उठो लाल अब आँखें खोलो – सोहनलाल द्विवेदी | Utho Lal Ab Aankhen Kholo Poem :- प्रातःकाल जब सुरज निकलता है तो प्रकृति की सुंदरता अनुपम होती है। उगता हुआ सुरज, चहचहाती चिड़ियाँ, गुनगुनाते भौंरे, कल-कल करता नदियों व झरनों का बहता हुआ जल, सभी हमें अपने संपूर्ण जीवन मैं निरंतर कार्य करते रहने की प्रेरणा देते हैं। बच्चों को प्रभात की सुंदरता का ज्ञान कराना व निरंतर कार्य करते रहने की सीख देना ही इस कविता का उद्देश्य है।
उठो लाल अब आँखें खोलो
Utho Lal Ab Aankhen Kholo
उठो लाल अब आँखें खोलो,
पानी लायी हूँ मुंह धो लो।
बीती रात कमल दल फूले,
उसके ऊपर भँवरे झूले।
चिड़िया चहक उठी पेड़ों पे,
बहने लगी हवा अति सुंदर।
नभ में न्यारी लाली छाई,
धरती ने प्यारी छवि पाई।
भोर हुई सूरज उग आया,
जल में पड़ी सुनहरी छाया।
नन्ही नन्ही किरणें आई,
फूल खिले कलियाँ मुस्काई।
इतना सुंदर समय मत खोओ,
मेरे प्यारे अब मत सोओ।
-सोहनलाल द्विवेदी