Top 39+ Best Poem On Childhood Bachpan In Hindi | बचपन पर सुंदर कविता

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Poem On Childhood Bachpan In Hindi :- आज के पोस्ट में बचपन की यादों को ताजा करने वाली और दिल को छू जाने वाली [39+ Best] बचपन पर सुंदर कविता ( Bachpan Par Kavita In Hindi ) शेयर की है। इन्हें पढ़कर आपको जरूर अपने बचपन के वो पल याद आ जायेंगे जो अपके लिए खास रहे हैं। आप इन कविताओं को जरूर पढ़े।

 

Poem On Childhood Bachpan In Hindi

 

Table of Contents

शानदार बचपन

Poem On Childhood

 

भविष्य की ना कोई चिंता,

ना भूत से कोई सरोकार था।

बचपन बड़ा ही शानदार था।

ना हॅंसने की कोई वजह,

ना रोने का कोई कारण,

बचपन बड़ा ही शानदार था।

 

चिड़ियों के गुंजन की आहट,

चांद-तारों की झिलमिलाहट,

बचपन बड़ा ही शानदार था।

अतिथियों का आना,

मानो कोई बड़ा त्योहार था,

बचपन बड़ा ही शानदार था।

 

इतवार के दिन का,

रहता था इंतजार।

टीवी और सिनेमा हाल,

रहते थे गुलजार।

बचपन बड़ा ही शानदार था।

 

दोपहर की धूप में बाहर घूमना,

पसीने से तर-बतर होकर घर आना,

रहता था हमेशा यादगार।

बचपन बड़ा ही शानदार था।

 

बिजली गुल हो जाने पर,

घर-आँगन में हो जाता था अंधकार,

लुका-छिपी का खेल होता था मजेदार,

बचपन बड़ा ही शानदार था।

-महेन्द्र देवांगन 

 

मेरा वो प्यारा बचपन मस्ती

Poem On Childhood In Hindi

 

लौटा दो कोई मस्ती,

मेरा वो प्यारा बचपन।

वो मौज मस्ती,

कोलाहल से भरा आँगन।

 

वो अनोखे खेल,

कही चोर सिपाही तो कही रेल।

जो अपने थे,

आज खो गए हैं।

 

लौटा दो फिर कोई,

वही पेड़ों की लताएँ।

दादी माँ की कहानियाँ,

और पंचतंत्र की कथाएँ।

 

आज नए जमाने की चकाचौंध में,

छिप गयी हैं बचपन की वो मस्ती।

मोबाइल व इंटरनेट जो चल रही हैं,

घर-घर बस्ती-बस्ती।

 

लौटा दो कोई,

फिर वही हँसता बचपन।

दब गए हैं जो आज,

बस्ते के बोझ तले।

 

मेरा वो प्यारा बचपन,

लौटा दो कोई फिर वही शैतानियाँ।

जो मेरे अपने थे,

खो गए हैं कहीं,

मेरा वो प्यारा बचपन।

-गिरजा शंकर अग्रवाल

 

ऐसा था हमारा बचपन

Poem On Childhood In Hindi

 

poem on childhood in hindi

 

जब हम बच्चे थे,

तब न कल की फ़िक्र थी,

न आज की चिंता थी,

कितना प्यारा बचपन था।

 

मस्ती ही मस्ती,

वो कागज की कश्ती,

वो रंग बिरंगे पत्थर,

वो टूटे काँच की चूड़ियाँ,

वो गुड्डे और गुड़ियाँ।

 

गिल्ली-डंडा, कंचे-गोली,

खेला करते हम हमजोली।

मेले में खूब झूला झूले,

साथ में खाए खट्टी-मीठी गोली।

 

लड़कर झगड़कर कर ली कट्टी,

वो स्कूल की दोस्ती।

कुछ पल बाद मिट्ठि करके,

फिर से कर ली दोस्ती।

 

नदी पहाड़ का खेल खेलें,

छुक-छुक-छुक कर रेल भगाई।

आम, इमली चुराकर खाई,

पकड़े जाने पर खूब डांट खायी।

 

दादी-नानी हमें सुनाते,

रामायण महाभारत की कहानी।

इन्हें सुन कर हम बड़े हुए,

और बने संस्कारी।

ऐसा था हमारा बचपन।

-गोविंद पटेल

 

मेरा बचपन

Poem On Childhoods

 

कभी ना भूलने वाला बचपन,

बड़ा सुहाना भोला बचपन।

टिड्डे,तितली, चिड़ियों के पीछे,

दिन भर दौड़ लगाता बचपन।

 

आम, जाम, इमली के बगीचे,

क्या- क्या नहीं चुराता बचपन।

गिल्ली, डंडे, भौंरा बाटी,

खेल-खेल में बीता बचपन।

 

पेड़ों, की डाली, माँ की साड़ी,

झूलों में झूलता बचपन।

छम-छम बारिश, कागज की नाव,

दुनिया की सैर लगाता बचपन।

 

दादा-दादी, नाना-नानी,

कई रिश्तों संग पलता बचपन।

दरिया, नदियाँ, खेतों की पगडण्डी,

हँसता और हँसाता बचपन।

-अनिता चंद्राकर

 

प्यारा बचपन

Poem On Childhood In Hindi

 

खो ना जाए जरा सँभालो,

मासूम-सा भोला-भाला,

प्यारा बचपन।

निश्छल होंठों की मुस्कान,

पंछियों-सी उड़ान,

खो ना जाए जरा सँभालो।

 

मन में उठते अनगिनत सवाल,

क्या है, क्यों है? ये जिज्ञासाएँ,

खो ना जाये जरा सँभालो।

सभी मेरे हैं, मैं सबका हूँ,

कोई नहीं पराया यह भावना,

मिट ना जाए जरा सँभालो।

 

मीठे सपनों को बुनने दो,

ख्वाबों सा ऊँचा उड़ने दो।

कल्पनाओं की ये लहर,

छूट ना जाए जरा सँभालो।

-रेणुका सिंह

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मेरा बचपन

Poem On Childhood In Hindi

 

मेरा बचपन प्यारा बचपन,

पल पल याद तू आता है।

सुंदर सपनों सा जीवन वो,

पल पल जी ललचाता है।

 

कहां गई मासूम ठिठोली,

संग मेरे सखियों कि टोली।

बात बात में खूब रूठना,

मान भी जाओं अब तुम भोली।

 

प्यारी मधुर तोतली बोली,

स्वप्न से सुंदर थी वो टोली।

अमरैया में आम तोड़ती,

मस्त मेरी सखियों कर टोली।

 

मेरा बचपन प्यारा बचपन,

पल पल मुझे लुभाता है।

-तृप्ति शर्मा

 

वो बचपन का जमाना था

Poem On Childhood In Hindi

 

एक बचपन का जमाना था,

जिसमें खुशियों का खजाना था।

चाहत चाँद को पाने की थी,

पर दिल तितली का दिखाना था।

 

खबर न थी कुछ सुबह की,

न शाम का ठिकाना था।

थककर आना स्कूल से,

पर खेलने जाना था।

 

माँ की कहानी थी,

परियों का फ़साना था‌।

बारिश में कागज की नाव थी,

हर मौसम सुहाना था।

 

रोने की वजह न थी,

ना हँसने का बहाना था‌।

वो बचपन का जमाना था।

-संतोष तारक

 

बचपन

Bachchan Par Kavita

 

बचपन की जब याद सताए,

आंखें नम हो जाती हैं।

मेरे प्यारे बचपन तेरी,

याद हमेशा आती है।

 

बाबूजी की वह मार,

फिर दादा-दादी का प्यार।

दीदी का चोटी खींचना,

रोने पर मां की पुचकार।

 

बहुत ढूंढती हूं उसको पर,

नज़र नहीं वह आता है।

रहती कीचड़ से सनी हुई,

पंछी सी उड़ती फिरती थी।

 

शत्रु नहीं थे मेरे कोई,

सबसे प्यार से मिलती थी।

मां की ममता का वह आंचल,

कहीं नही मिल पाता है।

 

बचपन की सब बातें मुझको,

याद हमेशा आती हैं।

उनकी याद करूं तो मेरी,

आंखें नम हो जाती हैं।

-कनकलता गहलोत

 

कहाँ गया बचपन

Poem On Bachchan In Hindi

 

गंगा जी के पावन जल सा,

कहाँ गया बचपन।

ईश्वर की छवि जिसमें झलके,

कहाँ गया दर्पण।

 

अपने और पराये का था,

जिसमें भेद नहीं।

कोरे कागज जैसा निर्मल,

कहाँ गया वह मन।

 

तितली बन फूलों सँग खेले,

वह नटखट बचपन।

एक मिनट में करे दोस्ती,

दूजे पल अनबन।

 

निश्छल और नि:स्वार्थ निष्कपट,

द्वेष रहित रहना।

काश! मुझे फिर से मिल जाये,

वह बीता जीवन।

-श्याम सुन्दर श्रीवास्तव

बचपन

Poem On Bachchan In Hindi

 

तेज घटाएँ छा जाती और,

उमड़-घुमड़कर बादल बरसता।

मै इठलाते कोने मे छुप,

बार-बार बूदों को पकड़ता।

कागज की नाव बनाकर,

मैं गलियों मे चलाता

काश..! मेरा बचपन,

फिर से आ जाता।

 

तन मे ओढे रजाई मैं,

अलाव से हाथ सेंकता।

मैं भी खेलता गुल्ली डंडा,

और हाथों से गेंद फेकता।

पापा मुझको थप्पड़ लगाते,

पढ़ने को घर ले आता।

काश..! मेरा बचपन,

फिर से आ जाता।

 

कड़कड़ाती धूप मे घर से निकल,

तालाबों मे डूबकियाँ लगाता।

मम्मी ढूंढती दिनभर मुझको,

शाम होते ही मैं घर आता।

उन्मुक्त हो मैं भी खेलता,

और रेतों के घरौंदें बनाता।

काश..! मेरा बचपन,

फिर से आ जाता।

काश..! मेरा बचपन,

फिर से आ जाता।

-केशव पाल

बचपन है अनमोल हमारा

Poem On Bachpan

 

बचपन है अनमोल हमारा,

कभी नहीं है फिर मिलता।

खेले-कूदे, झगड़े फिर भी,

नेह सुमन मुख खिलता।

उसे देखकर उमड़ा जाता,

प्यार सभी का है सारा,

बचपन है अनमोल हमारा।

 

घर पर मम्मी, बाबा-दादी,

अतुलित प्यार जताते हैं।

ऑफिस से जब लौटे पापा,

मौसम के फल लाते हैं।

उन्हें छीनकर झट पापा से,

खा जाते हम सारा,

बचपन है अनमोल हमारा।

 

चुन्नू, मुन्नू, राघव भैया,

माँगे गुबारा दीदी सरिता।

माँग भुलाने को तब पापा,

हमें सुनाते कविता।

सुनकर कविता तब पापा की,

भूले हम गुब्बारा,

बचपन है अनमोल हमारा।

 

मंदिर, मस्जिद और गुरुद्वारा,

गिरिजाघर जाते मिलकर।

बचपन कैसा स्वर्णिम होता,

हँसते है खिल-खिलकर,

अंधकार नहीं जाति धर्म का।

सबका मन उजियावा,

बचपन है अनमोल हमारा।

-मनमोहन गुप्ता

 

बचपन

Poem On Childhood In Hindi

 

सबके मन को भाता बचपन,

कितना हमें लुभाता बचपन।

भेदभाव की कड़वी बातें,

कभी न मन में लाता बचपन।

 

अपनी भोली बातों से,

सबको खूब हंसाता बचपन।

सीख प्यार की सब को देकर,

राह नई दिखलाता बचपन।

 

खेल खिलौनों की दुनिया में,

खुश कितना हो जाता बचपन।

फूलों सा मुस्कान बिखेरे,

मन सबका हर्षता बचपन।

-सतीश उपाध्याय

 

बचपन

Poem On Childhood In Hindi

 

बचपन में,

खेला-खाया है सब,

याद आता है।

 

माटी खाया है,

बड़ा होने पर भी,

याद करना।

 

एक बार ही,

लौटकर आ जाता,

ये बचपन।

 

बीता पल है,

लौटकर न आता,

ये बचपन।

 

बचपन है,

पचपन में भारी,

याद रखिए।

-गिरीश इन्द्र

 

बचपन

Poem On Bachchan In Hindi

 

कितना खूबसूरत है बचपन,

बारिश का यह भीगा मौसम।

गीली मिट्टी की सोंधी खुशबू,

छपाक छई का खेल अनुपम।।

 

बारिश के पानी में भीगकर,

कागज की खूब नाव बनाना।

बहती नाली में उन्हें डालकर,

उनके पीछे पीछे खूब भागना।।

 

कंकड़ के कुछ टुकड़े लेकर,

खडी ईंट पर उनको रखना।

कपडें भरकर बनी हुई गेंद से,

एक दूजे को फेंककर मारना।।

 

दोस्तों के सब कंचे जीतकर,

अपनी जेबों में भरकर रखना।

पकडे जाने पर मुर्गा बनकर,

एक दूजे को देखकर हँसना।।

 

कहाँ आज वह पहला बचपन,

इंटरनेट पर सबकी व्यस्त जिंदगी।

सबसे किनारा करते आज के बच्चें,

हमेशा खुद में खोये रहते बच्चें।।

-आकांक्षा शर्मा

 

बचपन

Poem On Childhood In Hindi

 

हे जन्मभूमि! तुझे करता हूँ नमन,

कितना प्यारा था मेरा वो बचपन।

हर सुबह सुहानी होती थी,

नाश्ते में मक्खन रोटी थी।

 

खो-खो, कबड्डी जैसे खेल तमाम,

मनोरंजन संग-संग होता व्यायाम।

होती सांझ खेतों को चले जाते,

पिकनिक जैसा आनंद उठाते।

 

रात को दादी कहानियाँ सुनाती,

नैतिकता-संस्कृति का पाठ पढ़ाती।

अब विज्ञान का दौर आया,

कुछ फायदे-नुकसान लाया।

 

बच्चों को अब फास्ट फूड ही भाएं,

खेलना भी बस मोबाइल में चाहें।

दादी के किस्से इन्हें रास न आएं,

सब भूल बस फोन में लग का जाएं।

 

हर काम फोन से ही करके,

आंखों का सिंड्रोम बढ़ाएं।

हे मातृभूमि! तुझे शत् शत् नमन,

काश लौट आए फिर वो बचपन।

-अरुण यादव

 

बचपन

Poem On Bachpan In Hindi

 

बचपन कितना सुहाना था,

ना जीतने की चाह थी।

ना ही हार का डर,

ना मंजिल की फिकर थी।

 

ना थी उस तक जाने वाली कोई डगर,

जब थक कर सो जाया करते थे जमीन पर।

और जब आँख खुले तो,

खुद को पाते थे बिस्तर पर।

 

किताबों से भरे बस्ते थे,

उस वक्त सपने कितने सस्ते थे।

वो बारिश की बूंदों वाली कश्ती,

वो पुरे दिन चलने वाली मस्ती।

 

स्कूल से देर घर लौटने के बाद भी,

खेलने बाहर जाना था।

बचपन भी कितना सुहाना था,

वो मिट्टी का घरौंदा था।

 

खुशियों का खजाना था,

कोई फिकर ना थी जिंदगी की।

सारे फिकरों से बेफिकर थे,

जीवन के कठिनाइयों से बेखबर थे।

 

कभी आम के बगीचों पर,

तो कभी अमरूद के पेड़ पर ठिकाना था।

बचपन के खेल और खिलौने में,

ही अपना आशियना था,

सच बचपन कितना सुहाना था।

-आरजू परवीन

 

बचपन

Poem On Childhood In Hindi

 

भोला बचपन, न्यारा बचपन,

लगता सबको प्यारा बचपन।

हंसता और मुस्काता बचपन,

स्नेह सुधा बरसाता बचपन।

 

सबको है अपनाता बचपन,

प्रियषा सा मन पाता बचपन।

बारिश में हर्षाता बचपन,

छप छप धूम मचाता बचपन।

 

रेत में किला बनाता बचपन,

धूल का फूल कहाता बचपन।

सीख यही दे जाता बचपन,

लौट के फिर न आता बचपन।

-स्नेहलता

 

बचपन बड़ा प्यारा होता है

Poem On Bachchan In Hindi

 

बचपन बड़ा प्यारा होता है,

हर दिल का दुलारा होता है।

खेलकूद में बीत जाते हैं दिन,

जाने कब रात हो जाती है।

 

दादी की कहानी सुनते,

नानी की जुबानी सुनते।

दादा के ऊंगली थामकर,

पूरे गाँव का भ्रमण करते।

 

मित्रों के संग नाचते गाते,

जाने कब बड़े हो जाते हैं।

बचपन बड़ा प्यारा होता है,

हर दिल का दुलारा होता है।

 

दोस्तों के संग अमराई में,

रामू काका के आम चुराते।

बेरियों के कंटीले झाड़ से,

खट्टे-खट्टे बेर है खाते।

 

खेत के पगडंडी से चलकर,

स्कूल भी पढ़ने जाना है।

दोपहरी के धूप में जाकर,

चना चबेना भी खाना है।

 

दिन-भर धमाचौकड़ी और,

जो रातभर चैन से सोता है।

बचपन तो ऐसा ही होता है,

बचपन बड़ा प्यारा होता है,

हर दिल का दुलारा होता है।

-सुरेखा नवरत्न

 

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कितना प्यारा होता बचपन

Poem On Childhood In Hindi

 

सबसे न्यारा होता बचपन।

घुटनों के बल डोले बचपन,

तुतलाता-सा बोले बचपन।

उँगली पकड़े चलता बचपन,

पलनों में ही पलता बचपन।

 

नन्हे कदम बढ़ाए बचपन,

सबको बड़ा सुहाए बचपन।

घर-आँगन में घूमे बचपन,

माँ के आँचल झूमे बचपन।

प्यारी-सी किलकारी बचपन।

 

फूलों की इक क्यारी बचपन,

द्वार सजी रँगोली बचपन।

प्यार भरी-सी बोली बचपन,

दीवारों पर लिखता बचपन।

सीधा-साधा दिखता बचपन।

 

पढ़ने से कतराता बचपन,

बातों से भरमाता बचपन।

सबसे कुट्टी करता बचपन,

सबकी छुट्टी करता बचपन।

शक्कर-दूध-मलाई बचपन।

 

टॉफी संग मिठाई बचपन,

सचमुच बड़ा सलोना बचपन।

लगता खेल-खिलौना बचपन,

दादी-नानी वाला बचपन,

मिल दोनों ने पाला बचपन।

 

बर्तन भाँडे़ फोड़े बचपन,

बिना थके ही दौड़े बचपन।

जाकर फिर न लौटा बचपन,

कितना प्यारा होता बचपन।

-गोविन्द भारद्वाज

 

बचपन के दिन

Poem On Childhood In Hindi

 

बचपन के वो भी क्या दिन हुआ करते थे,

जब चाक मिट्टी खाया करते थे।

मम्मी की डांट का असर ना होने पर,

दूर उस बाड़ी में निकाल दिए जाते थे।

 

दादी जी का प्यार पाकर चुपके,

से आकर सो जाया करते थे।

बचपन के वह भी क्या दिन हुआ करते थे,

बहन से झगड़ा कर पापा के पास,

आकर छिप जाया करते थे।

 

मम्मी की डांट लगाने पर हमेशा,

दादाजी बचाया करते थे।

बचपन के वो भी क्या दिन हुआ करते थे।

भाई की चॉकलेट चुराकर,

बहन के साथ खाया करते थे।

 

पढ़ाई के नाम से कोसों दूर भागा करते थे,

बचपन के वह भी क्या दिन हुआ करते थे।

क्लास में लास्ट बेंच पर बैठकर,

चुपके चुपके टिफिन खाया करते थे।

 

टीचर से पकड़े जाने पर,

सारे दोस्त मिल मार खाया करते थे,

बचपन के वो भी क्या दिन हुआ करते थे।

-अदिति साहू

 

नादान उम्र की नादानी

Hindi Poetry On Bachchan

 

बहुत ही सुहाना, वो बचपन की यादें,

छोटे-छोटे सपनों से करते थे वादे।

दिन भर चलाना था टायर की गाड़ी,

छुक-छुक-छुक चलाना तब रेलगाड़ी।

 

महीनों से गुल्लक में पैसा बचाना,

पतंग संग डोरी आसमां में उड़ाना।

फिर काटना माझे से हाथों की उँगली,

फिर गुस्सा से बापू की हाथों से पिटाना।

 

मिलजुल कर खेलना ओ घोंघा रानी,

बता दे तेरे नदियों में कितना है पानी।

अब गोटियाँ उछाल आज खेलो रे किट्टो,

फिर आँखें मूंद अपनी खेले मार पिट्टो।

 

आओ खेलें ओका बोका तीन तड़ोका,

आ करे सब वादे ना करेगे अब धोखा।

खेलो के फैसले में एक सिक्का उछाले,

आज फिर यादों का एक एल्बम खंगाले।

 

डालियों पर चढ़ कर फल का चुराना,

अगर पकड़े जाने पर करना बहाना।

तालाबों के जल में मछली का पकड़ना,

कू-कू करता पिल्ला बाहों में जकड़ना।

 

टहनियों पर खेलते थे भुक्का चोर,

मचाते मिल जूल कर दोपहर में सोर।

भाग-दौड़ के खेलना बरफ और पानी,

सुहानी रातों में सुनना परियो की कहानी।

-शिव शंकर

बचपन

Hindi Poetry On Childhood

 

प्यार से पुचकारी मिलती है,

सबको अपने बचपन में।

गोदी में उठा के सबको,

दुलारी मिलती बचपन में।

 

किस्से और कहानी दादा-दादी,

सुनाते हैं बचपन में।

चॉकलेट और बिस्किट जुबानी,

मिलती हैं बचपन में।

 

पापा आते गोदी में उठा के,

मेरा मुन्ना राजा कहते हैं।

मम्मी बात -बात में,

पुचकारी करती हैं मुझको।

 

सारे मोहल्ले वाले प्यार से,

गोलू कहते हैं मुझको।

पल- पल की जिंदगी मेरी,

उनकी जिंदगानी बनती है।

 

धड़कन हूँ मैं उनकी,

मुझसे है उनकी जिंदगानी।

बहुत मिन्नतों के बाद पापा,

मम्मी ने मुझे पाया है।

 

मेरी खातिर पलकें बिछाए रहते हैं,

सभी मेरे अपने।

अपनी आँखों में कितने सपने,

सजाएँ बैठे मेरे अपने।

 

आम तोड़ने जाऊँ जब,

खूब ऊधम मचाऊँ मैं।

स्कूल से थक हारकर जब,

शाम को घर आऊँ मैं।

 

खाना ना खाने के कितने,

बहाने जब बनाऊँ मैं।

ना जाने कितनी ही शरारतें,

करके सबको सताऊँ मैं।

-अजय कुमार यादव

 

बचपन

Hindi Poem On Childhood

 

आया बचपन प्यारा-प्यारा,

बच्चों कर लो इसको न्यारा-न्यारा।

खूब पढ़ो- लिखो सब जमके,

ले लो रोज नए नए तमके।।

 

नन्हे-नन्हे हाथ तुम्हारे,

बड़े-बड़े सपने तुम्हारे।

होंगे एक दिन साकार,

बनेंगे जीवन का आधार।।

 

ये छोटी छोटी प्यारी आशा,

तुम्हारी नन्ही सी अभिलाषा।

लेके तुमको यूँ दमके,

ये छोटे छोटे सपने चमके।।

 

होंगे समझदार बच्चे एक दिन,

होगा बड़ा नाम तुम्हारा एक दिन।

कर लो मेहनत तुम कसके,

यही आज मैडम बोले तुमसे।।

-अंजली मिश्रा

 

बचपन

Poem On Bachchan

 

बचपन के दिन भूल ना जाना,

रस्ते में वो चूरन खाना।

छत पर चढ़कर पतंग उड़ाना,

रूठे यारों को वह मनाना।

 

बचपन के दिन भूल ना जाना,

अपना था वो शाही जमाना।

सिनेमा हॉल को भग जाना,

दोस्तों की मंडली बनाना।

 

बचपन के दिन भूल न जाना,

खेलने जाने का वो बहाना।

पढ़ने से जी को चुराना,

मास्टर जी से वो मार खाना।

 

बचपन के दिन भूल ना जाना,

हाथ में होते थे चार आना।

फितरत होती थी सेठाना,

मुश्किल है ये याद भुलाना,

बचपन के दिन भूल ना जाना।

-विवेक आहूजा

बचपन

Poem On Childhood In Hindi

 

पहले रात-भर आती थी, गहरी नींद

अब बोलते-बुलाते।

लोरियाँ सुनते भी नहीं आती,

बस, वापस लौट जाना चाहता हूँ।

 

उसी बचपन में,

बच्चा बनकर जीना चाहता हूँ।

अपनी मर्जी का मालिक था,

जैसे-तैसे सबको मना लेता।

 

मर्जी का मालिक तो हूँ,

हूँ मगर अकेला।

न होते भी सब कुछ था,

सब कुछ होते भी,

कुछ कमी, खालीपन-सा हैं।

 

बुरा करते हुए भी बुरा न था,

सब कुछ अच्छा करते भी बुरा हूँ।

गिरकर उठना उठकर गिरना,

रोकर हँसना, हँसकर रोना।

 

बहुत आसान था,

अब बहुत मुश्किल हैं।

बोलकर, हँसकर, चलकर,

सब कुछ सीख लेता था।

 

सीखते-सिखाते भी,

कुछ नहीं सीख पाता हूँ।

मैं अबोध था, बच्चा था,

बचपन खुद एक गुरु था।

-सुरेश कुमार शर्मा

बचपन

Bachpan Par Kavita

 

दुर्लभ यादें हैं जीवन की,

हंसी ठिठोली बचपन की।

वे नीम-नीम्बोली घना कुंज,

चिड़ियों की चहक, कोयल की गूंज।

 

नित मधुर सुवासें मधुबन की,

हंसी ठिठोली बचपन की।

वो खेल खिलौने और गुड़िया,

थी चाँद पे बैठी इन बुढिया।

 

नित नई उड़ाने थी मन की,

हंसी ठिठोली बचपन की।

अम्मा बाबा का वो दुलार,

दादी-नानी का लाड-प्यार।

 

और महक सुहानी आंगन की

हंसी ठिठोली बचपन की।

-भावना मिश्रा

बचपन का जमाना

Hindi Poetry On Childhood

बचपन का जमाना था

खुशियों का खजाना था

चाहत चाँद पाने की

तितली मन दीवाना था।

ख़बर न थी कुछ सुबह की

न शाम का ठिकाना था

थककर आना स्कूल से

खेलने भी जाना था।

नानी की कहानी थी

परियों का फ़साना था

चलती कागज नाव थी

हर मौसम सुहाना था।

बचपन का ज़माना था

खुशियों का ख़जाना था।

शिवानी

प्यारा बचपन

Poem On Childhood

हम बच्चे हैं मन के सच्चे

छोटे छोटे अपने सपने

खेल खिलौने संगी साथी

धमा चौकड़ी हमको भाती।

परी देश सी अपनी दुनिया

परियों जैसे इठलाती मुनिया

प्यारा गोलू खूब शरारती

नन्हीं बिटिया डगमग चलती

चुनिया कितना मीठा तुतलाती।

डॉ संगीता गाँधी

बचपन

Poem On Bachchan

बचपन के दिन

कितने हैं हसीन।

मजा नहीं आए

दोस्तों के बिना।

नीर में ढूँढे रेत

खेलते ऐसे खेल।

कभी मिट्टी आए

कभी हाथ आए रेत॥

नीर में देख छवि

भरें किलकारी

घर बनाने की कर

रहे नन्हें तैयारी ॥

गोपाल कौशल

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सुनहरा बचपन

Poem On Bachchan In Hindi

कितने अच्छे थे वो दिन,

गलियों में घूमते थे सारा दिन।

पकड़म-पकड़ाई, लुका-छिपी,

कटते थे न एक भी दिन, इनके बिन।

जाने कहाँ गए वो दिन।

बिन चप्पल के घूमा करते,

जब पूरा-पूरा दिन।

एक बीती हुई बनकर यादें,

रह गए वो प्यारे दिन।

जाने कहाँ गए वो दिन।

अब तो बारिश में भी,

कागज की नाव उदास है।

बीते पूरा दिन घर पर,

मानो उदासी में अवकाश है।

जाने कहाँ गए वो दिन।

उन सुनहरी यादों के रूप में,

कटता अब हर एक दिन,

कितना भी भुलाना चाहें,

ना भूल पाएँ वो बीते दिन।

जाने कहाँ गए वो दिन।

“रजत” चाहे, हो कोई चमत्कार,

और वापस आ जाए वो दिन,

अफसोस! समय के पहिये को,

थामना है नामुमकिन,

जाने कहाँ गए वो दिन।

रुपेश कुमार श्रीवास्तव “रजत”

बचपन

Poem On Bachchan In Hindi

बर्गर पिज्जा कभी न खाना

वादा बच्चों आज निभाना

बच्चे तो जिद करते लेकिन

जीवन का हर अर्थ बताना

नन्हें-मुन्ने बालक कोमल

इनका जीवन हमें सजाना

नैतिकता व्यवहार सिखाकर

बच्चों को गुणवान बनाना

नया जमाना आया है अब

कंप्यूटर भी इन्हें सिखाना

यह भविष्य हैं भारत मां के

पढ़ा-लिखा कर ज्ञान बढ़ाना

राजन का यह स्वप्न सुनहरा

बच्चों अपना दम दिखलाना.

राजकुमार जैन राजन

मेरा बचपन

Bachchan Par Kavita

कैसे बीता मेरा बचपन

कैसे मैं बतलाऊं

किस्से पर हंस मत देना

वरना मैं शरमा जाऊं

मैं अपने घर की छोटी बिटिया

गोल-गोल करती मैं बतिया

पापा की दुलारी मैं

उनके सह से अकड़ी मैं

बड़े भाइयों पर रौब जमाती

अपनी बात मनवा कर रहती

दीदी मेरी भोली-भाली

उनसे मैं थोड़ी-सी काली

नाक पर हरदम गुस्सा रखती

खुद को घर का बॉस समझती

पूरा दिन खेलती रहती

बॉल, लूडो छिपा कर रखती

स्कूटर की आवाज सुन कर

दिखावा करती किताब खोल कर

पापा मुझे काबिल समझते

भैया, दीदी चुपके से हंसते

कैसे बीता

बचपन को बक्से में बंद कर

बड़ा-सा ताला उसमें जड़ कर

चाभी अपने पास ही रखती

कभी-कभी मैं खोल कर देखती

कैसे बीता मेरा बचपन

कितना मैं बतलाऊं।

प्रतिभा सिंह

मेरा बचपन

Poem On Bachpan In Hindi

जितनी भी कीमत लगे सब बता दो।

मगर मेरा बचपन तुम मुझको दिला दो।

तैयार हूँ मैं देने को सब कुछ यहाँ।

मगर मेरे बचपन से मुझको मिला दो।

जितनी भी कीमत लगे सब बता दो।

छिपाऊँगा कुछ भी न हाथों में अपने।

बचाऊँगा कल के लिए भी नहीं कुछ।

जो है पास मेरे मैं सब दे सकूँगा।

मगर मेरा बचपन तुम मुझको दिला दो।

जितनी भी कीमत लगे सब बता दो।

भले धूल मिट्टी में हम थे सने।

भले पैसे भी थे नहीं जेब में।

मगर न कमी थी कहीं जिन्दगी में।

जिन्दगी के वो दिन तुम मुझको दिला दो।

जितनी भी कीमत लगे सब बता दो।

हो गये हों भले आज पैसे बहुत।

मगर आँख से नींद गायब हुई।

वो कश्ती चलाते थे मस्ती से जो।

वो कागज की कश्ती तुम मुझको दिला दो।

जितनी भी कीमत लगे सब बता दो।

होकर बड़ा धक गया हूँ बहुत।

अब ऊर्जा नहीं पास मेरे रही।

छोटा था तो ही मैं अच्छा रहा।

हो सके तो मुझे आज छोटा बना दो।

जितनी भी कीमत लगे सब बता दो।

अमलेन्दु शुक्ल

बचपन

Childhood Par Kavita

ऐ! मेरा बचपन तू दुबारा,

पंख लगा कर आ जाना।

मेरे खेल खिलौने सखियों की,

एक झलक दिखला जाना।

उन मीठी यादों में पल भर।

मैं खुश होकर जी लूंगी।

मधुर सुधा की शीतल बूंदों को।

मैं जी भर कर पी लूंगी।

पग कंटक लाख पड़े हैं।

तू कोमल पुष्प बिछा जाना।

मेरे खेल खिलौने सखियों की।

एक झलक दिखला जाना।

ऐ! मेरा बचपन तू दुबारा,

पंख लगा कर आ जाना।

पल में रूठना पल में मनना,

सुंदर सपन सलोना था।

मां का आंचल पिता का साया,

खुशियों से भरा हर कोना था।

जीवन अब तो तपती जेठ है,

तू शीतल पवन वहा आ जाना।

मेरे खेल खिलौने सखियों की,

एक झलक दिखला जाना।

ऐ! मेरा बचपन तू दुबारा,

पंख लगा कर आ जाना।

तुझसे मिलने को मैं हूं तरसती,

यह जानती हूं तू नहीं आता।

फिर भी झूठी आशा मन में,

दिल तुझसे मिलने को इतराता।

थक गई हूं अब चलते चलते,

तू बरगद तरु बन कर छा जाना।

मेरे खेल खिलौने सखियों की,

एक झलक दिखला जाना।

यह मेरा बचपन तो दोबारा,

पंख लगा कर आ जाना।

अनिता काला

बचपन नहीं दुबारा मिलना

Poem On Childhood In Hindi

दूब घास का बिछा बिछौना।

बच्चों के हैं पेड़ खिलौना।।

बाल मगन-मन दौड़ लगाते।

बचपन के दिन हमें लुभाते।।

बच्चों को हरियाली भाती।

बाल चपलता बहुत सुहाती।।

दौड़ लगाते बच्चे आते।

स्वस्थ-सिद्धि का पाठ पढ़ाते।।

लगे बालिका है निर्णायक।

भोरकाल की धूप सहायक।।

मुखमण्डल को धूप निखारे

बनो विजेता मौन पुकारे।।

छोटे-छोटे विधि के लेखे।

खड़े हुए दो बच्चे देखे।।

पिछड़ गये क्यों? उन लालों को।

देख रहे पीछे वालों को।

लक्ष्य-झोपड़ी छाने आओ।

तेज और तुम दौड़ लगाओ।।

सुन्दर पर्यावरण बना लो।

वृक्ष लगा लो वृक्ष लगा लो।।

आओ खेलें खेल पुराने।

आ जायें सम्बन्ध निभाने।।

खेलों में फूलों-सम खिलना।

बचपन नहीं दुबारा मिलना।।

दिलीप कुमार पाठक “सरस”

बचपन

Childhood Par Poem

प्यारा सा मन मेरा मचल मचल जाए

तितली के संग देखो उड़ा उड़ा जाए

रंगों के बीच छिपा है बदमाश

नटखट है वो पर बचपन मेरा है!

फूलों के बीच देखो कैसा खिला है

माँ की लोरी,पापा की है झिड़की

भैया से लड़ाई में नानी की है बात

छोटा समझ वो करती मुझे माफ !

माँ का दुलारा हूं,पापा का हूं प्यार

सभी करते मुझे ढ़ेर सा दुलार

चॉकलेट,आइसक्रीम,बिस्कुट की बहार

ये सब है मेरे अधिकार”

मस्ती में दिन बीते मेरे सारे यार

आंगन से दौड़ शुरू मैदान में खत्म

मस्ती के दिन मेरे मस्ती की रात

बच्चा हूं मैं,ये है असली बात।

दादी के घर जाता तोड़ लाता आम

लीची की डाली पे लटकती अपनी शाम

खोज खोज के तंग आते सभी

बगीचे में खेल कर,कई फल तोड़ कर

शरारत की हद तोड़कर

दादा की डांट जो खाते है हम

अम्मा की कसम

उनकी लाठी से डर जाते है हम!

मस्ती में खेल किया,मस्ती से खाई डाँट

वो मुड़े पीछे भाग निकले हम।

-राधा शैलेन्द्र

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