संगति का असर | Sangati Ka Asar Story In Hindi

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by- प्रिया देवांगन

Sangati Ka Asar Story In Hindi :- बहुत पुरानी बात है. बोरसी नामक एक घना जंगल था. वन की दक्षिण दिशा में किरवई नदी बहती थी. नदी की काली-कच्छार भूमि से लगी एक बहुत बड़ी खुली जगह थी. उस जगह का नाम टीला था. वहाँ कई तरह के पक्षी रहते थे. इनमें एक कौए का परिवार था. उसके बच्चों के साथ एक कोयल का भी बच्चा था. उसका नाम था पीहू. उसे सब पीहूरानी कहकर बुलाते थे.

उस पीहू कोयल को पता ही नहीं था कि उसके माता-पिता कौन है. आखिर उसका बचपन कौए के बच्चों के साथ बिता था. पर अब वह वयस्क हो चुकी थी. उसके माता- पिता कौए के घोंसले में अंडा देकर चले गये थे. कौए के बच्चों के साथ पीह की परवरिश हुई थी. उसका खानपान, व्यवहार व रहन-सहन कौए जैसा था. यहाँ तक उसकी आवाज कर्कश हो गयी थी. अब तक वह अपनी जाति के पक्षी को देखा नहीं था.उसे तो अपनी ही आवाज अच्छी नहीं लगती थी.

अक्सर वह कौए के बच्चों से बतियाया करती थी कि उसे उसकी आवाज बिल्कूल भी पसंद नहीं है. बेसुरा लगता है. किसी से बात करने का तो मन ही नहीं करता. पीहू की आवाज काँव-काँव तो नहीं थी, पर कौए के बच्चों से मिलती जरूर थी. कभी – कभी वह गीत गाने का भी प्रयास करती थी, लेकिन कौए के बच्चों के साथ रहकर उसकी कोशिश रंग में भंग हो जाती थी.

एक दिन पीहू बहुत उदास थी. कौए के साथ रहने का उसका बिल्कुल मन नहीं कर रहा था. अचानक वह उड़ गयी वहाँ से. एक आम के बगीचे में जा पहुँची. फलों से लदे पेड़ देख कर उसका मन आनंदित हो उठा. प्रकृति के सौंदर्य को वह बार -बार निहारती रही. आम का बगीचा उसे स्वर्ग सा लगा. वह एक डाली से दूसरे डाली पर उड़-उड़ कर जाती थी, तो कभी पत्तियों में छिप जाती. ठंडी- ठंडी चलती पुरवाई उसे भा गयी.

इस तरह साझ होने लगी. जब सूरज ढलने लगा तो उसकी लालिमा आम के फलों में पड़ने लगी. आम और भी खूबसूरत दिखने लगे. पीहू को वहाँ से जाने का बिल्कुल मन ही नहीं हुआ. संध्या होते ही बगीचे में रहने वाले पक्षी आने लगे. उन पक्षियों में पीहू को अपनी जाति के पक्षी भी दिखाई देने लगे. उन्हें देख पीहू घबरा गयी कि वे उसे भगा न दे. वह तुरन्त पेड़ की पत्तियों में छिप गयी.

डालियों पर बैठी अन्य कोयल एक -दूसरे से जब बातें करती थी, तो पीहू को बहुत ही अच्छा लगता था. उनकी आवाज में बड़ी मिठास थी. उसने स्वयं को और उन्हें देखने लगी. वे रंग-रूप में अपने जैसे लगे. पीहू सोच में पड़ गयी कि वह तो कौए का बच्चा है. भला इनके साथ कैसे रह सकती है. वहाँ से वह उड़ने ही वाली थी कि अन्य कोयल उसे देख लिये; और अपने पास बुलाकर पूछने लगे- ” अरी. तुम कहाँ से आई हो. बहुत डरी हुई हो; और क्यों ? ”

पीहू के मुँह से जरा सी भी आवाज नहीं निकल पा रही थी. उसे अपने आप में शर्म महसूस हो रही थी कि दोनों की आवाज में कितना फर्क है. अगर मैं इनके सामने कुछ बोलूँगी तो सभी मेरा मजाक उड़ाएँगै. अंततः ऐसा ही हुआ. तभी एक कोयल पीहू से बोली- ” घबराओ मत. तुम कुछ तो बोलो.

तुम तो हमारी जाति की हो. बोलो.. बोलो… पीहू जैसे ही कुछ बोलने की कोशिश कर रही थी बाकी कोयल और उनके बच्चे हँसने लगे , क्योंकि पीहू की आवाज कर्कश थी. उन्हें हँसते देख पीहू को रोना आ गया. तभी एक कोयल ने उसके अँसू पोछते हुए बोली- ” इसमें तुम्हारी कोई गलती नहीं है. गलती तो हमारी है कि हम अपने घोंसले नहीं बनाते. कौए के घोसले में अंडे देते है, और तुम जैसे बच्चे हमारी इसी गलती की वजह से फँस जाते हैं.

तुम्हारी आवाज का कर्कश होना; तुम्हारा वहाँ रहना ही है, “पीहू सुबकते हुए बोली- ” अब मेरी आवाज आप लोगों की आवाज जैसी सूरीली व मीठी कैसे होगी, ” एक दुसरे कोयल ने कहा-” चिंता न करो पीहूरानी. अब से तुम हम सबके साथ रहोगी. तुम रोज मीठे-रसीले आम व अन्य मौसमी फल खाओगी. नदी व झरने का मीठा जल पियोगी. और ठंडे छायेदार वृक्षों में रहोगी; साथ ही साथ रोज गीत गाने की कोशिश करेगी तो तुम्हारी आवाज सुरीली व मीठी हो जायेगी.

फिर सब तुम्हें पसंद करेंगे.” उस दिन से पीहू कोयल रोज रसीले आम का आनंद लेने लगी. गाने का भी अभ्यास करने लगी. धीरे-धीरे उसकी आवाज सुरीली होने लगी. आवाज मिठास आ आने लगी. पीहू खुश हो गयी. वह सबको रोज गीत गा-गाकर कर सूनाने लगी. इस तरह पीहू कोयल को अपनी स्वयं की आवाज मिल गयी।

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