आलसी चिड़िया | Aalsi Chidiya Story In Hindi

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Aalsi Chidiya Story In Hindi :- सुंदरवन में सोनी चिड़िया अपने मम्मी पापा के साथ एक पेड़ पर रहती थी। वह अभी बहुत छोटी थी इसलिए मम्मी पापा उसे अपने साथ बाहर नहीं ले जाते थे। मम्मी पापा उसके लिए भोजन पानी का इंतजाम करते थे। धीरे-धीरे सोनी चिड़िया बड़ी हो गई और उड़ने भी लगी। वह खा पीकर रोज अपनी सहेलियों के घर उड़ कर पहुंच जाती और फिर वहां खूब गप्पें मारती या टीवी पर फिल्म देखती।

उसकी मां ने एक दिन उससे कहा, ‘बेटी, अब तुम बड़ी हो गई हो, तुम भी हमारे साथ अब भोजन पानी के लिए निकला करो।’ ‘मां, जब तुम लोग मेरे लिए भोजन पानी ले ही आते हो तो मैं क्या करूंगी जाकर’ वह बोली,।

मां ने समझाया, ‘बेटी, तुम हमारे साथ चलोगी, तभी तो तुम्हें पता चलेगा कि हम भोजन पानी कहां से लाते हैं। हमें कितनी मेहनत से भोजन पानी का इंतजाम करना पड़ता है। “मुझसे भोजन पानी के लिए मेहनत नहीं होगी मां,’ सोनी नखरे दिखाती हुई बोली, ‘मैं तो बस आराम से टीवी देखना चाहती हूं।

”टीवी देखने से तुम्हारा जीवन नहीं चलेगा बेटी, ‘मां ने एक बार फिर समझाने की कोशिश की, ‘इस तरह तो तुम आलसी बन जाओगी, तुम्हें पेट भरने के लिए दूसरों पर आश्रित रहना पड़ेगा।’ ‘दूसरों पर क्यों आश्रित रहना पड़ेगा, वह हैरानी से बोली, “क्या तुम दोनों मुझे छोड़ कर कहीं चले जाओगे?’ ‘बेटी, इस दुनिया में बूढ़ा होने पर एक न एक दिन सब को जाना पड़ता है सोचो, तब तुम्हारा क्या होगा।

“ओह मां, तुम भी कैसी बातें करती हो’ इतना कह कर वह अपनी मां से लिपट गई। मम्मी पापा के समझाने पर भी सोनी ने कभी मेहनत करके अपने लिए भोजन पानी जुटाने की कोशिश नहीं की। इस तरह धीरे-धीरे वह आलसी बन गई।

इसी बीच उसके मम्मी पापा चल बसे। उसके मम्मी पापा ने घर में थोड़े से अनाज जमा करके रखे थे। वह अनाज खाकर कुछ दिन अपना गुजारा करती रही। आखिर अनाज भी खत्म हो गया। एक दिन वह भूख से बेहाल थी लेकिन भोजन पानी के लिए कहीं जाना नहीं चाहती थी।

”सोचती थी कोई जान पहचान का मिल जाएगा तो उससे कुछ मांग लूंगी।”

तभी उधर से चंपू चूहा गुजरा। उसके सिर पर एक पोटली थी। पोटली देखकर सोनी ने सोचा, ‘कहीं उस पोटली में खाने पीने का सामान तो नहीं”

यह सोचकर उसने चंपू को आवाज दी, ‘अरे भाई सुनो सुनो, जरा रुको।’ उसकी आवाज सुनकर चंपू रुक गया। सोनी पेड़ से उतर कर नीचे आई और पूछा, ‘तुम्हारी इस पोटली में क्या है? ‘इसमें अनाज है। शहर ले जा रहा हूं बेचने ‘चंपू ने बताया।

”क्या तुम अनाज मुझे दोगे?” ‘हां हां, क्यों नहीं दूंगा, “चंपू बोला, “पैसे दोगी तो जरूर दूंगा।

उसके पास पैसे तो थे नहीं, फिर भी पूछा, ‘कितने पैसे लोगे? ‘पांच रुपये लूंगा।’ ‘5 रुपये, वह कुछ सोचकर बोली, ‘5 रुपये इस समय मेरे पास नहीं हैं। तुम अभी अनाज दे दो। रुपये मैं कल दे दूंगी। ‘नहीं, मैं उधार नहीं दूंगा।’ “देखो, मुझ पर दया करो, ‘वह गिड़गिड़ा कर बोली, ‘मैं बहुत भूखी हूं।

चंपू ने कुछ सोच कर कहा, ‘तुम भूखी हो तो मैं तुम्हें इसमें से 1 मुठ्ठी अनाज दे सकता हूं लेकिन बदले में तुम्हें अपने पंखों में से 1 पंख मुझे देना होगा। अगर मंजूर है तो बोलो।”

सोनी ने सोचा 1 पंख दे देने से मेरा क्या बिगड़ जाएगा। उसने तुरंत 1 पंख चोंच से खींचकर उसे दे दिया। बदले में चंपू ने उसे 1 मुठ्ठी अनाज दे दिया। एक मुट्ठी अनाज से सोनी का 2-3 दिन काम चल गया।

इसके बाद एक दिन फिर वह भूख से बेहाल किसी के आने का राह देख रही थी। तभी संयोग से चंपू चूहा फिर उधर से गुजरा। को देखकर सोनी ने राहत की सांस लेते हुए उसे आवाज दी। ‘लगता है आज तुम फिर भूखी हो। ‘हां, तुमने ठीक समझा। “अनाज चाहिए तो तुम्हें आज भी एक पंख देना होगा।

सोनी ने एक बार भी नहीं सोचा तुरंत एक पंख खींच कर उसे दे दिया। कुछ दिन बाद फिर वैसा ही हुआ, और फिर यह सिलसिला कुछ दिनों तक चलता ही रहा।

एक दिन ऐसा आया कि सोनी के शरीर पर एक भी पंख नहीं बचा। अब वह न तो उड़ सकती थी, न कहीं आ जा सकती थी। पंख नहीं रहने से वह बदसूरत भी दिखने लगी थी। वह अपनी हालत पर हर समय दुखी रहने लगी थी। कोई उससे सहानुभूति जताने भी नहीं आता था।

एक दिन वह पेड़ पर बैठी अपनी हालत पर आंसू बहा रही थी कि तभी एक सांप धीरे से पेड़ पर चढ़ गया। संयोग से उसी समय वहां चंपू चूहा पहुंच गया। उसने सांप को पेड़ पर चढ़ते देखा तो जोर से चीखा, ‘सोनी बचो, सांप तुम्हारे पीछे है।’ पर वह बचती कैसे। उसके तो पंख ही नहीं थे। वह अपना शरीर हिला-डुला भी नहीं पाई। तब तक सांप ने उसे दबोच लिया।

चंपू चूहा यह देखकर बहुत दुखी हुआ, ‘अगर यह आलसी न होती तो आज बेमौत न मरती। अपने आलस के कारण ही इसका यह नतीजा हुआ।” यह कहते हुए चंपू चूहा अपने रास्ते चल दिया। -by हेमंत यादव

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