300+ प्रेरणादायक और ज्ञानवर्धक कहानियां | Story In Hindi or Kahani

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Story in Hindi :- आज यहां पर 300+ नैतिक शिक्षाप्रद पर और ज्ञानवर्धक कहानियों का अनोखा संग्रह (Short Story in Hindi for kids) आपके साथ साझा किया जा रहा है।

यहां मैं बच्चों के लिए नैतिक शिक्षाप्रद पर आधारित कहानियां का संग्रह प्रस्तुत किया जा रहा हैं। यह कहानियां शिक्षकों और लेखक द्वारा लिखी हुई है। इस कहानियों के माध्यम सेे बच्चों के मन में नैतिक शिक्षा के साथ ही साथ नवाचार एवं गुणवत्ता बढ़ाने में भी मदद करेगा। चलिए बिना देरी किए इन कहानियों को पढ़ते हैं।

 

Story in Hindi

 

 

 

Table of Contents

बाधाओं से घबराएं नहीं लड़ें

Short Story In Hindi

 

एक किसान खेत में खेती किया करता था। उस खेत के बीचों-बीच पत्थर का एक हिस्सा जमीन से ऊपर निकला हुआ था, जिससे ठोकर खाकर वह कई बार गिर चुका था।

एक बार किसान का हल पत्थर से टकराकर टूट गया। किसान क्रोधित हो उठा और उसने कहा कि इस चट्टान को जमीन से निकाल कर इस खेत के बाहर फेंक दूंगा।

वह गांव से चार-पांच लोगों को बुला लाया। सब मिलकर फावड़े से पत्थर पर वार करने लगे। पूरा पत्थर जमीन से बाहर निकल आया। वे लोग अचरज में पड़ गए ये तो एक मामूली सा पत्थर निकला? किसान भी आश्चर्य में पड़ गया सालों से जिसे वह एक भारी-भरकम चट्टान समझ रहा था दरअसल वह बस एक छोटा सा पत्थर था। उसे अपने आप पर पछतावा हुआ कि काश उसने पहले ही इसे निकालने का प्रयास किया होता तो ना उसे इतना नुकसान उठाना पड़ता।

नैतिक शिक्षा :-  हम सभी अपने जीवन में भी इस किसान की तरह ही हम भी कई बार जिन्दगी में आने वाली छोटी-छोटी बाधाओं को बहुत बड़ा समझ लेते हैं और उनसे निपटने की बजाए तकलीफ उठाते रहते हैं। जरुरत इस बात की है कि हम बिना समय गंवाएं उन मुसीबतों से लड़ें। दिक्कतों का सामना करने से कतराए नहीं। मुसीबत का सामना करने से मनोबल बढ़ता है और जीवन में आने वाली मुसीबतों से लड़ने की ताकत मिलती है। मुसीबतों से डरे नहीं बल्कि लड़े। महापुरुषों ने कहा कि मुसीबतों से लड़ने से अनभुव मिलता है। जीवन में निखार आता है।

 

अहंकार

Hindi Story For Kids

 

एक बार की बात है, एक गांव में एक मूर्तिकार रहता था। वह ऐसी मूर्तियां बनाता था, जिन्हें देखकर हर किसी को मूर्तियों के जीवित होने का भ्रम हो जाता था। उस मूर्तिकार को अपनी कला पर बड़ा घमंड था।

जीवन के सफर में एक वक्त ऐसा भी आया जब उसे लगने लगा कि अब उसकी मृत्यु होने वाली है। वह परेशानी में पड़ गया।

यमदूतों को भ्रमित करने के लिए उसने एक योजना बनाई। उसने हूबहू अपने जैसी दस मूर्तियां बनाई और खुद उन मूर्तियों के बीच जाकर बैठ गया। यमदूत जब उसे लेने आए तो एक जैसी 11 आकृतियों को देखकर दंग रह गए। वे पहचान नहीं कर पा रहे थे कि उन मूर्तियों में से असली मनुष्य कौन है।

अचानक एक यमदूत को मानव स्वभाव के सबसे बड़े दुर्गुण अहंकार को परखने का विचार आया। उसने मूर्तियों को देखते हुए कहा, “कितनी सुन्दर मूर्तियां हैं मानो कलाकार ने इनमें जान ही फूंक दी हो, लेकिन मूर्तियों में एक त्रुटि है। लगता है मूर्तिकार उस त्रुटि में सुधार करना बिल्कुल भूल गया है।”

यह सुनकर मूर्तिकार का अहंकार जाग उठा। वह बोल उठा, “कैसी त्रुटि?” झट से यमदूत ने उसे पकड़ लिया और हँसते हुए कहा “बस यही गलती कर गए तुम अहंकार में, मूर्तियां बोला नहीं करतीं।”

नैतिक शिक्षा :- अहंकार ने हमेशा मनुष्य को परेशानी और दुख ही दिया है।

 

राजा और उसकी परीक्षा

Moral stories in Hindi

 

एक बहुत ही बुद्धिमान राजा था। उसका काफी बड़ा साम्राज्य था। उसके राज्य में प्रजा हर तरह से खुशहाल थी। राजा को अपने उत्तराधिकारी की तलाश थी। उस राजा के तीन बेटे थे। लेकिन राजा नही चाहता था की पुरानी परंपरा को वह भी दोहराए और सबसे बड़े बेटे को ही गद्दी पर बिठाया जाए। बल्कि वह सबसे बुद्धिमान और काबिल बेटे को सत्ता सौंपना चाहता था। इसलिए राजा ने उत्तराधिकारी के लिए तीनों की परीक्षा लेने का फैसला किया।

एक दिन राजा ने तीनों बेटों को अलग-अलग दिशाओं में भेजा। उसने हर बेटे को सोने का एक-एक सिक्का देते हुए कहा कि वे इसे ऐसी चीज खरीदें, जो पुराने महल को भर दे।

पहले बेटे ने सोचा कि पिता तो सठिया चुके हैं। इस थोड़े से पैसे से इस महल को किसी चीज से कैसे भरा जा सकता है। इसलिए वह एक मयखाने में गया शराब पी और सारा पैसा खर्च डाला।

राजा के दूसरे बेटे ने इससे भी आगे सोचा। वह इस नतीजे पर पहुंचा कि शहर में सबसे सस्ता तो कूड़ा कचरा ही है। इसलिए उसने महल को कचरे से भर दिया।

तीसरे बेटे ने दो दिन तक इस पर चिंतन मनन किया कि महल को सिर्फ एक सिक्के से कैसे भरा जा सकता है। वह वाकई कुछ ऐसा करना चाहता था, जिससे पिता की उम्मीद पूरी होती हो। उसने मोमबत्तियां और लोबान की बतियां खरीदी और फिर पूरे महल को रोशनी और सुगंध से भर दिया। इस तीसरे बेटे की बुद्धिमानी से खुश होकर राजा ने उसे अपना उत्तराधिकारी बनाया।

 नैतिक शिक्षा :-  बुद्धि से कुछ भी पाया जा सकता है।

 

 

सफल जीवन

Moral Stories In Hindi

 

पुत्र ने पिता से पूछा- पापा, यह “सफल जीवन” क्या होता है? पिता, बेटे को पतंग उड़ाने ले गए। पुत्र पिता को ध्यान से पतंग उड़ाते देख रहा था। थोड़ी देर बाद पुत्र बोला- पापा, ये धागे की वजह से पतंग और ऊपर नहीं जा पा रही है, क्या हम इसे तोड़ दें, यह और ऊपर चली जाएगी।

पिता ने धागा तोड़ दिया। पतंग हवा के कारण थोड़ा सा और ऊपर गई और उसके बाद लहरा कर नीचे आयी और दूर अनजान जगह पर जा कर गिर गई। तब पिता ने पुत्र को जीवन का मार्ग समझाया। बेटा, जिंदगी में हम जिस ऊंचाई पर हैं, हमें अक्सर लगता की कुछ चीजें, जिनसे हम बंधे हैं। वह हमें और ऊपर जाने से रोक रही हैं, जैसे- घर-परिवार, अनुशासन, माता-पिता-गुरु इत्यादि। और हम उनसे आजाद होना चाहते हैं।

वास्तव में यही वह धागे होते हैं, जो हमें उस ऊंचाई पर बना के रखते हैं। इन धागों के बिना हम एक बार तो ऊपर जायेंगे, परन्तु बाद में हमारा वो ही हश्र होगा जो बिन धागे की पतंग का हुआ। अत: जीवन में यदि तुम ऊंचाइयों पर बने रहना चाहते हो, तो कभी भी इन धागों से रिश्ता मत तोड़ना। धागे और पतंग जैसे जुड़ाव के सफल संतुलन से मिली हुई ऊंचाई को ही “सफल जीवन” कहते हैं।

 

 

संघर्ष का महत्व

Moral Stories In Hindi For Kids

 

लगातार प्राकृतिक आपदाओं से परेशान एक किसान ईश्वर से बड़ा नाराज हो गया। तंग आ कर उसने ईश्वर से कहा- एक साल मुझे मौका दीजिए, जैसा मैं चाहूँ वैसा मौसम हो, फिर आप देखना मै कैसे अन्न के भण्डार भर दूंगा।

ईश्वर मुस्कुराए और कहा- ठीक है, जैसा तुम कहोगे वैसा ही मौसम दूंगा। अब, किसान ने गेहूं की फ़सल बोई, जिसमें उसे मनचाहा मौसम मिला। लेकिन जैसे ही किसान फसल काटने लगा, एकदम से छाती पर हाथ रख कर बैठ गया। गेहूं की एक भी बाली के अन्दर गेहूं नहीं था, सारी बालियाँ अन्दर से खाली थी।

बड़ा दुखी होकर उसने ईश्वर से कहा- प्रभु ये क्या हुआ ? तब ईश्वर बोले- ये तो होना ही था, तुमने पौधों को संघर्ष का जरा सा भी मौका नहीं दिया। ना तेज धूप में उनको तपने दिया, ना आंधी ओलों से जूझने दिया, उनको किसी प्रकार की चुनौती का अहसास जरा भी नहीं होने दिया, इसीलिए सब पौधे खोखले रह गए। जब आंधी आती है, तेज बारिश होती है ओले गिरते हैं तब पौधा अपने बल से ही खड़ा रहता है, वो अपना अस्तित्व बचाने का संघर्ष करता है और इस संघर्ष से जो बल पैदा होता है वो ही उसे शक्ति देता है, उर्जा देता है।

सोने को भी कुंदन बनने के लिए आग में तपने, हथौड़ी से पिटने, गलने जैसी चुनौतियों से गुजरना पड़ता है तभी उसकी स्वर्णिम आभा उभरती है, उसे अनमोल बनाती है।

नैतिक शिक्षा :- जिंदगी में भी अगर संघर्ष ना हो, चुनौती ना हो तो मनुष्य खोखला ही रह जाता है, उसके अन्दर कोई गुण नहीं आ पाता।

 

माँ की सीख

Moral Stories In Hindi

 

ईश्वरचंद विद्यासागर के बचपन की यह एक सच्ची घटना पर आधारित कहानी है।

एक सवेरे उनके घर के द्वार पर एक भिखारी आया। उसको हाथ फैलाये देख ईश्वरचंद विद्यासागर के मन में करुणा उमड़ी। वे तुरंत घर के अंदर गए और उन्होंने अपनी माँ से कहा कि वे उस भिखारी को कुछ दे दें। माँ के पास उस समय कुछ भी नहीं था सिवाय उनके कंगन के। उन्होंने अपना कंगन उतारकर ईश्वरचंद विद्यासागर के हाथ में रख दिया और कहा- जिस दिन तुम बड़े हो जाओगे, उस दिन मेरे लिए दूसरा कंगन बनवा देना अभी इसे बेचकर जरूरतमंदों की सहायता कर दो।

बड़े होने पर ईश्वरचंद विद्यासागर ने अपनी पहली कमाई से अपनी माँ के लिए सोने के कंगन बनवाकर ले गए और उन्होंने माँ से कहा- माँ! आज मैंने बचपन का तुम्हारा कर्ज उतार दिया।

उनकी माँ ने कहा- बेटे! मेरा कर्ज तो उस दिन उतर पायेगा, जिस दिन किसी और जरूरतमंद के लिए मुझे ये कंगन दोबारा नहीं उतारने होंगे।

माँ की द्वारा दी यह सीख ईश्वरचंद विद्यासागर के दिल को छू गयीं और उन्होंने उसी क्षण यह प्रण किया कि वे अपना जीवन गरीब-दुखियों की सेवा करने और उनके कष्ट हरने में व्यतीत करेंगे और उन्होंने अपना सारा जीवन ऐसा ही किया।

नैतिक शिक्षा :- महापुरूषों के जीवन कभी भी एक दिन में तैयार नहीं होते। अपना व्यक्तित्व गढ़ने के लिए वे कई कष्ट और कठिनाइयों के दौर से गुजरते हैं और हर महापुरूष का जीवन कहीं न कहीं अपनी माँ की शिक्षाओं से बहुत प्रभावित रहता है। इसलिए कहा गया है कि मां के सिवा संसार में अच्छा गुरु कोई नहीं है।

 

साधु और तोता

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एक साधु के आश्रम में एक शिष्य कहीं से एक तोता ले आया और उसे पिंजरे में रख लिया। साधु ने कई बार शिष्य से कहा कि इस पक्षी को यूं ही कैद न करो। परतन्त्रता संसार का सबसे बड़ा अभिशाप है। किन्तु शिष्य साधु की आज्ञा न मानकर उसे पिंजरे में कैद कर दिया।

साधु ने सोचा कि क्यों न तोते को ही स्वतंत्र होने का पाठ पढ़ाना चाहिए। उन्होंने पिंजरा अपनी कुटीया में मंगवा लिया और तोते को नित्य ही सिखाने लगे। ”पिंजरा छौड़ दो, उड़ जाओ”।

कुछ दिन में तोते को वाक्य भली-भांति रट गया। एक दिन सफाई करते समय भूल से पिंजरा खुल रहा गया। साधु कुटी में आये तो देखा कि तोता बाहर निकल आया है और बड़े आराम से घूम रहा है। साथ ही ऊंचे स्वर में कह रहा है-“पिंजरा छोड़ दो, उड़ जाओ”।

साधु को आता देख वह पुनः पिंजरे के अन्दर चला गया और अपना पाठ बड़े जोर-जोर से दुहराने लगा। साधु को यह देखकर आश्चर्य हुआ और दुःख भी हुएं। वे सोचते रहे, इसने केवल शब्द को ही याद किया। यदि यह इसका अर्थ भी जानता होता तो यह इस पिंजरे से स्वतंत्र हो गया होता।

 

 

बुजुर्ग की सलाह

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राज्य में एक सरफिरा राजा था। एक बार उसने ये निर्णय लिया वृद्ध लोग किसी काम के नहीं होते अतः उन्हें अपने राज्य से बाहर निकाल देना चाहिए। राजा के आदेश का पालन हुआ और पूरे राज्य से बुजुर्गों को बाहर निकाल दिया गया। इस तरह वो राज्य बुद्धिमान और अनुभवी बुजुर्गों से खाली हो गया।

राज्य में एक व्यक्ति अपने पिता से बहुत प्रेम करता था। उसने अपने पिता को दूसरों की नजरों से छिपाकर तहखाने में छिपा लिया और देखभाल करने लगा।

कुछ साल बाद उस राज्य में भीषण अकाल पड़ा और जनता दाने-दाने को मोहताज हो गई। परंतु बुआई के लिए एक दाना भी नहीं था। सभी परेशान थे। अपने बच्चे की परेशानी देख कर उस वृद्ध ने, जिसे बचा लिया गया था बच्चे से कहा कि वो सड़क के किनारे-किनारे दोनों तरफ जहां तक बन पड़े हल चला ले। उसने स्वयं जितना बन पड़ा सड़क के दोनों ओर हल चला दिए। थोड़े ही दिनों में सड़क के किनारे-किनारे जहां जहां हल चलाया गया था, अनाज के पौधे उग आए। बात राजा तक पहुंची। राजा ने उस युवक को बुलाया और युवक ने सारी बात सच-सच बता दी। राजा ने उस बुजुर्ग को से पूछा कि आपके मन में ये विचार कैसे आया कि सड़क के किनारे हल चलाने से अनाज के पौधे उग आएंगे। वृद्ध ने कहा, जब लोग अपने खेतों से अनाज घर ले जाते हैं तो बहुत सारे दाने बीच सड़कों के किनारे गिर जाते हैं। आज वही दाने पौधे बन गए हैं। राजा ने राज्य के सभी बुजुर्गों को दोबारा अपने यहां बुलवा लिया।

 

 

सिद्ध पुरूष और चुहिया

Moral Stories In Hindi

एक सिद्ध पुरूष नदी में स्नान कर रहे थे। एक चुहिया पानी में बहती हुई आयी। उन्होंने उसे निकाला और कुटिया में ले आये। वही वह पलकर बड़ी होने लगी। चुहिया सिद्ध पुरूष की करामातें देखती रही। उसके मन में भी कुछ वरदान पाने की इच्छा हुई।

एक दिन अवसर पाकर बोली- अब मैं बड़ी हो गयी। किसी बड़े से मेरा विवाह करा दीजिए। संत ने उसे खिड़की में से झांकते सूरज को दिखाया और कहा-‘इससे करा दें।’

चुहिया ने कहा- यह तो आग को गोला है। मुझे तो ठंडे स्वभाव का चाहिए।

सन्त ने बादल की बात कहीं। वह ठंडा भी है, और सूरज से बड़ा भी। वह आता है तो सूरज को से आंचल में छुपा लेता है।’ चुहिया को यह प्रस्ताव भी जंचा नहीं। वह इससे बड़ा दुल्हा चाहती थी।

संत ने पवन को बादल से बड़ा बताया। जो देखते-देखते उसे उड़ा ले जाता है। इससे बड़ा पर्वत बताया, जो हवा को रोककर खड़ा हो जाता है। जब चुहिया ने यह दोनों भी अस्वीकार कर दिये, तो सिद्ध पुरूष ने पूरे जोश के साथ कहा- चूहा पर्वत से बड़ा है। वह बिल बनाकर पर्वतों की जड़ खोखली करने में समर्थ है।

चुहिया रजामन्द हो गई। एक मोटा चूहा बुलाकर संत ने शादी रचा दी। फिर सिद्ध पुरूष ने मन ही मन सोचा, सोच और सुख की खोज लोग अपने स्तर और दृष्टिकोण के अनुरूप ही करते हैं।

 

बाज़ और चिड़िया

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बहुत समय पहले की बात है। चंपकवन के जंगल में सभी पक्षियां आपस में मिल-जूलकर रहा करती थी। उस समय बड़े पक्षी छोटे पक्षियों के साथ मित्रता का व्यवहार करा करते थे। उस चंपकवन के जंगल में एक बाज रहा करता था। एक दिन वह सवेरे-सवेरे उड़ रहा था। उसी समय उसे एक पेड़ पर हिलती हुई एक लाल रंग की वस्तु दिखाई दी। उसे देख कर बाज डर गया।

बाज अपने जीवनकाल में इस तरह का रंगीन वस्तु पहले कभी नहीं देखा था। उसने किसी तरह से हिम्मत जुटा के उस के समीप पहुंचा। उसके पास जाने पर उसमें कोई हरकत नहीं हुई। तब जाकर बाज का हिम्मत ओर बढ़ गया। फिर वह आगे बढ़ कर बंधी हुई रस्सी को अपने पंजें से स्पर्श किया तो उसे किसी तरह का कोई हरकत महसूस नहीं हुआं। बाज ने चैंन की सांस ली।

बाज़ अपने चोंच में दबा कर उस रंगीन वस्तु को उठा कर अपने घोंसले की तरफ चल दिया। जैसे ही वह अपने घोंसले की तरफ उड़ान भरता है, उसे सामने वाले पेड़ पर एक चिड़िया दिखाई पड़ा।

चिड़िया बाज को देख कर बोली, ‘नमस्कार बाज भाई, यह सुबह सुबह गुब्बारा लेकर कहां घुम रहे हो।

बाज़ ने कहा कि – गुब्बारा? यह गुब्बारा क्या होता हैं?

चिड़िया हंसते हुए बोली कि आप सच में गुब्बारा को नहीं जानते हैं। बाज ने सिर हिलाते हुए कहा कि, नहीं, मैं नहीं जानता।चिड़िया ने कहा कि यह आपकी चोंच में क्या है? लाल रंग की वस्तु को इशारा करते हुए पूछती हैं।

बाज़ खूब जोर जोर से हंसते हुए बोला ‘हो हो हो’, मैं नहीं जानता कि यह क्या है? मुझे तो यह एक पेड़ पर लटका हुआ पड़ा था। मैंने सोचा कि कोई विचित्र जानवर है परन्तु इस में कोई हरकत न होत देख खुशी के मारे इसे अपने साथ उठा कर अपने साथ लेकर चला आया।

बाज़ की बात सुनकर चिड़िया हंसते हुए बोली कि यह कोई विचित्र जानवर नहीं है बल्कि यह एक “गुब्बारा ” हैं। इसमें हवा भरी हुई होती है। इसके सिर पर धागा बांध कर हवा में नचाया जाता हैं। और इसके साथ खेलने में भी खूब मज़ा आता है।

बाज़ ने झट से कहा, ” कैसे,?

चिड़िया ने तुरंत गुब्बारे के सिर पर बंधी रस्सी को पकड़ हवा में जा उड़ती है। गुब्बारा हवा में नाचने लग जाता है। यह देखकर बाज़ अतिप्रसन्न हो जाता है।

बाज़ को कुछ दूर स्थान पर एक चमकती हुई मांस की हड्डी दिखाई पड़ा। वह लाल गुब्बारे को भूलकर मांस की हड्डी पर चला जाता हैं। वह चिड़िया से कहती है कि,” चिड़िया रानी” , मेरे इस गुब्बारे का ध्यान देना। मैं इसके साथ बाद में खेलूंगा। यह कहकर बाज़ वहां से उड़ कर चला जाता हैं।,

‘अच्छा ठीक है बाज़ भाई, चिड़िया बोली।’ चिड़िया गुब्बारे के साथ देरी से खेलती रही। वह गुब्बारे के साथ खेल खेलकर थक भी चुकी थी। बाद में वह अपने घोंसले पर भी चली गई। फिर भी बाज़ नहीं आया। यह देखकर चिड़िया परेशान हो जाती हैं। उसे याद आया कि गुब्बारे के चक्कर में उसने भोजन भी नहीं किया। भूख-प्यास के कारण उसने गुस्से में गुब्बारे को चोंच से मार दिया। जिससे गुब्बारा फूट जाता है।

‘आगे क्या होगा।’ यह सोच कर चिड़िया डर जाती हैं। वह फूटे हुए गुब्बारे को छोड़कर भोजन की तलाश में चली जाती हैं।

कुछ समय के पश्चात बाज़ मांस की हड्डी को चूसने के बाद उसे अपने गुब्बारे की याद आता है। वह तुरंत उड़ कर गुब्बारे वाले के स्थान पर पहुंच गया। उस स्थान पर चिड़िया को न पाकर और फूटे हुए गुब्बारे को देख कर बाज़ गुस्से से आग बबूला हो जाता हैं।

बाज़ तुरंत चिड़िया के घोंसले पर पहुंच गया। वह जोर जोर से चिड़ियां को आवाज देने लगता है। मेरा गुब्बारे को तूने क्यों फोड़ा। चिड़िया अपने पेड़ के घोंसले वाले खोल में दुबकी बैठी थी। वह यह सब बातें सुनकर डर रही थी कि कहीं बाज़ गुस्से में उसे मार न दे। बाज़ कहकर थक वहां से चला जाता हैं। और इस घटना से बाद चिड़िया बाज़ से डरने लग जाती हैं। अब बाज़ भी चिड़िया को पकड़ने की फिराक में रहने लग जाता है। तभी से इन दोनों में दुश्मनी शुरू हो जाती हैं।

Moral Stories In Hindi For Kids

नैतिक शिक्षा : – क्रोध में किया गया कार्य हमेशा नई मुसीबत और संकट का ही सामना करना पड़ता है।

 

शिकारी और बाज

Short Moral Stories In Hindi

एक बार एक शिकारी जंगल में शिकार करने के लिए गया। बहुत प्रयास करने के बाद उसने जाल में एक बाज पकड़ लिया।शिकारी जब बाज को लेकर जाने लगा तब रास्ते में बाज ने शिकारी से कहा, “तुम मुझे लेकर क्यों जा रहे हो?”

शिकारी बोला, “ मैं तुम्हे मारकर खाने के लिए ले जा रहा हूँ।”

बाज ने सोचा कि अब तो मेरी मृत्यु निश्चित है। वह कुछ देर यूँही शांत रहा और फिर कुछ सोचकर बोला, “देखो, मुझे जितना जीवन जीना था मैंने जी लिया और अब मेरा मरना निश्चित है, लेकिन मरने से पहले मेरी एक आखिरी इच्छा है।”

“बताओ अपनी इच्छा?”, शिकारी ने उत्सुकता से पूछा।

बाज ने बताना शुरू किया- मरने से पहले मैं तुम्हें दो सीख देना चाहता हूँ, इसे तुम ध्यान से सुनना और सदा याद रखना।

पहली सीख तो यह कि किसी कि बातों का बिना प्रमाण, बिना सोचे-समझे विश्वास मत करना।

और दूसरी ये कि यदि तुम्हारे साथ कुछ बुरा हो या तुम्हारे हाथ से कुछ छूट जाए तो उसके लिए कभी दुखी मत होना। शिकारी ने बाज की बात सुनी और अपने रास्ते आगे बढ़ने लगा।

कुछ समय बाद बाज ने शिकारी से कहा- “ शिकारी, एक बात बताओ। अगर मैं तुम्हे कुछ ऐसा दे दूँ जिससे तुम रातों-रात अमीर बन जाओ तो क्या तुम मुझे आज़ाद कर दोगे?”

शिकारी फ़ौरन रुका और बोला, “ क्या है वो चीज, जल्दी बताओ?”

बाज बोला, “ दरअसल, बहुत पहले मुझे राजमहल के करीब एक हीरा मिला था, जिसे उठा कर मैंने एक गुप्त स्थान पर रख दिया था। अगर आज मैं मर जाऊँगा तो वो हीरा इसे ही बेकार चला जाएगा, इसलिए मैंने सोचा कि अगर तुम उसके बदले मुझे छोड़ दो तो मेरी जान भी बच जायेगी और तुम्हारी गरीब भी हमेशा के लिए मिट जायेगी।”

यह सुनते ही शिकारी ने बिना कुछ सोचे समझे बाज को आजाद कर दिया और वो हीरा लाने को कहा।

बाज तुरंत उड़ कर पेड़ की एक ऊँची साखा पर जा बैठा और बोला, “ कुछ देर पहले ही मैंने तुम्हे एक सीख दी थी कि किसी के भी बातों का तुरंत विश्वास मत करना लेकिन तुमने उस सीख का पालन नही किया। दरअसल, मेरे पास कोई हीरा नहीं है और अब मैं आज़ाद हूँ।

यह सुनते ही शिकारी मायूस हो पछताने लगा। तभी बाज फिर बोला, तुम मेरी दूसरी सीख भूल गए कि अगर कुछ तुम्हारे साथ कुछ बुरा हो तो उसके लिए तुम कभी पछतावा मत करना।

 

नैतिक शिक्षा :- इस कहानी से हमें ये सीख मिलती है कि हमे किसी अनजान व्यक्ति पर आसानी से विश्वास नहीं करना चाहिए और किसी प्रकार का नुकसान होने या असफलता मिलने पर दुखी नहीं होना चाहिए, बल्कि उस बात से सीख लेकर भविष्य में सतर्क रहना चाहिए।

 

चीकू खरगोश और उसका बैंक

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यह उस समय की बात है। जब सुन्दरवन के जंगलों में एक नई मुसीबत आ गई थी। सभी जंगलवासी कई दिनों से परेशान थे। परेशानी का मुख्य वजह था- कई दिन से लगातार बारिश होना। लगातार बारिश होने के कारण उनका कामकाज कई दिन से ठप चल रहा था। धीरे धीरे सभी जानवरों को पेट भरने की समस्या होने लग गई।

उस सुन्दरवन के जंगलों में एक चीकू खरगोश भी रहा करता था। वह बहुत ही चालाक और बुद्धिमान था। उसका भी सारा व्यापार बारिश के कारण नहीं चल पा रहा था। सभी जानवर अपने अपने घरों में छिपकर बैठे हुए थे।

अचानक से चीकू खरगोश को एक सुंदर सा उपाय सूझा। वह अपने माता-पिता को उपाय बताते हुए कहता है कि, मां-पिताजी हमलोगों के जंगलों में इसी तरह से लगातार बारिश आते रहता है। हमलोग बारिश में छिप कर घर में बैठे रहते हैं। हमें खाने की भी किल्लत पड़ी रहती है। मेरे पास एक उपाय है क्यों न अपने जंगल में एक भोजन बैंक खोल दिया जाएं। इसमें सभी जानवर अपना अपना भोजन सुरक्षित रख सकते हैं। और संकट जैसी आपदा में इसका इस्तेमाल कर सकते हैं।

चीकू खरगोश की यह बात सुनकर उसके माता-पिता बहुत ही खुश होते हैं और कहते हैं कि बेटा चीकू तुम्हारा यह सोच हमें बहुत ही पसंद हैं। लेकिन हम लोग इस जंगल का राजा नहीं है। जैसे ही बारिश खत्म होगा। तुम यह उपाय जंगल का महाराज शेरसिंह को बताना। चीकू खरगोश बारिश खत्म होने का इंतज़ार करने लग गया।

जैसे ही बारिश खत्म हुआ चीकू खरगोश जंगल के राजा के पास चला जाता हैं।

चीकू खरगोश जंगल के राजा को अभिनन्दन करता है। और नम्रता के साथ महाराज मेरे पास बहुत ही सुन्दर एक उपाय है।

शेरसिंह ने कहा कि- कैसा उपाय?

चीकू खरगोश ने कहा कि महाराज बारिश के समय हम सभी लोग अपने अपने घरों में छिपकर जा बैठते हैं। और हमें भोजन की किल्लत होने लगती हैं। मेरे पास एक उपाय है जिसमें सभी समस्या का समाधान छुपा हुआ है।

शेरसिंह ने कहा कि, “जल्दी बताओ”

चीकू खरगोश कहता है कि महाराज हमलोग जंगल में एक भोजन बैंक खोल सकते हैं। जिसमें सभी जानवर अपना अपना भोजन सुरक्षित रख सकते हैं। और आपदा या संकट के समय उनका इस्तेमाल भी कर सकते हैं। इससे सभी जंगलवासी अपना सुखमय जीवन बिता सकते हैं।

शेरसिंह को चीकू खरगोश का उपाय सही लगा। अन्य जानवरों को भी यह विचार पसंद आया। आखिरकार महाराज के आदेश के अनुसार जंगल में एक भोजन बैंक खूल गया।

जंगल का राजा शेरसिंह ने चीकू खरगोश को भोजन बैंक का मैनेजर बना दिया और चौकीदार के रूप में मंकी बन्दर को बनाया गया। सुन्दर वन के सभी जानवर भालु, हाथी, लोमड़ी, ऊंट, चींटी, भेड़िया, अन्य जानवरों ने भी अपना भोजन बैंक का खाता खोलने के लिए आएं।

मिठु तोताराम अपना मिर्च लाता तो, भोलुराम ने अपना शहद लाता और भल्लू भेड़िया अपना गोश्त लाकर रखता। इस तरह से सभी जानवर कुछ न कुछ खाने की सामान रखने लगे।

कुछ दिनों के बाद भोजन बैंक में चोरी होने लगी। बैंक में रखी सामानों की चोरी दिन पर दिन बढ़ने लग गई। इससे जानवरों की परेशानी बढ़ने लग गई। इस चोरी का मामला शेरसिंह के दरबार में पहुंचा।

शेरसिंह ने चीकू खरगोश को बुलाया और कहा कि तुम भोजन बैंक का मैनेजर हो और फिर भी वहां पर चोरियां कैसे हो रहा है। चीकू खरगोश ने महाराज शेर सिंह से क्षमा मांगा। चीकू खरगोश ने कहा कि महाराज कुछ दिनों का समय दिजिए। मैं सामानों की चोरी का पता लगाता हूं।

चीकू खरगोश वहां से चला जाता हैं। वह तुरंत भोजन बैंक में जाकर चोरी की गई सामानों का छानबीन करने लग गया। वहां पर उसे एक काले रंग का पंख मिला। चीकू खरगोश ने वह पंख को लेकर मिठु तोताराम के पास चला गया। मिठु तोताराम सभी तरह के पक्षियों के बारे में जानकारीयां रखता था। जैसे ही चीकू खरगोश ने उस पंख को दिखाया। मिठु तोताराम ने झट से कहा कि यह तो घमंडी काले गिद्ध का पंख हैं। मगर उसे पकड़ना बहुत ही कठीन कार्य है। वह बहुत ही तेज गति से उड़ान भरता है।

चीकू खरगोश ने अपना दिमाग लगाना शुरू कर दिया। उसे कुछ समय के पश्चात एक तरकीब सोचा। वह चौकीदार मंकी बन्दर को अपने साथ लेकर भोलुराम के घर पर पहुंच गया। चीकू खरगोश ने भोलुराम से कहा कि, ” भोलु भईया आप हमें कुछ शहद लाकर भोजन बैंक में रखवा दिजिए। भालूराम ने सहयोग देने का वादा किया।

भोलु राम ने आदेश के अनुसार शहद का मटका भोजन बैंक में रख दिया। चीकू खरगोश और मंकी बन्दर ने उस शहद को इकट्ठा की गई भोजन पर डाल दिया।

चीकू खरगोश और मंकी बन्दर दोनों झाड़ियों में छिपकर घमंडी गिद्ध का इंतज़ार करने लग गए।

शाम के समय जैसे ही गिद्ध भोजन बैंक में घुसा और भोजन को जैसी ही लेकर भागने की कोशिश की उसका पंख शहद में लबालब हो गया। वह चाहकर भी उड़ नहीं पाता। वह निढाल होकर जमीन पर पड़ा रहा। चीकू खरगोश और मंकी बन्दर ने देखा कि गिद्ध बेबस होकर पड़ा हुआ है। चीकू खरगोश ने तुरंत लाल चीटियों को सेना को इशारा किया और उन्होंने कुछ ही क्षणों में गिद्ध का काम तमाम कर दिया। उस के बाद, फिर कभी बैंक में चोरी नहीं हुई। जंगल दिन पर दिन तरक्की करने लगा और सभी जानवर खुशहाली से जीवन बिताने लग गए।

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नैतिक शिक्षा :- कठिन परिस्थिति में भी अपने विचार को सहेलें। कोई भी कार्य या उद्देश्य करने से होते हैं, सोचने से नहीं।

 

बंदर और गाय

Moral Story In Hindi

किसी घने जंगल में एक सीधी-सादी एक गाय रहती थी। उसे एक बंदर बहुत तंग किया करता था। जब भी गाय नहाने के लिए तालाब में जाती तो, बंदर उसकी पीठ पर बैठ जाता और खूब कूद मारता। और बेचारी गाय उसे कुछ नहीं करती। जब गाय तालाब से बाहर निकलती, तो बंदर पेड़ पर चढ़कर उस पर पत्थर मारता। गाय अपने बच्चे की तरह समझ कर बंदर को हमेशा माफ़ कर देती थी। लेकिन बंदर की शैतानी दिन पर दिन बढ़ती ही जा रहा था।

एक दिन जंगल के देवता प्रकट हुए और गाय से पूछा कि वह बंदर का दुष्टता चुपचाप क्यों सहन करती हो? ऐसा करने से तो बंदर का साहस ओर भी बढ़ जाएगा। वह तुम्हारे और अन्य दूसरे जानवरों को भी सताने लगेगा।

गाय ने कहा कि,”बंदर शक्ति में मेरे से बहुत कम है। इसी से मैं हंस कर सब सहन कर लेती हूं। मेरे बराबर बलवान कोई ओर होता वह ऐसा करता, तो मैं उसे सबक अवश्य सिखाती।”

जंगल के देवता बिना कुछ कहे चले गए, तो गाय ने सोचा कि इस दुष्ट बंदर नादानी दिन पर दिन बढ़ती ही जा रहा है। इस शैतानी बंदर को सबक सिखाना बहुत जरूरी है। इसे इसी के बल के अनुसार दंड तो मिलना ही चाहिए, ताकि यह दूसरों को न सता सके।

अगले दिन गाय नहाने के लिए तालाब में गई। तो बंदर अपनी आदत के अनुसार उसकी पीठ पर जा बैठा। और फिर उछल-कूद मचाने लग गया। गाय इसी अवसर का ही इंतजार कर रही थी। उसने तुरंत पानी में डुबकी लगानी शुरू कर दी। और गाय तालाब के गहरे पानी की ओर जाने लग गई। बंदर पानी में डुब कर उतराने लग गया। जान बचाने के लिए वह जोरों से शोर मचाने लगा।

जंगल के सारे जानवर उसकी दुर्दशा को देखकर हंसने लग गए। कोई भी बंदर का मदद के लिए आगे न बढ़ा। बंदर पानी में बेजान-सा होने लग गया।

गाय समझ चुकी थी कि उसने बंदर को पानी से बाहर निकला। बंदर तो बच गया, किंतु उसकी दुष्टता सदा-सदा के लिए खत्म हो गई।

Moral Stories For Kids In Hindi

नैतिक शिक्षा :- जो जैसा कर्म करता है उसे उसी प्रकार का फल प्राप्त होता है।

 

शरारती चिंटू बंदर

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चिंटू बंदर जब छोटा था। उसके पिताजी को शिकारियों ने बेरहम गोलियों से छलनी कर दिया था। चिंटू के पिताजी के मरने के पश्चात उसके मां ने उसे देखभाल किया। चिंटू बंदर की मां अपने बेटे चिंटू को बड़ी लाड़ प्यार से पाला। चिंटू के पिताजी के साया न होने पर और मां की ज्यादा लाड़ प्यार से चिंटू बंदर को शरारती बना दिया।

वह दिन भर शरारती भरी कार्य करता रहता था। घर में कभी किसी सामान को छिपा देना। वह उसका आदत सा बन गया था। चिंटू की मां चिंटू से हमेशा परेशान रहती थी। वह हमेशा चिंटू को समझाती थी कि बेटा शरारत नहीं किया करते। चिंटू बार बार यही कहता कि मां मैं अभी छोटा सा बच्चा हूं। यही कहकर हमेशा टाल देता था। चिंटू बंदर का शरारत दिन पर दिन बढ़ता ही जा रहा था।

चिंटू की मां एक दिन बड़ी चाव से पुआ पकवान बनातीं हैं और अपने प्यारे चिंटू को समझाती है कि बेटा तुम अब बड़े हो रहे हो। शरारत नहीं किया करते लेकिन चिंटू अपनी मां की बातों पर ध्यान नहीं देता है।

गर्मी का समय था। चिंटू बंदर घर के पास वाले पेड़ पर उछल-कूद कर रहा था। तेज़ धूप में खेलने के कारण चिंटू बंदर को गर्म हवा की लू लग जाता हैं। चिंटू की मां अपने बेटे के लिए दवाई लेने के लिए चली जाती हैं और कहती हैं कि चिंटू बेटा घर से बाहर मत निकलना। कहते हुए दवाई लेने चली जाती हैं।

मां को जाने के तुरंत पश्चात ही चिंटू बंदर खेलने के लिए बाहर निकल जाता है। चिंटू बंदर को यह मालूम ही नहीं होता हैं वह खेलते खेलते अपने घर से बहुत ही दूर निकल आया है। और इधर सूर्य डूबने की ओर आ गया है। यह देखकर चिंटू बंदर अपने घर की तरफ निकल जाता हैं। मगर चिंटू को घर जाते जाते अंधेरा हो जाता हैं।

चिंटू बंदर अंधेरा और जंगल में अकेला पाकर बहुत ही डर जाता हैं और वहीं पास के पेड़ पर बैठ कर रोने लग जाता हैं।

उसी अंधेरा में रिया बकरी अपने घर की तरफ गुजर रही थी। वह रोने की आवाज सुनकर उस पेड़ के पास गईं और चिंटू बंदर को देखा।

रिया बकरी चिंटू बंदर को रोते हुए कहती हैं कि बेटा चिंटू इतनी दूर यहां क्या कर रहे हो? और यह भी सुनसान जंगल में।

चिंटू बंदर कहा कि, मेरी मां घर पर नहीं थी। मैं चुपके से खेलने के इरादे से यहां पर‌ चला आया। मैं घर की तरफ लौट रहा था। अचानक अंधेरा हो गया, मुझे अंधेरा में बहुत डर लगता है। अगर मैं अपनी मां की बात मानता तो शायद आज यहां नहीं आता और कहकर चिंटू बंदर रोने लग जाता हैं।

रिया बकरी कहती हैं, कि घबराओ मत चिंटू मैं तुम्हारी मां की सहेली हूं। चलों मैं तुम्हें तुम्हारे घर की ओर छोड़ देता हूं। लेकिन आगे से इस बात का ध्यान रखना कि कभी भी बिना किसी को बताएं घर से बाहर नहीं निकलना चाहिए। तुम्हारी मां तुम्हारे लिए कितनी परेशान हो रही होगी।

चिंटू बंदर अब बिल्कुल समझ चुका था कि अगर रिया बकरी मौसी आज यहां नहीं होती तो कोई जानवर मारकर खा जाता। चिंटू बंदर और रिया बकरी आपस में बात करते हुए घर की ओर चल पड़ी।

कुछ दूर जाने के पश्चात चिंटू की मां दिखाई पड़ी। चिंटू अपने मां को देखकर उछल-कूद पड़ता हैैैै। और चिंटू की मां भी अपने बेटे को देखकर उछल-कूद पड़ती हैं। अपनी सहेली रिया बकरी को बहुत बहुत धन्यवाद करतीं हैं। चिंटू बंदर की मां अपनी सहेली रिया बकरी से कहती है कि रिया आज बहुत अंधेरा हो चुका है। आज़ मेरे घर पर आराम कर लेना और साथ ही साथ आज़ की पार्टी मेरी तरफ से। यह बात सुनकर सब आपस में हंसने लग जाते हैं।

 Moral Story In Hindi For Education

नैतिक शिक्षा :- हमें बड़ों की बात का आज्ञा पालन करना चाहिए।

 

लम्बी पूंछ वाला बंदर

Stories In Hindi With Moral

जंगल में बरगद के एक पेड़ पर रहने वाले एक बंदर को अपनी लंबी पूंछ का बड़ा घमंड था। वह छोटी पूंछ वाले जानवरों को‌ अकसर चिढ़ाया करता था।खरगोश,बकरी, सूअर, यहां तक कि हाथी को भी चिढ़ाने से वह बाज नहीं आता था।

वह सब से कहता फिरता-ओ खरगोश,ओ बकरी, ओ सूअर,ओ कुत्ता,‌तेरी पूंछ छोटी,जैसे उगा हो कुकुरमुत्ता, मेरी पूंछ लंबी, जैसे राजा की सोटी, झुकझुक करो सलाम, वरना खाओ मेरी सोटी। और अपनी पूंछ को सोटी की तरह चलाचला कर वह सभी जानवरों को मारने लगता।

उस के साथ कोई नहीं खेलता था। उसे तो बस, अपना गरूर ही प्यारा था। एक दिन जब बंदर बरगद के पेड़ पर सो रहा था, तब बड़ी जोर से आंधी आई। फिर बिजली कड़की और एक बार बिजली‌ आ कर पेड़ पर गिर गई। पेड़ धराशायी हो गया और आसपास आग लग गई। बंदर जान बचा कर भागा, लेकिन उस की पूंछ में आग लग गई। उस की पूंछ जल कर भस्म हो गई। फलतः वह बिना पूंछ का हो गया।

सुबह सभी जानवरों ने बंदर को जब इस रूप में पाया, तब वे हंसहंस कर लोटपोट हो गए। किसी को भी बंदर की पूंछ खो जाने का दुख न हुआ। सभी मिल कर गाने लगे- “बंदर तू हो गया बिना पूंछ का,‌कहां गया अब तेरा सोटा,जा तू, छोड़ हमारा पीछा,”

पूंछ वालों में एक बिना पूंछ का। यह सुन कर बंदर को बड़ी शर्म आई। वह शहर की तरफ भागा। वहां मंदिर में जा कर प्रार्थना करने लगा, “अगर मेरी पूंछ लौट आई तो मैं फल चढ़ाऊंगा”।

तभी मंदिर का पुजारी आ गया और बंदर को देख कर चिल्ला पड़ा, “बंदर-बंदर, बचाओ-बचाओ।

“‌पुजारी की आवाज सुन कर बंदर घबरा गया और उस की चादर खींच कर भाग गया। रास्ते में एक दर्जी की दुकान आई। बंदर दर्जी से कहने लगा, “मेरी पूंछ नहीं है. मेरी पूंछ बना दो।”

दयालु दर्जी बंदर की बात मान गया। बंदर से चादर ले कर उस ने गोलगोल सिल कर उस में रूई भरी और बंदर की पूंछ की जगह पर लगा कर सिल दिया। तब बंदर को दर्द तो बहुत हुआ। लेकिन वह सह गया। अब जंगल में बंदर की नई पूंछ देख कर सभी पशु-पक्षी हैरान रह गए। जबकि बंदर काफी खुश हुआ।

उसे फिर शरारत सूझी। वह पहले की तरह फिर गाने लगा-“ओ खरगोश, ओ बकरी, ओ सूअर, ओ कुत्ता, तेरी पूंछ छोटी, जैसे उगा हो कुकुरमुत्ता, मेरी पूंछ लंबी जैसे राजा की सौटी, झुकझुक करो सलाम,वरना खाओ मेरे से सोटी”।

तब सभी जानवर भाग गए और बंदर खुश हो कर पेड़ पर चढ़ गया। उस रात बड़ी तेज वर्षा हुई। फलतः बंदर की कपड़े की पूंछ‌ भीग गई। इस से वह लटक गई और एक शाखा में फंस गई। जब वह उठा तो पूंछ टूट कर अलग हो गई। अब तो उस के दुखों का अंत नहीं था। दिन भर वह जंगल में छिपता फिरा, लेकिन छोटी पूंछ वाले जानवरों ने उसे देख ही‌ लिया। तब उस की ऐसी गत बनाई कि वह सारी अकड़ भूल गया।

वह अपनी अकड़ और लंबी पूंछ के घमंड पर पछताने लगा और रोने लगा।

इस से पेड़ की शाखा गीली हो गई। वह रोता जाता और कहता जाता,”अगर मुझे मेरी पूंछ वापस मिल जाएगी, तो मैं कभी किसी छोटी पूंछ वाले जानवर को नहीं सताऊंगा.” यही कहते-कहते और रोते-रोते वह सो गया‌।

उस की यह दुर्गती देख कर एक अन्य बंदर को उस पर दया आ गई. उस ने सुबह बताया, “बगल वाले जंगल में एक बहुत अच्छा बंदर डाक्टर रहता है. तुम उस पास चले जाओ. वह आपरेशन कर के नई पूंछ लगा देगा.”

यह जान कर वह बहुत खुश हुआ और तुरंत उस डाक्टर के पास जा कर नई पूंछ लगा देने का अनुरोध किया. डाक्टर ने वैसा ही किया. फलतः तीन-चार दिनों में उस की नई पूंछ निकल आई. यह देख कर बंदर बहुत खुश हुआ और उछलते-कूदते अपने पेड़ पर आ गया।

सुबह बंदर की पूंछ देख कर सभी जानवर हैरान रह गए. उन की हैरानी तब और बढ़ी जब उन लोगों ने देखा कि बंदर अब बदल गया है।

बंदर ने सब को बुलाया और कहा, “ओ खरगोश, ओ बकरी, ओ सूअर, ओ भालू, तुम्हारी पूंछ छोटी जैसे खिले हों फूल,मेरी पूंछ लंबी जैसे फूलों की डाली, मैं ने तुम सब को छेड़ा, यह थी मेरी भूल”।

फिर उस ने कहा, “पूंछ लंबी हो या छोटी, वह तो सब की‌ अपनी-अपनी जैसी सुंदर ही है. यह मेरी भूल थी, जो मैं अकड़ता‌ फिरता था, उस की सजा मुझे मिल गई और मेरी आंखें खुल गईं। तब सब ने एकदूसरे का हाथ पकड़ कर खूब नाचा और गाया। अब बंदर को दूसरे जानवरों के साथ खेलने का मजा आने लगा था।

Moral Stories In Hindi For Education

नैतिक शिक्षा :- किसी ने सच ही कहा है कि घमंड और अकड़ एक दिन जरूर टुटता हैं।

 

प्रार्थना हो तो ऐसी

Moral Stories In Hindi

 

सन् 1884 में, जब नरेन्द्रनाथ (स्वामी विवेकानंद) अपनी बी.ए की परीक्षा की तैयारी कर रहे थे, तब उनके परिवार पर एक भारी आफत आ गई। उनके पिताजी विश्वनाथजी की अचानक मृत्यु हो गई और पूरा परिवार अत्यंत शोक में डूब गया। पिताजी ने पूरी ज़िंदगी अपनी सामर्थ्य (शक्ति) से बाहर खर्च किया था। इसलिए मृत्यु के बाद सभी लेनदार उनके परिवार को बहुत परेशान करने लगे।

बड़े होने के नाते अब पूरे परिवार की ज़िम्मेदारी नरेन्द्रनाथ के सिर पर आ गई। परिवार के सात-आठ सदस्यों का निर्वाह करने के लिए वे नौकरी की खोज़ में भटकने लगे। लेकिन नौकरी मिलने के सभी प्रयत्न निष्फल गए।

अपने परिवार को पर्याप्त खाना मिले इसलिए वे कई बार झूठ बोल देते कि उन्होंने किसी मित्र के यहाँ खाना खा लिया है और कई बार अपने भूखे भाई-बहन और माता को याद करके वे मित्रों से मिले खाने के निमंत्रण को भी अस्वीकार कर देते।

नरेन्द्र के धनवान मित्रों को उनकी कठिन आर्थिक परिस्थिति का पता था फिर भी किसीने उनकी मदद नहीं की और वैसे भी उनका परिवार बहुत स्वाभिमानी था। इसलिए मदद के लिए किसी के सामने हाथ फैलाने का तो उन्हें विचार भी नहीं आया।

नौकरी की खोज़ में वे कई बार भूखे-प्यासे ही निकल पड़ते थे। उनके कई मित्रों ने उन्हें अप्रमाणिक ढंग से पैसे कमाने की प्रेरणा दी पर नरेन्द्रनाथ साफ मना कर देते थे। एक दिन, हर रोज़ की तरह नौकरी की खोज में निकलने से पहले नरेन्द्रनाथ भगवान का नाम ले रहे थे। यह सुनकर उनकी माँ बहुत ही कड़वाहट से बोली, “चुप हो जा, मूरख। बचपन से ही भगवान को भजता आया है। क्या किया इस भगवान ने तेरे लिए?” अतिशय गरीबी के कारण उनकी श्रद्धालु माता का विश्वास भी डिग गया था।

इन शब्दों ने नरेन्द्र को बहुत चोट पहुंचाई। उन्होंने अपने आप से कहा, “काली माँ तो मेरे गुरु श्री रामकृष्ण परमहंस की सभी प्रार्थनाएँ सुनतीं हैं। मेरे परिवार को इस गरीबी में से निकालने के लिए गुरुजी से प्रार्थना करने के लिए कहूँगा।” जब नरेन्द्र ने गुरुजी को काली माँ से प्रार्थना करने के लिए विनती ।  श्री रामकृष्ण ने उनसे कहा, “तुम खुद ही काली माँ से प्रार्थना करो। आज मंगलवार है। माँ की आराधना के लिए बहुत शुभ दिन है। आज शाम को उनके मंदिर जाकर, विनय से उन्हें दंडवत् प्रणाम करके जो भी प्रार्थना करोगे, वह ज़रूर फलेगी। काली माँ तो प्रेम और करुणा की मूर्ति हैं।

अपने भक्तों की सच्चे दिल से की प्रार्थना वे ज़रूर स्वीकार करेंगी।” रात के नौ बजे नरेन्द्रनाथ काली माँ के मंदिर में गए। उन्हें माँ के दर्शन करने की आतुरता थी। हृदय में एक अलग ही भाव की तरंग बह रही थी। जब उनकी नज़र माँ की मूर्ति पर पड़ी, तब उन्हें साक्षात माँ के दर्शन हुए। साथ ही साथ ऐसा भी लगा जैसे उन्हें माँ से कोई विशेष आशीर्वाद मिलेगा या तो सुखी सांसारिक जीवन का या फिर आध्यात्मिक आनंद का।

नरेन्द्रनाथ ने सच्ची समझ, ज्ञान, त्याग और माँ के अविरत दर्शन के लिए प्रार्थना की, पर वे माँ से पैसे की माँग करना भूल गए।

प्रार्थना करने के बाद उन्हें बहुत अंतर शांति हुई। गुरुजी ने पूछा, तब उन्हें याद आया कि वे प्रार्थना में पैसे की माँग करना तो भूल ही गए। गुरुजी ने नरेन्द्र से फिर मंदिर जाकर, माँ से अपनी जरूरतें पूरी करने के लिए प्रार्थना करने के लिए कहा। नरेन्द्र फिर से प्रार्थना में पैसे की माँग करना भूल गए। तीसरी बार भी ऐसा ही हुआ। गुरुजी के आनंद का पार नहीं रहा। उन्होंने नरेन्द्र से कहा, “मनुष्य जीवन का ध्येय संसारिक सुख या फिर खाना या कपड़े मिलना ही नहीं होना चाहिए। तुम्हारा ध्येय लोक कल्याण का होना चाहिए। श्रद्धा रखो। तुम्हारे परिवार का सादगी से गुज़ारा अवश्य होगा। थोड़े ही समय में नरेन्द्रनाथ को विद्यासागर स्कूल में एक अध्यापक की नौकरी मिल गई और सादगी से वे अपने परिवार का भरण-पोषण कर सके।

देखा मित्रों, नरेन्द्र की प्रार्थना का उद्देश्य कितना ऊँचा था। किसी भी सांसारिक सुख लेने की उनकी इच्छा नहीं थी। सच्चे दिल की प्रार्थना ने उनके लिए संयोग मिलकर दिए। परिवार के निर्वाह के लिए थोड़े समय नौकरी की और फिर लोक कल्याण का भी बहुत बड़ा काम कर पाए।

 

सच्चा संत

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एक दिन गुरु और शिष्य‌ भ्रमण पर निकले थे।‌ अनेक विषयों पर चर्चा चल रही थी। अचानक सधुओं के चरित्र का प्रसंग‌ निकल गया। शिष्य का प्रश्न था कि कुछ लोग‌ आंख मूंदकर साधु-संतों पर विश्वास करते हैं तो कुछ लोग उन पर संदेह भी करते हैं।

इस पर गुरु‌ का कहना था कि सारे संत एक जैसे हों, यह आवश्यक नहीं। उनमें भी कई तरह के लोग पाए जाते हैं। दोनों चलते हुए एक ऐसे इलाके में पहुंचे, जहां अनेक संतों के आश्रम थे।

‌एक जगह उन्होंने देखा कि एक साधु ध्यान‌ की मुद्रा में बैठा है। लोग आते और वहां पैसे, फल-फूल आदि रखकर चले जाते लोगों के जाते ही वह साधु पैसे गिनने में लग जाता। गुरु ने शिष्य से कहा- देखो, यह लोभी है। यह साधु बना ही इसलिए है कि धन कमा सके। गुरु और शिष्य आगे बढ़े। आगे जाकर देखा कि एक साधु अपनी ‌कुटिया के बाहर शीर्षासन कर रहा है।

उसे देखने के लिए लोगों की भीड़ जमा थी। उस साधु को देख शिष्य जोर से हंसा। उसकी हंसी पर साधु को गुस्सा आ गया। वह उन्हें मारने दौड़ा।‌ दोनों वहां से भागे। अगले आश्रम में उन्होंने देखा कि दरिद्रनारायण भोजन चल रहा है। एक साधु स्वयं अपने हाथों से गरीबों को भोजन परोस रहा था। इस बीच एक अन्य साधु ने उसे आवाज दी तो वह उसे भी पानी देने चला गया।

गुरु ने‌ कहा देखो, तीन तरह के संत हैं। एक परम लोभी है। दूसरा साधना तो कर रहा है पर उसे क्रोध पर ही नियंत्रण नहीं है, फिर साधना का क्या मतलब है। इनको देखो, इनके चेहरे पर परम निश्चितता है। चेहरे पर जरा भी अहंकार नहीं हैं। ये निर्धनों को प्रेमपूर्वक‌ खिला रहे हैं, और दूसरे साधु की सेवा भी कर रहे हैं। ये सच्चे संत हैं।

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नैतिक शिक्षा : – कथनी और करनी में अंतर नहीं करें।

 

दुध और पानी

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किसी गांव में एक ग्वाला रहता था. उसका नाम मटकूचंद था. वह दूध बेचता था. उसके पास एक ही गाय थी. मगर ज्यो ज्यों उस के ग्राहक बढ़ने लगे, वह ज्यादा दूध लाने लगा. लेकिन अभी भी उसके पास एक ही गाय थी.

एक दिन एक आदमी ने दूसरों को बताया, “मटकूचंद लालची हो गया है. वह दूध में ज्यादा पानी मिला कर लोगों को बेचता है.’ उस आदमी की बात सुन कर उस के कुछ पड़ोसियों ने मटकू से दूध लेना बंद कर दिया. बाद में लोगों ने सुना कि अब मटकू दूसरे नए ग्राहकों को पहले से ज्यादा दूध बेच रहा है.

“उस की बेईमानी ज्यादा दिन नहीं चलेगी.” एक औरत ने दूसरी से कहा.

मगर आजकल हम जिस आदमी से दूध ले रहे हैं, उस के दूध में भी तो मिलावट है.” दूसरी बोली. ‘कुछ भी हो, नया दूध वाला एक रुपया प्रति किलोग्राम कम भी तो लेता है.”लेकिन धीरेधीरे नए दूध वाले से तंग आ कर सब ने उस से दूध लेना बंद कर दिया. अचानक मटकूचंद ने आ कर उन से पूछा, “मेरे योग्य कोई सेवा हो तो कहें. अब मैं रोज दो क्विटल दूध बेचता हूं.” दो क्विटल?” सब ने चकित हो कर पूछा. “हां,

आप लोग दोबारा मुझ से दूध लेना शुरू कर दें तो कल तक मैं ज्यादा दूध का इंतजाम कर लूंगा. मैं दूसरे गाय भैंस वालों के पास जा कर दूध खरीदता हूं और सब ग्राहकों की मांग पूरी करता हूं. मेरी अपनी गाय का दूध तो सिर्फ मेरे परिवार के काम आता .”तो क्या हम ने बेकार में तुम पर शक किया?” “यह तो आप जानें या मेरे दूध को परख कर बताएं. सुनीसुनाई बातों के कारण ईमानदार आदमी पर शक करना ठीक नहीं. मैं तो सिर्फ इतना जानता हूं कि बेहतर दूध बेचने से ही मैं तरक्की कर रहा हूं.

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नैतिक शिक्षा :- हमें अपना कार्य पुरी लगन और ईमानदारी से करना चाहिए।

 

शिक्षा ही सर्वोत्तम धन है

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एक दिन एक राजा जंगल में अपना रास्ता भटक गया। उसी जंगल में राजा को तीन बालक दिखाई दिए, बालको ने राजा के लिए खाने-पीने की व्यवस्था की। राजा बहुत खुश

हुआ और कुछ मांगने के लिए कहा। पहले बालक ने बड़े से घर की मांग की। दूसरे ने अच्छे खान पान के लिए बहुत सा धन मांगा। तीसरे बालक ने कहा महाराज यदि आप मुझे कुछ देना चाहते है तो मेरे लिए उचित शिक्षा व्यस्था कर दें।राजा ने सब को उनके मांग के अनुसार व्यवस्था कर दी।

कुछ समय बीतने के उपरांत पहले बालक का घर बाढ़ में बह गया। दूसरे का धन भी खत्म हो गया वह भी गरीब हो गया। तीसरा बालक शिक्षित होकर राजा के महल में मंत्री बन गया।

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नैतिक शिक्षा :- यदि हम ज्ञान कि तरफ बढ़ेगे,तो अच्छा‌ परिणाम हमारा पीछा करेगा। तुम्हारे पास भी ज्ञान रूपी धन आ जाएगा वह कभी ख़त्म नहीं होगा न ही कोई इसे बांट पायेगा।

 

मछली और मेंढक की मित्रता

Hindi Story With Moral

 

दो बड़ी मछलियां सहसराबुद्धि और सताबुद्धि एक बड़े तालाब में रहती थी। दोनों एक मेंढक एकाबुद्धि की बहुत अच्छी दोस्त थी। तीनों तालाब में बहुत अच्छा वक्त बीताते थे। एक शाम वे तीनों तालाब में इकट्ठा हुए, उन लोगों ने देखा कि कुछ मछवारे अपने हाथों में जाल और बड़ी टोकरी लिए सामने से जा रहे हैं और उनके पास ढेर सारी मछलियां भी हैं। तालाब के पास से गुजरते वक्त वे लोग एक दूसरे से बातें कर रहे थे। ‘ये तालाब तो मछलियों से भरा हुआ है।

उनमें से एक मछवारे ने कहा,’कल सुबह हम यहां मछलियां पकड़ने आएंगे। तालाब ज्यादा गहरा नहीं है। दूसरे दिन वे उस तालाब में आने के लिए तैयार हो गए।

मेंढक मछवारों की बात सुनकर दुखी हो गया। उसने अपने दोस्तों से कहा, ‘अब हमें बचने के लिए कुछ उपाय निकालने होंगे। या तो हमें भागना पड़ेगा या फिर छिपना पड़ेगा। मछलियों को इस बात से ज्यादा चिंता नहीं हुई।

एक मछली ने दूसरी से कहा, कुछ नहीं होगा, वे मछवारे तो बस ऐसे ही बातें कर रहे थे। वे यहां नहीं आएंगे। अगर आ भी जाते हैं तो मुझे पता है, मैं उनसे निपट लूंगी। मुझे पानी के बहुत सारे आइडिया आते है। मैं तुम्हे और खुद को बचा लूंगी।

दूसरी मछली ने भी यही कहा कि वो भी अपनी और परिवार की जान बचाने में सक्षम है। दोनों मछलियां एक दूसरे के सपोर्ट में आ गई। दोनों ने ही कहा कि वे चंद मछवारों की वजह से अपने पुर्वजों का घर छोड़कर नहीं जाएंगी, लेकिन मेंढक नहीं माना। उसने बोला कि वो अपने परिवार को लेकर कल सुबह होने से पहले ही किसी और तालाब में चला जाएगा। दूसरे दिन सुबह मछवारे आए और उन लोगों ने अपने बड़े-बड़े जाल बिछाए। तालाब से मछली केंकड़े, कछुआ और मेंढक पकड़ रहे थे। दोनों मछलियां बचने की कोशिश करती रही, लेकिन बच नहीं पाई। उनकी एक भी चालाकी काम नहीं आई।

मछवारों ने उन्हें पकड़ लिया और जब जाल में उन्हें दबोचा तो वे मर चुकी थी। मछवारे इतनी बड़ी दो मछलियां पकड़कर बहुत खुश और गर्वित थे। वे सबको दिखाकर घर जा रहे थे। इस बीच, मेंढक को रहने के लिए एक जगह मिल गई थी, लेकिन वो अपने दोस्तों के लिए डरा हुआ था। फिर जब उसे अपने दोस्त की मौत के बारे में पता चला वो दुखी हो गया।

मेंढक परिवार से कहने लगा, ‘उनके पास बहुत हुनर था, लेकिन जिस हुनर की ज्यादा जरूरत थी वही नहीं था। लेकिन मेरे पास वही एक हुनर था। मैं अपने परिवार के साथ ही रहना चाहता हूं और खुश हूं।

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नैतिक शिक्षा :- हमें अपने हुनर और अक्ल का सही उपयोग करना चाहिए।

 

 

गाय और बाघ

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एक दिन जंगल के करीब एक गाय घास चर रही थी। उस पर बाघ की नज़र पड़ गई। बाघ ने गाय को दौड़ाया ,गाय भागने लगी और भागते भागते गाय एक दलदल में फस गई और बाघ भी उसी‌ दलदल में आकर फस गया लेकिन गाय से थोड़ी दूर ही रह गया। गाय ने बाघ से कहा कि तू तो गया अब तुझे कोई नही बचाएगा। बाघ ने कहा कि तू भी तो गई तुझे कौन आएगा बचाने।‌ उधर शाम होने पर जब गाय घर नही पहुंची तो उसका मालिक गाय को‌ खोजते हुए दलदल के पास पहुंचा और रस्सी, लकड़ी की सहायता से‌ गाय को बाहर निकाल कर उसकी प्राण बचाई। लेकिन बाघ को‌ बचाने कोई नही आया।

Short Moral Stories In Hindi For Education

नैतिक शिक्षा :- बच्चों आपको पालने और देखने वाले आपके माता-पिता और शिक्षक होते हैं यदि आप उनका कहना मानेंगे और उनका सम्मान करेंगे तो आप कभी भी कही नही फंसोगे।

 

 

जल की उपयोगिता

Story For Kids In Hindi

एक जंगल में पीने के पानी की बड़ी समस्या थी। जंगल के जानवरों के अनुरोध पर शेर ने जगह जगह हैन्डपम्प व नल लगवाये। जंगल को पानी सुलभ होने लगा। जंगल में कुछ शरारती जानवर ऐसे भी थे जो रात के वक्त नल खोल दिया करते। इससे दूर दूर तक पानी बहता रहता। लेकिन बहते

पानी की ओर कोई ध्यान नहीं देता। सभी अपने मतलब से मतलब रखते।

एक दिन पास के गाँव का एक गधा जंगल में अपने मित्र से मिलने आया। उसने देखा जंगल में तमाम नलों से पानी बह रहा है। उसने तुरन्त सभी नलों को बन्द किया। जंगल के कुछ जानवर व उनके बच्चे गधे की हँसी उड़ाने लगे और कहने लगे। उफ! यह तो बहुत कंजूस लगता है, ऐसा मालूम होता है, इसके गाँव में पानी की बड़ी कमी है। तभी तो इसने जंगल के पूरे नल बन्द कर दिये?

लेकिन गधे ने किसी से कुछ न कहा। इधर जैसे ही वह गधा अपने मित्र के घर पहुँचा, कुछ जानवरों ने, फिर से नल खोल दिये। थोड़ी देर बाद गधा अपने मित्र के साथ जंगल का नजारा देखने निकला। उसने सभी नलों को फिर से बन्द किया और अपने मित्र से कहा। लगता है जंगल के जानवर पानी की कद्र करना नहीं जानते?

मित्र ने कहा, अरे भाई, पानी तो बहुत तुच्छ चीज है, इसकी कद्र क्या करे? हाँ पहले तो फिर भी पानी की समस्या थी, लेकिन अब तो राजा साहब की कृपा से जगह जगह नल ही नल हैं। गधे ने कहा, पानी को इस तरह बहाना अच्छी बात नहीं? क्यों? मित्र ने पूछा।

गधे ने कहा, इसका जवाब मैं आज शाम को राजा साहब की चौपाल लगेगी तब दूंगा। जब शाम को चौपाल लगी तो वह गधा भी पहुँचा। शेर से प्रणाम कर बोला, महाराज, मैं आपको एक जरूरी सुझाव देना चाहता हूँ आपके सुझाव का स्वागत है। शेर ने कहा।

गधे ने कहा, आपके जंगल में पानी की कोई कीमत नहीं है, जगह जगह नल हर वक्त बहते रहते हैं, उन्हें बन्द नहीं किया जाता। यदि इस जंगल के प्राणियों का रवैया यही रहा तो आने वाले दिनों में जल संकट फिर से गहरा हो सकता है। अतः नलों को फालतू न बहने। दिया जाय, पानी की जितनी आवश्यकता हो, उतना ही प्रयोग करें। हाँ, एक बात और है, यदि नलों के नीचे नालियाँ बना दी जाए। गन्दे पानी को एक जगह एकत्रित कर, उससे खेती भी की जा सकती है। इससे गरीब जानवरों को फायदा मिलेगा। नाली के अभाव में जमीन मे हर वक्त नमी रहती है, इससे गन्दगी फैलती है व मच्छरों का प्रकोप बढ़ता है जो मलेरिया फैलाकर पूरे जंगल को रोगी बना‌ सकता है।

यह सुनते ही शेर की आँखें खुली। उसने जंगल में एक कानून बनाया। जिसके मुताबिक पानी का उपयोग आवश्यकतानुसार किया जाने लगा। फिर शेर ने गधे को बहुत बहुत धन्यवाद देते हुए कहा। तुमने हमें जो सुझाव दिया। उसे हम और हमारे जंगल वासी कभी नहीं भूलेंगे। अब जंगल के जानवर पानी की उपयोगिता का सही अर्थ समझ चुके थे।

 

Moral Stories In Hindi For Kids

नैतिक शिक्षा :- जल एक बहुमूल्य रत्न हैं। इसका उपयोग सोच-समझकर करना चाहिए।

 

कौन सही? राजा या मंत्री

Short Moral Stories In Hindi For Kids

 

बहुत समय पहले की बात है। बुन्देल खंड में एक राजा हुआ करता था। एक बार कुछ ऐसा हुआ कि एक अंग्रेज की किसी ग़लती पर राजा को काफी गुस्सा आ गया। और राजा ने उसे फांसी की सज़ा सुना दी। अंग्रेज़ ये सुनकर काफ़ी घबराया। जब उसकी कोई बात राजा ने नहीं सुनी तो उसने गुस्से में राजा को इंग्लिश में गालियां देनी शरू कर दी।

राजा उसकी कोई बात को नहीं समझ पाया। क्योंकि राजा को इंग्लिश ही नही आती थी। लेकिन राजा के मंत्री अंग्रेज़ी पढ़े थे। राजा ने मंत्री से पूछा बताओ ये किया कह रहा है ?मंत्री‌ कहता है- ” राजा साहब ये कह रहा है कि बड़े लोग अपने गुस्से को पी लेते हैं। और दोषियों को माफ़ कर देते है।”

राजा को मंत्री की ये बात सुनकर दया आ गयी। तभी उन्होंने अंग्रेज़ को माफ़ी दे दिया और उसे आज़ाद करने का आदेश दिया। एक दूसरा मंत्री भी अंग्रेज़ी जानता था।

उसने राजा से कहा ” राजा साहब‌ हम लोग आपका नमक खाते है, वफ़ादारी करना हमारा फ़र्ज़ है। जो बात जिस तरह हो वैसे ही कह दिया जाय।

“राजा ने पूछा- तुम क्या कहना चाहते हो ? मंत्री- ” सरकार ये अंग्रेज़ न आपको गालियाँ दे रहा था।”राजा ने मंत्री की बात सुनकर मंत्री की तरफ़ से अपना मुँह फेर लिया और कहा। ” आपके सच से उसका झूट बेहतर है”।

 

New Moral Stories In Hindi For Kids

नैतिक शिक्षा :- बड़े बुजुर्गों का भी कहना है, जिस झूठ से किसी की जान बच जाय और दिलो में प्रेम उत्पन्न हो वो उस सच से बेहतर है। बस उसका‌ उद्देश किसी की भलाई ही हो।

 

जिददी राजू

Moral Stories In Hindi

लालू गधा और लाली गधी अपने मालिक रामदीन के साथ खुशी-खुशी अपना जीवन व्यतीत कर रहे थे. रामदीन एक मेहनतकश तथा ईमानदार मजदूर था. शहर में एक बड़ी इमारत बन रही थी. रामदीन रोज लालू और लाली पर ईंट, रेत आदि लाद कर वहां ले जाता था.शाम को रामदीन अपनी दिनभर की मजदूरी ले कर घर वापस लौटता था.

रामदीन लालू और लाली का बहुत खयाल रखता था. दिनभर मेहनत कर के लालू लाली थक जाते थे. अतः रामदीन उन्हें भरपेट चारा देता था. वह अपने जानवरों को केवल घासफूस खाने के लिए नहीं छोड़ देता था. अपने मालिक के प्यार को समझ कर बदले में लालू लाली भी जीतोड़ काम करते थे.

कुछ समय बाद लाली गधी ने एक बच्चे को जन्म दिया. रामदीन को बहुत खुशी हुई. लालू लाली भी बहुत प्रसन्न थे, उन्होंने उस का नाम राजू रख दिया.

छोटा राजू गधा धीरेधीरे बड़ा होने लगा. अब वह भी अपने मां बाप के साथ बाहर जाने लगा, लेकिन वह अभी बोझा नहीं ढोता था. लालू लाली जब अपनी पीठ पर बोझा ढोते थे, उस समय राजू नदी के किनारे घूमता रहता था. वहां धीरे धीरे राजू की अपनी ही उम्र के एक दूसरे गधे कालू से मित्रता हो गई. राजू और कालू अब रोज ही नदी किनारे मिलते और बहुत देर तक बातें करते रहते.

ये हम से कमरतोड़ काम लेते हैं, लेकिन उस के बदले में, हमें थोड़ी सी रूखीसूखी घासफूस देते हैं, बस वैसे भी यह बोझा ढोने का काम छोटा काम है. हमें कुछ और करना चाहिए. मेरी सलाह तो यही है कि तुम अपने माता पिता की तरह इस काम को कभी मत करना. कालू भैया, मैं ने तो पहले से ही सोच रखा है कि कुछ और काम करूंगा. मैं इस तरह दिन रात नहीं पिस सकता,राजू ने जवाब दिया।

राजू अब बड़ा हो गया था. अतः रामदीन ने सोचा कि राजू से भी काम लिया जाए. एक दिन उस ने रेत की दो बोरियां राजू की पीठ पर लाद दीं. लेकिन यह क्या! राजू ने झटके से वे बोरियां नीचे गिरा दीं.

रामदीन मुस्करा दिया, उस ने सोचा कि राजू अभी बच्चा है. ‘शायद अभी यह काम नहीं कर पाएगा. लेकिन लालू लाली को इस बात से बहुत दुख हुआ. उन्होंने कभी सोचा भी नहीं था कि राजू अपने मालिक के साथ ऐसा व्यवहार करेगा.

कुछ तमीज सीखो, राजू!” लालू ने उसे डांटते हुए कहा. मैं यह काम नहीं करूंगा, मैं ने निश्चय किया है कि कोई दूसरा, इस से अच्छा काम करूंगा. “और आप दोनों को भी यह सब छोड़ देना चाहिए.”

इस पर राजू की मां लाली गधी को गुस्सा आ गया. “मूर्ख मत बनो. हमारे मालिक जैसा आदमी तुम्हें कहीं नहीं मिलेगा. वह हमें अच्छा खानेपहनने को देता है. हमारी अच्छी देखरेख करता है. “हम ने ऐसेऐसे मालिक देखे हैं, जो हम जैसे जानवरों से दिन-रत काम ले कर भी उन के साथ दुर्व्यवहार करते हैं.” मुझे तुम्हारी सलाह की कोई आवश्यकता नहीं, मम्मी. अब मैं बड़ा हो गया हूं. मैं अच्छी तरह जानता हूं कि मुझे क्या करना है.

“अगर तुम दोनों मुझ से सहमत नहीं हो, तो मुझे अपना रास्ता खुद ढूंढ़ना होगा और मैं यहां से” राजू अपनी बात पूरी भी नहीं कर पाया था कि उस का पिता, लालू गधा अपने गुस्से पर काबू नहीं रख सका और आंखें तरेरता हुआ राजू की ओर दौड़ा.

पिता को गुस्से में देख कर राजू भाग खड़ा हुआ. लेकिन लालू गधे ने उस के पीछे भाग कर एक जोर की लात जमाई और गुस्से में बोला, “बेवकूफ, चल भाग यहां से! देखता हूं तू क्या करता है! “जब कुछ दिन बाहर की ठोकरें खाएगा, तो अपने‌ आप अकल ठिकाने आ जाएगी और तब तू लौट कर इसी मालिक के पास आएगा,” यह कह कर लालू दुखी मन से लौट आया.

वहां से राजू सीधा कालू के पास गया. फिर वे दोनों उस जगह को छोड़ कर पास के एक दूसरे गांव में चले गए. दूसरे गांव में बहुत से कुत्ते भौंकते हुए उन के पीछे पड़ गए. दोनों ने भाग कर किसी तरह उन से छुटकारा पाया.

कुछ देर बाद दोनों को तेज भूख लगी. दोनों पास ही के मैदान में उगी हुई हरी-भरी घास खाने लगे.

वह जमीन एक किसान की थी. जब किसान ने देखा कि दो गधे उस की जमीन पर घास चर रहे हैं तो उस ने झट से अपने नौकरों को ले कर उन्हें पकड़ लिया. दरअसल, किसान को गधों की जरूरत थी. फसल कट चुकी थी.किसान हर रोज कालू और राजू की पीठ पर गेहूं लाद कर पास की मंडी में बेचने ले जाता. इस तरह कालू और राजू को दिन में कई बार गेहूं की भारी भारी बोरियां लाद कर शहर जाना पड़ता था. शाम को जब वे लौटते थे तो बुरी तरह थक चुके होते थे. और उस पर, किसान उन को आधा पट खाना देता था.

अक्सर उन्हें भूखा ही सोना पड़ता था. जब भी वे दोनों काम करने में थोड़ी सी आनाकानी करते, किसान उन को बुरी एक दिन उन्होंने भागने की कोशिश की, लेकिन किसान के नौकरों को पता चल गया. उन्होंने दोनों की डंडे से खूब पिटाई की। राजू और कालू दर्द से कराह उठे. उन की चीख निकल गईं.

एक दिन राजू और कालू को दूसरे गधों के साथ, पीठ पर बोझा ले कर किसी दूसरे गांव जाना था. रास्ते में उन का अपना गांव पड़ता था. जब वे दोनों उस गांव में आए, तो उन्होंने अपना पुराना गांव एकदम पहचान लिया. दोनों बहुत खुश हुए. चलते-चलते जब वे रामदीन के घर के पास पहुंचे तो दोनों ने एक साथ जोर-जर से रेंकना शुरू कर दिया.

लालू और लाली उस समय घर में ही थे. दोनों ने अपने बेटे राजू की आवाज पहचान ली. वे दोनों भी जोरजोर से रेंकने लगे. शोर सुन कर रामदीन बाहर निकल आया. लालू लाली को बेचैन देख कर, रामदीन ने दोनों को खोल दिया. लालू लाली तुरंत गधों के झुंड की तरफ दौड़ पड़े, जो कि रामदीन के घर के सामने से जा रहा था.

राजू ने अपने मातापिता को आते देखा, तो जोर-जर से रेंकते हुए बोला, “पापा बचाओ, मुझे बचाओ, मम्मी” अपने बेटे की ऐसी हालत देख कर लालू लाली के आंसू राजू बहुत ही कमजोर हो गया था. जब किसान के नौकरों ने कालू और राजू को अपने साथ हांकना चाहा, तो वे दोनों अड़ गए. उन को अड़ा देख कर वे उन को पीटने लगे.

इस पर लालू लाली उन नौकरों पर झपट पड़े और दोनों ने उन पर दुलत्तियां चलानी शुरू कर दीं. नौकर घबरा गए. वे जान बचा कर भागे. कालू और राजू सिर झुकाए शर्मिंदा से खड़े थे. उस दिन से राजू ने निश्चय कर लिया कि अपने मां-बाप की आज्ञा का पालन करूंगा और उन के साथ रह कर मालिक रामदीन की सेवा करूंगा.

 

 

अंत भला तो सब भला

Short Moral Stories In Hindi

 

रामगढ़ राज्य के राजा रामेश्वर की दो पत्नियां थी, कौशल्या और सुभद्रा. सुभद्रा स्वभाव से सुशील और गुणी थी जबकि कौशल्या कपटी व चालबाज औरत थी. सुभद्रा के दो बच्चे थे. एक पुत्र शिखर और दूसरा पुत्री सुधा. कौशल्या को एक भी बच्चा नहीं था. इस कारण उसे अपनी सौतन से जलन होती थी.

उसने राजा के कान भरे कि सुभद्रा के बच्चे उनके नहीं बल्कि किसी और के हैं. राजा कौशल्या की बातों में आ गया और उसने सुभद्रा को महल से निकाल दिया. सुभद्रा अपने बच्चों को लेकर मायके गई परंतु उसकी मां ने भी उसे अपने घर में पनाह नहीं दी. उसकी मां ने कहा – जो अपने पति की नहीं हुई वह किसी की नहीं, और उसने दरवाजा बंद कर लिया. सुभद्रा अपने बच्चों को लेकर जंगल की ओर चल दी और वही एक झोपड़ी बनाकर रहने लगी.

कुछ वर्ष बीत गए. एक दिन सुभद्रा के दोनों बच्चों ने उससे अपने पिता के बारे में पूछा. सुभद्रा कुछ नहीं बोली और रोने लगी. उसके बच्चों ने अपनी मां को रोते देख फिर कभी यह प्रश्न नहीं करने का वादा किया. इधर महल में कौशल्या को एक भी बच्चा नहीं हुआ. उसका व्यवहार राजा की प्रति भी अच्छा नहीं था.

राजा ने जब पता लगाया तो उसे मालूम हुआ कि सुभद्रा के बच्चे राजा के ही हैं और कौशल्या ने झूठ बोला था. यह जानकर राजा ने कौशल्या को महल से निकाल दिया और सुभद्रा की तलाश करने लगे. तलाश करते करते राजा को जंगल में वह झोपड़ी मिल गई, जहां पर सुभद्रा अपने बच्चों के साथ रहती थी. राजा ने सुभद्रा से क्षमा मांगी और उसे तथा बच्चों को महल ले आया. सब खुशी-खुशी रहने लगे. इसीलिए कहते हैं अंत भला तो सब भला.

 

मेरे टीचर

Moral Story In Hindi

 

प्राथमिक विद्यालय सुंदर नगर की कक्षा पांच के विद्यार्थियों को प्रधानाध्यापक हाथीराम इतिहास का पाठ पढ़ा रहे थे। सभी विद्यार्थी ध्यान लगाकर सुन रहे थे, लेकिन सामू बंदर पीछे की पंक्ति में बैठा खरट ले रहा था।

हाथीराम जी के कानों में उसके खर्राटों की आवाज पड़ी, तो उनका पारा सातवें आसमान पर चढ़ गया। उन्होंने सामू को क्लास से बाहर निकाल दिया। सभी बच्चे उसकी खिल्ली उड़ाने लगे। सामू के पिता सुंदर नगर में बहुत प्रसिद्ध थे। उन्होंने शिक्षा मंत्री को फोन लगाकर हाथीराम जी का ट्रांसफर करने की मांग की।

शिक्षा मंत्री ने हाथीराम जी का ट्रांसफर सुंदर नगर से सुनसान नगर में करा दिया। हाथीराम जी ने आदेश मिलते ही सुनसान नागर के प्राथमिक विद्यालय में पहुंचकर अपना काम शुरू कर दिया। हाथीराम जी ने विद्यालय की शिक्षा के स्तर में खूब सुधार करके विद्यार्थियों के दिलों में राष्ट्र-प्रेम और समाज सेवा की भावना भर दी। विद्यार्थी व सुनसान नगर के निवासी हाथीराम जी के संपर्क में आकर शिक्षित हो गए।

शिक्षा के प्रभाव से वहां के जानवर आसपास के नगरों से व्यापार करके धनवान बन गए। हाथीराम जी ने सुनसान नगर के धनवान व समाजसेवी लोगों से मिलकर चंदा इकट्ठा किया। फिर उस चंदे से वहां के विद्यालय भवन का पक्का निर्माण करा दिया।

वहां के निवासियों ने भवन उद्घाटन के लिए जिला शिक्षा अधिकारी को मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित होने का निमन्त्रण दे दिया। निश्चित दिन मुख्य अतिथि के रूप में जिला शिक्षा अधिकारी आ गए। कार से उतरकर उन्होंने समारोह के अध्यक्ष हाथीराम जी के पैर छुए। भवन के उद्घाटन का फीता काटकर जिला शिक्षा अधिकारी भाषण देते हुए बोले-“प्यारे बच्चो, आप सभी भाग्यशाली है कि सुनसान नगर में सबने मिलकर विद्यालय भवन का निर्माण करवाया। मेरे खयाल से आप सभी को प्रेरणा देने वाले मेरे पूजनीय गुरुदेव हाथारीम जी ही होने चाहिए।

आज से पचीस साल पहले मैं भी इनका शरारती व बदमाश विद्यार्थी था। पढ़ाई के समय में कक्षा सो रहा था। तब इन्होंने मुझे क्लास से बाहर निकाल दिया था और बदले की नीयत से मेरे पिता जी ने इनका ट्रांसफर आपके सुनसान नगर में करा दिया था। उस समय मैं बहुत खुश हुआ, परंतु मेरे कारण सुंदर नगर के प्राथमिक विद्यालय की पढ़ाई चौपट हो गई। ऐसी हालत में हम सपरिवार सुंदर नागर छोड़कर आजाद नगर में जाकर रहने लगे। मुझे गुरु जी द्वारा दी गई सजा हमेशा याद आती थी।

अपनी गलती का प्रायश्चित करने के लिए मैने कमर कसकर पढ़ाई की। लगन, निष्ठा व मेहनत से पढ़ते-पड़ते में जिला शिक्षा अधिकारी बन गया। आज आप सभी के समक्ष में गुरुदेव से क्षमा मांगता हूं।” अब हाथीराम जी को याद आया कि जिला शिक्षा अधिकारी और कोई नहीं, वर्षों पूर्व उनका शिष्य रहा सामू बंदर है। उन्होंने सामू को गले लगाकर आशीर्वाद दिया।

 

 

सबक

Moral Story In Hindi

 

काननवन में चिन्नी चिड़िया ने चूंचूं चिड़े के साथ आम के पेड़ पर अपना घोंसला बनाया. वे हंसी-खुशी अपने दिन व्यतीत करने लगे. कुछ महीनों बाद चिन्नी ने अंडे दिए. दोनों काफी खुश थे. अंडों की देखभाल के लिए दोनों में से एक हमेशा घोंसले में रहता ताकि दूसरा बाहर जा कर भोजन की व्यवस्था कर सके. जिन दिनों अंडों में से बच्चे बाहर निकलने वाले थे, दोनों घोंसले में ही रहते थे.

एक दिन वहां बड़कू हाथी आया. वह थका हुआ था, इसलिए सो गया. थोड़ी देर विश्राम करने के बाद वह उठा और भूख मिटाने के लिए सूंड से आम की पत्तियां और टहनियां तोड़तोड़ कर खाने लगा. उस की इस हरकत से पूरा पेड़ हिल रहा था. अब चिन्नी एवं चूंचूं को अंडों की फिक्र हई. आखिरकार चिन्नी से न रहा गया. वहनीचे गई और बड़कू से विनती कर के कहने लगी, ‘हाथी दादा, आप कृपया ऐसा न करें, हमारे अंडे गिर जाएंगे. परंतु बड़कू पर चिन्नी की प्रार्थना का कोई असर नहीं हुआ.

वह और जोर से पेड़ हिलाने लगा. अंत में चिन्नी का घोंसला अंडों सहित नीचे आ गिरा. बड़कू अंडों को अपने पैरों तले रौंदता हुआ जंगल की ओर चला गया.

चूंचं व चिन्नी रोने लगे. काफी देर तक रोने के पश्चात् चिन्नी ने बड़कू को सबक सिखाने की ठानी. वह और चूंचूं दोनो अपने मित्र किटू कठफोड़वा के पास गए और सारी बात बताई. तब किटू ने उन्हें भरपूर मदद देने का वादा किया. साथ ही उन्हें अपने घोंसले में रख लिया. भोजन खिलाया तथा फल खाने को दिए.

चिन्नी ने किटू से कहा, “मैं ने एक योजना बनाई है, जिससे हम उस दुष्ट हाथी को सबक सिखा सकते हैं. इस के लिए चींटी रानी तथा मेघू मेढक की सहायता की आवश्यकता होगी.”

किटू ने जा कर चींटी रानी तथा मेघू को अपने घर बुलाया. सभी बैठ कर योजना पर विचार करने लगे. अगले दिन चूं ने बड़कू को केले के एक वृक्ष के नीचे बैठे देखा. वह केले खाने में मस्त था. चूंचूं अपने सभी साथियों को बुला लाया. थोड़ी देर बाद बड़कू हाथी वहीं पर लेट गया और सोने की कोशिश करने लगा.

अब चींटी रानी अपनी फौज के साथ आई. चींटियों ने बड़कू की सूंड और आंखों पर हमला बोल दिया. चींटियों के काटने से बड़कू परेशान हो उठा, तभी किटू कठफोड़वा ने अपने साथियों के साथ बड़कू के पेट एवं कानों पर काटना शुरू किया.

बड़क दर्द से बेहाल था. वह आंख भी नहीं खोल पा रहा था. उसे पानी की सख्त आवश्यकता थी.तभी उसे मेढकों के टनेि की आवाज सुनाई दी. उस ने सोचा, आसपास कहीं तालाब होगा. वह उसी दिशा की ओर चल पड़ा. आगे बढ़ते बढ़ते वह एक बड़े गड्ढे में गिर पड़ा. दरअसल मेघू व उस के साथी शिकारियों द्वारा खोदे गड्डे के पास टर्रा रहे थे.

काफी देर बाद जब बड़कू का दर्द कम हुआ तो उस ने देखा कि चिन्नी चूंचूं, किटू और मेघू गड्ढे के बाहर बैठे हैं. तब उन्होंने बड़कू को बताया कि दूसरों को सताने का क्या नतीजा निकलता है. जब स्वयं को परेशानी होती है, तब कैसा लगता है. बड़कू ने अपने किए पर शर्मिंदा हो कर माफी मांगी. उस के माफी मांगने तथा आगे से ऐसी गलती दोबारा न करने का आश्वासन पा कर किटू बड़कू के साथियों को बुला लाया. तब उन्होंने रस्सों एवं बल्लियों की सहायता से बड़कू को बाहर निकाला.

 

151+ Best Short Moral Stories In Hindi For Kids – नैतिक कहानियां हिंदी पर आधारित कहानी आपको कैसी लगी मुझे जरूर बताएं। मुझे आशा है कि कहानियां आप सभी को जरूर पसंद आई होगी । आप सभी बच्चों के लिए कुछ नई-नई सीख भी मिली होगी। यदी थोड़ी सी भी अच्छी लगी तो ज्यादा से ज्यादा दोस्तों और परिवार के बीच Share (शेयर) जरूर कीजिए।

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