गर्मी आईं
Poem On Summer Season
बीती सर्दी, खत्म परीक्षा,
बंद स्कूल, बंद पढ़ाई,
घर में रह कर हम ने भी,
खूब ही धूम मचाई।
गरमी आई।
मुना तो पीता था दूध,
दी चाय को विदाई,
पिताजी लाते खरबूजे,
हम खाते दही मलाई।
गरमी आई।
बाहर जा कर खेलने को,
मां करती हैं मनाई,
पर जातीं खुद बाहर,
कहती, “करो पढ़ाई।
गरमी आई।
साल भर तो पड़ी किताबें,
अब मनोरंजन की बारी आई,
पिताजी ने मुनिया को ‘चंपक’,
गौरव को ‘सुमन सौरभ दिलाई।
गरमी आई।
छुट्टी दिलाती, मौज कराती,
जगहजगह की सैर कराती,
कोई कहे अच्छी है सर्दी,
हम को तो गरमी भाती।
गरमी आई।
जब भी गरमी आती है,
कर देती अमीरों को बेहाल,
वे तो जाते शिमला मसूरी,
पर हम जाते हैं ननिहाल।
गरमी आई।
सुरेशकुमार तंबर
गर्मी आई
Poem On Summer Season In Hindi
आई रे आई, गर्मी आई,
ठंडी आइसक्रीम मन को भाया।
छोड़कर अब कंबल रजाई,
कूलर पंखा मन को भाया।
खट्टे मीठे आम और अंगूर,
रसभरे तरबूज ने प्यास बुझाई।
लौकी कद्रू भिंडी और ककड़ी,
दादी का मन फिर ललचाया।
आग सी जल रही है धरती,
मौसम ने ली है अँगड़ाई।
पेड़ों पर लदे पलाश के फूल,
खेत है फिर से मुस्काया।
-पुष्पलता साहू
गर्मी की ऋतु आई
Poem On Summer Season In Hindi
गर्मी ऋतु अब देखो बहकी,
आम के पेड़ पर केरी चहकी।
महुए ने अपना मुँह खोला,
गरम हवा की पायल छनकी।
कंठ सूखता प्यास लपकती,
बोझ आम के शाखा लटकती।
तोता मैना पुस्तक बांचे.
चीं ची करती चिड़िया ठुमकी।
हाथ पैर मुँह बाँध के निकले,
जमे हुए सब देखो पिघले।
तरबजू खरबूज धूम मचाये,
जगह-जगह अब कोयल कुहकी।
-कमल सिंह चौहान