Poem On Diwali
दीवाली
Poem On Diwali
दीपों का त्योहार दीवाली।
लाये खुशी अपार दीवाली।।
इक दूजे को गले लगाओ,
प्यार से सरोबार दीवाली।।
अंधेरे से प्रकाश की ओर,
लेकर जाये हमें दीवाली।।
हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई,
सब में बांटे प्यार दीवाली।।
आतिशबाजी धूमधड़ाके से
दूर हो अबकी बार दीवाली।।
आओ प्रदूषण मुक्त मनाए,
मिल करके इस बार दीवाली।।
-भूपसिंह ‘भारती’
दीवाली
Poem On Diwali
आई है सुन्दर दीवाली,
सबने है त्योहार मनाया।
अन्धकार को दूर भगाया।।
घर-घर में जलते हैं दीपक,
रात न लगती काली-काली।
आई है सुन्दर दीवाली।
जलती हैं बल्बों की लड़ियाँ।
छूट रहीं चम-चम फुलझड़ियाँ।।
दो अनार, पटाखे अनगिन,
आतिशबाजी लगे निराली।
आई है सुन्दर दीवाली।।
खाते हैं सब लोग मिठाई।
खाते खील, खिलौने, लाई।।
करते हैं लक्ष्मी की पूजा,
जिससे हो धन-वैभवशाली।
आई है सुन्दर दीवाली।।
आज राम थे वापस आये।
अवध-निवासी थे हर्षाये।।
दीपक जला किया था स्वागत,
तब से चलती यही प्रणाली।
आई है सुन्दर दीवाली।।
-विनोद चन्द्र पाण्डेय
दीवाली
Poem On Diwali
हम जगमग जोत जगायेंगे,
दीवाली नयी मनायेंगे।
क्षण-क्षण गहराता धुआँ देख,
हम चुप कैसे रह पायेंगे?
यह भेद-भाव तो घुन जैसा,
इसके कैसे सह पायेंगे?
हम नयी पौध, नव पीढ़ी हैं,
भारत को नया बनायेंगे।
रग-रग में जोश नया लहरा,
हम नया उजाला लायेंगे।
कुटिया-कुटिया, हर गली-गली,
हम नव दीपक बन जायेंगे।
नेहरू चाचा की शपथ हमें,
हम तनिक नहीं अलसायेंगे।
घर-घर फुलझड़ियाँ छूटेंगी,
दीवाली नयी मनायेंगे।
-रामस्वरूप दुबे
दीप जले दीवाली आई
Poem On Diwali
चटख पटाखे छूटते,
खूब मचाते शोर।
फुलझड़ियाँ लगती भली,
चलती हैं घनघोर।
चले राकेट झूमकर,
खुशियों की रफ्तार।
चकरी दीदी कर रही,
दीवाली से प्यार।
शोर मचाते बम चले,
कर भीषण आवाज।
अनार जलते देखकर,
खुश हैं आतिशबाज।
दीप जल रहे खुशी के,
बांट रहे उजियारा।
दुख भागा घर छोड़कर,
भागा गम अंधियारा।
पाकर सुन्दर रोशनी,
हँसने लगे चिराग।
अंधकार ने छेड़ दी,
भागमभागी राग।
मतवाले दीपक जले,
दीवाली की रात।
चकरी नाची छमाछम,
तिमिर की हुई मात।
लड्डू पेड़े अनरसे,
और मलाईचाप।
दीवाली में खाइये,
गरम जलेबी आप।
-महेन्द्र कुमार वर्मा
दीपावली का त्योहार
Poem On Diwali
दीपावली का त्योहार,
आ गया है फिर द्वार।
जहाँ देखो वहाँ लगी,
दीपों की उजली कतार।
घर-घर पटाखे हैं,
हर कहीं फुलझड़ी है।
लगता है उत्सव की बेला,
उल्लास की घड़ी है।
हर्ष और उल्लास अपार,
दीपावली का त्योहार।
बंदनवार सजीले हैं,
बधाई देते सब मिले हैं।
सबके मुँह मिठाई है,
स्वाद रस घुले मिले हैं।
देखो तो कैसी चटखार,
दीपावली का त्योहार।
-गफूर ‘स्नेही’
दीवाली आई
Poem On Diwali
दीवाली आई, दीवाली आई।
मन लुभाती दीवाली आई।
कार्तिक मास की सौगात।
अमावस की श्यामल रात।
ठंडी हवा बही सुखदाई।
दीवाली आई, दीवाली आई।
स्वच्छ सुंदर नील गगन।
बाँहें फैलाये धरा मगन।
चहुँ ओर हरियाली छाई।
दीवाली आई, दीवाली आई।
घर-आँगन साफ सुथरा।
गाँव-गली उजला उजला।
सबको रौनकता भाई।
दीवाली आई, दीवाली आई।
सबके घर बनी मिठाई।
सबने थाली भर-भर खाई।
हर जगह खुशियाँ छाई
दीवाली आई, दीवाली आई।
राकेट, अनार, बम फटाका।
बहुत हुआ धूम-धड़ाका।
बच्चों ने फूलझड़ी चलाई।
दीवाली आई, दीवाली आई।
-टीकेश्वर सिन्हा “गब्दीवाला
दीपों की पंक्ति दिवाली
Poem On Diwali
दीपों की पंक्ति दिवाली।
राम की भक्ति दिवाली।
लक्ष्मी की शक्ति दिवाली।
जगमगाती ज्योति दिवाली।
सच्चाई की रीत दिवाली।
बुराई के विपरीत दिवाली।
सफाई संग प्रीत दिवाली।
पावनता की रीत दिवाली।
महीनों की तैयारी दिवाली।
लगती है प्यारी दिवाली।
दीप छटा न्यारी दिवाली।
खुशी देती सारी दिवाली।
अंधकार से दूर दिवाली।
प्रकाश से भरपूर दिवाली।
अतिशी सरूर दिवाली।
मनाएंगे जरूर दिवाली।
-हरजीत निषाद
मंगलमय दीवाली आई
Poem On Diwali In Hindi
मंगलमय दीवाली आई।
घर घर में खुशहाली छाई।
रौनक और बहारें लाई।
सुख देने वाली दीवाली आई।
धूम-धाम है बाजारों में।
रौनक टीवी अखबारों में।
आंगन राहों गलियारों में।
नगर गाँव घर चौबारों में।
जलती लड़ियां रंग बिरंगी।
लाल हरी नीली नारंगी।
दूर हुई बदहाली तंगी।
हर घर में खुशियां सतरंगी।
-हरजीत निषाद
दिवाली त्योहार
Poem On Diwali In Hindi
दीपक जला चला अंधकार,
रोशनी का हुआ चमत्कार।
रोशन हो गई दसों दिशाएं,
आया दीवाली का त्योहार।
अनार दिखलाए रोशनी फुहार,
चकरी नाचे बारम्बार।
फुलझड़ियों की शोख अदाएं,
लाया दीवाली का त्योहार।
गुझियों की छाई बहार,
गुलाब जामुन पे आया निखार।
पकवानों से महकी फिजाएं,
आया दीवाली का त्योहार।
उमंगित हो उठा संसार,
जगमगाया दीप त्योहार।
लेकर दे दो शुभकामनाएं,
आया दीवाली का त्योहार।
-महेन्द्र कुमार वर्मा
दीपावली
Poem On Diwali
दीपों की दीपावली आई,
हर घर में खुशहाली छाई।
सद्भभावना की रंगोली संग,
उपहारों की सौगात है लाई।
महालक्ष्मी की कृपा मिलती,
सजती जब पूजा की थाली।
माता सरस्वती के पूजन से,
कटती अज्ञान की रात काली।
लड़ियों की माला सजाकर,
अंधियारा दूर भगाओ जी।
मिठाइयों के सुस्वाद से,
दिल में मिठास जगाओ जी।
मिल जुलकर मित्रों संग,
आतिशबाजी के भरो रंग।
सावधान रहना मगर प्यारे,
रंग कहीं हो जाए ना भंग।
प्रकाश पर्व सबसे न्यारा,
भाई-दूज का उत्सव प्यारा।
संकल्पों के दीप जलाकर,
फैलाओ चहुँओर उजियारा।
-डॉ. रमेश यादव
मिट्टी वाले दीये जलाना
Poem On Diwali In Hindi
राष्ट्रहित का गला घोंट कर,
छेद न करना थाली में।
मिट्टी वाले दीये जलाना,
अबकी बार दीवाली में।
देश के धन को देश में रखना,
नहीं बहाना नाली में।
मिट्टी वाले दीये जलाना,
अबकी बार दीवाली में।
बने जो अपनी मिट्टी से,
वो दीये बिकें बाजारों में।
छिपी है वैज्ञानिकता,
अपने सभी तीज-त्योहारों में।
चायनीज झालर से आकर्षित,
कीट पतंगे आते हैं।
जबकि दीये में जलकर,
बरसाती कीड़े मर जाते हैं।
कार्तिक और अमावस वाली,
रात न सबकी काली हो।
दीये बनाने वालों की अब,
खुशियों भरी दीवाली हो।
अपने देश का पैसा जाए,
अपने भाई की झोली में।
गया जो पैसा दुश्मन देश,
तो लगेगा राइफल की गोली में।
देश की सीमा रहे सुरक्षित,
चूक न हो रखवाली में।
मिट्टी वाले दीये जलाना,
अबकी बार दीवाली में।
-शीला गुरूगोस्वामी
दीपावली
Poem On Diwali
चलिए हम सब मिलकर,
इस दीपावली दीपकों के साथ,
कुछ नवाचार करें।
एक ऐसा दीपक निर्मित करें,
जिसमें सादापन हो,
जैसे एक साधु का जीवन।
जो सुंदर हो उतने,
जितने देवों के उपवन,
ऊंच-नीच और अमीर-गरीब का भेद मिटाएं।
हर अंधियारी रात का होता एक सबेरा,
यह याद दिलाए,
जो अच्छे बुरे का फर्क समझाए।
जो नाउम्मीदों को उम्मीद दिलाए,
हारे हुए की आस बंधाए,
भटके पथिकों को राह दिखाए।
एक दिया सीमा के रक्षक,
अपने वीर जवानों के नाम,
मानवता-रक्षक इंसानों के नाम।
एक ऐसा दिया प्रज्वलित करें जो,
अंतर्मन को प्रकाशित करे,
जो मानव मन को प्रेम एवं प्रकाशमान करें।
-रश्मि अग्रवाल
मन से मन का, दीप जलाओ
Poem On Diwali In Hindi
छोड़-छाड़ कर द्वेष-भाव को,
मीत प्रीत की रीत निभाओ।
दीवाली के शुभ अवसर पर,
मन से मन का दीप जलाओ।
क्या तेरा क्या मेरा,
जीवन चार दिनों का फेरा।
दूर कर सको तो कर डालो,
मन का गहन अंधेरा।
निन्दा नफरत बुरी आदतों,
से छुटकारा पाओ।
दीवाली के शुभ अवसर पर,
मन से मन का दीप जलाओ।
खूब मिठाई खाओ छककर,
लड्डू, बर्फी, चमचम, गुझिया।
पर पर्यावरण का रखना ध्यान,
बम कहीं न फोड़े कान।
वायु प्रदूषण धुएं से बचना,
रोशनी से घर द्वार को भरना।
दीवाली के शुभ अवसर पर,
मन से मन का दीप जलाओ।
चंदा सूरज से दो दीपक,
तन मन में उजियारा कर दे।
हर उपवन के फूल तुम्हारे,
जब तक जियो शान से।
हर सुख हर खुशहाली पाओ।
दीवाली के शुभ अवसर पर,
मन से मन का दीप जलाओ।
-डॉ. ममता खत्री
दीप जले
Poem On Diwali
बड़े भले दीप जले,
उजले उजले दीप जले।
शाम को करते सुबह,
सुन्दर नजारा यह।
छोटे छोटे पटाखे हैं,
मीच मीच जाती आँखें हैं।
कुछ पटाखे आकाश में,
कुछ टिकुली जैसे पास में।
बड़े पटाखे बड़े चलाते,
कान दोनों ही दबाते।
जोर का धमाका है,
खतरनाक पटाखा है।
अच्छी लगती मिठाई,
मन को बहुत ही भाई।
बाजार भरा मिठाई से,
बस नाता महँगाई से।
बाँटो बधाई त्योहार की,
नया साल सत्कार की।
कैलेण्डर डायरी आई,
ग्रीटिंग रंगोली भाई।
-गफूर ‘स्नेही
आयी दीवाली
Poem On Diwali
द्वार- द्वार लेकर खुशहाली,
आयी दीवाली आयी दीवाली।
घर-घर जलते दीपक सुंदर,
और जले झालर लड़ियां।
हाथ-हाथ में फुलझड़ियां,
उजियाले में बदल रही है।
रात अमावस की काली,
नये-नये कपड़े पहने हैं।
खायें मेवा और मिठाई,
बांटें खूब बताशे लाई।
सजी हुई है पूजा की थाली,
आयी दीवाली, आयी दीवाली।
-अंकित शर्मा इषुप्रिय
दीप जलायें
Poem On Diwali
आओ साथियों दीप जलायें,
मिलकर हम खुशियां मनायें।
दीपक से रौशनी जगायें,
अंधियारे को दूर भगायें।
एक एक दीप जलाकर हम
जग में उजाला लायें।
छोटे बड़े सब मिलकर,
दीवाली का त्योहार मनायें।
मीठे मीठे पकवान बनाकर,
मिल बांट कर हम खायें।
करे शरारत बच्चे मिलकर,
फुलझड़ी घर पर जलायें।
आओ साथियों दीप जलाये,
मिलकर हम खुशियां मनायें।।
-प्रिया देवांगन “प्रियू”
दीपमाला
Poem On
उजले घर उजले आँगन
घर के व्दारे बाग बगीचे
गाँव गली ये चौराहे में
प्रेम के दीपक जले हुए हैं
दीपों की दीपमाला से
बच्चे बूढ़े हँसते गाते
अंधकार को दूर भगाते
स्नेह के हैं दीप जलाते है
घर व्दार को हैं ये सजाते
दीपो की दीपमाला से
उजले कपड़े पहने सब जन
लक्ष्मी जी का शुभ आगमन
आयीं माता शुभ चरणों से
अन्नकूट धेनु को देते
हलधर जन की सेवा करते
दीपो की दीपमाला से
भर भर मुठ्ठी बंटे बतासे
फुलझड़ी और अनार जलाते
गीत प्रेम से सब हैं गाते
आनंद मंगल की बधाई देते
दीपो की दीपमाला से
राष्ट्र प्रेम के धागों में बंधकर
भाईचारे का संदेश देते
दीपो की उज्ज्वलता लेकर
उत्सव मिलकर सभी मनाते
दीपों की दीपमाला से
योगेश ध्रुव भीम
दीपावली
Poem On
टिम -टिम करते दीप धरा में,
लगते कितने प्यारे.
ऐसा लगता आसमान से,
उतर पड़े सब तारे..
दीपों का यह पर्व दीवाली,
लगती कितनी प्यारी.
धम-धमा-धम की लय से,
गूंजे वसुधा सारी..
बच्चों की ये धमा-चौकड़ी,
कितनी खुशियाँ देती है.
घर की सारी नीरवता को,
पल में ही हर लेती है..
आओ, हम सब मिलकर जग में,
प्यार के दीप जलाएँ.
घृणा-द्वेष के भाव को जलते,
दीपों में जला जाएँ..
टेकराम ध्रुव ‘दिनेश’
दीप जलाना दीवाली में
Poem On
दीप जलाना दीवाली में,
खुशी मनाना दीवाली में.
नए नए परिधान पहन के,
तुम इठलाना दीवाली में.
रॉकेट चकरी फुलझड़ी से,
घर दमकाना दीवाली में.
धूम मचाते दीप पर्व का,
गीत सुनाना दीवाली में.
मिष्ठानों से थाल सजा के,
मीत बुलाना दीवाली में.
खुशी खुशी त्यौहार मना के,
प्रीत बढ़ाना दीवाली में.
महेंद्र कुमार वर्मा
फिर आई दिवाली
Poem On
लो भाई देखो, गया दशहरा
फिर आई है दिवाली
पापा मन मैं सोच रहे हैं
हुई जेब अब खाली।
इस कोरोना के आगे हारे
एटम बम, चकरी व अनार
आएगा फिर एक साल में
दीपों का ऐसा त्यौहार।
छूटते थे पटाखे और रॉकेट
और कहीं पर फुलझड़ियाँ
सजी होती जगह जगह पर
नन्हे बल्बों की लड़ियाँ।
छत पर और मुंडेरों पर
झालर, दीपों की देख कतारें
लगता जैसे आसमान में
टिम टिम, टिम चमके तारे।
नन्हे – नन्हे दीपक जलते
लगते कितने प्यारे
इस नन्हे दीपक के आगे
घोर अंधेरा हारे।
मम्मी घर में बना रही हैं
कितने ही पकवान
छककर हम सब तो खाएंगे
होंगे नहीं अब मेहमान।
संध्या को सब मिलजुलकर
करेंगे लक्ष्मीजी की पूजा
झिलमिल झिलमिल,जगमग जगमग
शहर हमारा सबसे दूजा।
राजकुमार जैन राजन
दीप जले
Poem On
दीप जले अविरल
अग-जग के जीवन-पथ का
बन सके सहज संबल
दीप जले अविरल
नहीं रहे अज्ञान अँधेरा
कहे न कोई तेरा – मेरा
दिखे धरा पर खुशियों का ही
जगमग करता सदा सवेरा
देगी हर विपरीत दशा का
नई ज्योति ही हल
दीप जले अविरल ।
मैल हृदय का धुल जाएगा
अमिट स्नेह – पट खुल जाएगा
सुख – समृद्धि , प्रशान्ति सर्वथा
हर कोई प्राणी पाएगा
मस्त अभय , निर्द्वन्द्र निरामय
रहें सभी पल – पल
दीप जले अविरल
द्वेष , घृणा , छल नहीं टिकेगा
भेदभाव हर ओर मिटेगा
आशा – अभिलाषाओं का भी
स्वतः त्वरित परिणाम दिखेगा
हरी – भरी सुन्दर धरती हो
आसमान निर्मल
दीप जले अविरल
कर्म – निरत हों प्राणी सारे
छू लें नभ के चाँद – सितारे
किन्तु कहीं पर भी कोई हो
राह सत्य की ही स्वीकारे
रहे सदा मानव जीवन में
सत्संकल्प अटल
दीप जले अविरल ।
डॉ. विष्णु शास्त्री ‘सरल’
दीपों का त्यौहार
Poem On
आ गया दीपों का त्यौहार
लेकर खुशियों की सौगात
जलेंगी रंग-बिरंगी लड़ियाँ
छूटेंगे पटाखे और फुलझड़ियाँ
होगी साफ-सफाई घर की
मिठाईयों का लगेगा अंबार
सभी को मिलेगा मनभर उपहार
खुशियाँ आयेंगी हमारे घर-द्वार
रोशन होगा सारा जहान
हर आँगन में दीप जलेगा
तम मिटेगा, हर चेहरा खिलेगा
चहुँओर सुनहरा उजाला फैलेगा
गोलू-भोलू, सोनू-रामू की टोली
चकई-चक्का खूब घुमायेंगे
मिलजुल दीपावली मनायेंगे
हँसते मुस्काते चेहरे रोनक लायेंगे
आ गया दीपों का त्यौहार
रंग-बिरंगे कपड़े पहनेंगे
सब मिलकर धूम मचायेंगे
ज्ञान का दीप अमर जलायेंगे
मुकेश कुमार ऋषि वर्मा
तुम बिन सूनी दिवाली
Poem On
तुम बिन सूना सा लगता है
अब तो हर त्यौहार
बेगाना सा लगता है
दीपों से रोशन जहाँ
चहुँ ओर
खुशियाँ ही खुशियाँ
पर मेरे तो अंतर्मन में
तुम बिन
अंधियारा लगता है
दीयों को थाली में सजा के
तुम संग दिये जगमगाए
पुरानी यादों के गुलदस्ते
मुझको महकाने फिर से आए
दिल का रोम-रोम
तुम्हें याद कर फिर से
आशाओं का दीपक जलाएं
काश! तुम आ जाओ
बुझे हुए इस मन में
मोहब्बत की दिवाली
फिर से सजा जाओ।
रेनू शब्दमुखर
दीप जलाएं
Poem On
आओ राजू दीप जलाएं
आज नफरत और बुराई के
अंधियारे को दूर भगाएं
हम सब ऐसा दीप जलाएं
जो हर घर को उजियारा करे
गली-गली और मोहल्ले में
खुशियों का सितारा उड़े
आज कुछ ऐसा दीप जले
जो अंत करे हर लड़ाई
हम सब साथ में मिलकर
खाएं दीवाली की मिठाई
चारों ओर हम दीप जलाएं
अपने दीन-हीन दोस्तों के संग
हंसी-खुशी दीवाली मनाएं.
मो जमील
रखो दीप हजार
Poem On
दीपों का त्यौहार है, करो अंधेरा दूर।
बाहर जग उजियार हो, भीतर भी भरपूर।।
आओ मिलकर प्रण करें, बने सुखी संसार।
सबको खुशियों से भरे, दीपों का त्यौहार।।
जले दीप से जल सकें, दीपक बुझे हज़ार।
एक दीप न जला सकें, दीपक बुझे हज़ार।।
दीपक जल कर दे रहा, अनुपम एक संदेश।
दूजों के हित मिट गया, जीवन वही विशेष।।
दानी न कोई दीप-सा, कहे सकल संसार।
देहदान दधीचि-सा, करे जगत कल्याण।।
दिन में तो सूरज हरे, तमस सकल संसार।
रात अंधेरे पर करे, दीपक नित्य प्रहार।।
अमा निशा में जल रहे, देखो दीप हज़ार।
इन दीपों से पल रहे, कितने ही परिवार।।
डॉ. रवि शर्मा ‘मधुप’
शुभ दीपावली
Poem On
कहीं झालरों की जगमग है
दीपक जले कहीं पर
लगता है कि चांद-सितारे
आये उतर जमीं पर
सतरंगी कुछ इंद्रधनुष-सी
द्वार सजी रंगोली
बिजली जैसी तड़-तड़, तड़-तड़
चली बम-पटाखों की गोली.
कांप गयीं फिर मम्मी डर से
भागी घर के अंदर
गुस्से से हो लाल आ गये
पापा वीर सिकंदर
कहे पटाखों से बढ़ता है
पर्यावरण प्रदूषण
बात हमारी मान
शौक ये त्यागो बच्चों तत्क्षण
फेंक दिये फिर सभी पटाखे
सोच समझ कर बच्चे
इसीलिए कहते हैं
बच्चे होते मन के सच्चे.
किरण सिंह