काम की,
जिसने मन में ठानी।
शिव ने भी सोचा ऐसे पर,
अब ना दया दिखानी।
नष्ट हुआ सारा ही कुनबा,
लंका पड़ी गंवानी।
मरा राम के हाथों रावण,
होती खत्म कहानी।
दशहरा
Poem On Dussehra In Hindi
ढोल-ढमाके ढमके,
नाचे सब जम के।
बच्चे निकले टोली बना,
खूब सज-धज के।
चले सब मिल,
चल समारोह में।
राम-रावण युद्ध,
दशहरा मैदान में।
मनु का राम सा श्रृंगार,
संभाले तीर-तरकश में।
जीतने न दूंगा रावण को,
संकल्प ले लिया मन में।
उधर राम ने मारा तीर,
इधर मनु की चढ़ी कमान।
अन्याय रूपी रावण जला,
धूं-धूं हो गई झूठी शान।
-अनुपमा अनुश्री
जैसे को तैसा
Poem On Dussehra In Hindi
दस शीश के दशकंधर का
दंभ हो गया चूर।
दसों दिशा से गाज गिरी
मुश्किल में मग़रूर।
रामबाण या अमोघ-अस्त्र का,
चूका नहीं निशाना।
स्त्री-हरण के कृत्य पर,
पड़ा बहुत पछताना।
कुंभकर्ण व मेधनाद तक,
हार गए लंका-रण।
औरों की क्या खाक कहें,
जब बचा नहीं खुद रावण।
सौंप विभीषण को सत्ता फिर,
लौटे प्रभु अवध को।
सबक सिखाकर उसको,
जिसने पार किया था हृद को।
क्रम में सातवें थे राम,
श्रीहरि के अवतार।
आठवें पर कृष्ण कन्हैया,
किया कंस-संहार।
-सुधा करनावट
आज दशहरा है
Poem On Dussehra In Hindi
दशानन का हुआ दहन,
दोनों दिशाओं में उमंगा आनंद।
सत्य के बाण से असत्य मरा है,
आज दशहरा है।
संकल्प श्रीराम का पूर्ण हुआ,
अभिमान शठता का शीर्ण हुआ।
धैर्य, विश्वास सीता का जीता,
अधर्म पर विजयी धर्म हुआ।
जिसने हरा था सीता को,
आज वही प्रमत्त रावण हारा है,
आज दशहरा है।
दहन की धधकती ज्वाला,
संकेत ज्वलंत संस्कारों का।
यह प्रकाश उन भ्रमितों के लिए,
जिन्हें बिसर हो रहा अपनी परम्पराओं का।
ये केवल उठती लपटें नहीं,
घमंड किसी पाखंड का जलता है।
राख हो रही है एक कामार्त दृष्टि,
और अनघ शील सिया का अलौकिक होता है।
दुर्लभ अनय का काल बीता,
शेष मुदित मन निरा हैं।
आज दशहरा है।
अहंकार कितना भी हो प्रबल,
विनय से ही विद्वान शोभित होता है।
जब नर में हो राम,
नारी दुर्गा, सीता का धाम।
तब दानवों का दमन निश्चित होता है,
अनस्तित्व हुआ पाप।
पुण्य से पुलकित वसुंधरा है,
आज दशहरा है।
-सविता पाटील
दशहरा
Short Poem On Dussehra In Hindi
दस दुर्गुण को हरने आज
आया पर्व दशहरा,
वो रावण जो बोलता ऊंचा
कानों से था बहरा।
सुनी नेक सलाह ना जिसने
मंदोदरी व माल्यवान की,
भाई विभीषण को ठुकराकर
ऐठीं मूछें अभिमान की।
साधु वेश में धोखा देकर
सीता जी का हरण किया,
श्री राम से संधि ना कर
खुद मृत्यु का वरण किया।
हनुमान-से दूत का जिसने
किया घोर अपमान,
आग लगा के पूंछ में उनकी
लंका की कुर्बान।
दुष्ट, अहंकारी रावण ने
दंभ भरा क्या शान से;
राम जी से पंगा लेकर
हाथ थो लिए जान से।
-अरविंद
दशानन रावण
Short Poem On Dussehra In Hindi
हाँ, मैं दशानन रावण था।
अहंकारी, अभिमानी,
थोड़ा पागल था,
जो शिव के चरणों में
अपने सिर का बलि चढ़ाता था।
नौ ग्रहों और तीनों लोकों को,
अपने इशारों पर नचाता था।
अपने दस के दस चेहरे
सभी को दिखाता था।
हाँ, मैं वहीं दशानन रावण था,
जिसे स्वयं शिव ने
रावण के नाम से पुकारा था।
जो एक स्त्री के अपमान के लिए
दूसरी स्त्री को बंदी बनाकर लाया था।
लेकिन उसकी गंगा जैसी
पवित्रता बनी रही थी।
हाँ, मैं वही दशानन रावण था।
जिसे राम ने अपना आचार्य माना था।
जो स्वयं के विनाश का आशीर्वाद
राम को समुद्र तट पर दे आया था।
हाँ, मैं वही दशानन रावण था।
जिसे राम ने मारा था,
विभीषण को छोड़ मुझे,
मेरे पुत्र और भाइयों को,
मृत्यु शैया पर लिटाया था।
आज भी मेरे पुतले को जलाया जाता है।
लेकिन किसी को भी
रावण की भक्ति और शक्ति
को नहीं बतलाया जाता है।
बेटियों व बहनों को
आज जो नोच खाते हैं।
मैंने देखा है,
सभाओं में वही स्वागत के लिए
बुलाए जाते हैं।
उनके पुतले पर फूलमाला
चढ़ाएं जातें हैं।
हाँ, मैं वही दशानन रावण था,
जो आज के मानव से
सच्चा और अच्छा था।
-श्रवण साहु