पृथ्वी दिवस प्रत्येक वर्ष 22अप्रैल को पूरे विश्व में मनाया जाता है। जिसमें दुनियां के 192 से अधिक देश भाग लेता है। इसमें सेमिनार होती है, पृथ्वी की दशा और दुर्दशा पर चर्चा होती है और रैलियां निकाली जाती है एवं कई प्रकार के संकल्प लिये जाते हैं। बड़े हर्ष की बात है कि आज मानव पृथ्वी दिवस के माध्यम से पृथ्वी के प्रति जागरूकता बढ़ा रहा है।
पृथ्वी समस्त प्राणियों का जीवन है और पृथ्वी हीं पालनहार है। पृथ्वी को बचाने का तात्पर्य मानव व समस्त प्रणियों को नष्ट होने से बचाना है। और मुझे लगता है मनुष्य को अपने अस्तित्व समाप्त होने का डर ने पृथ्वी के प्रति कुछ सोचने एवं करने को वाध्य किया है।
आज विश्व के अनेक जीवों की कई प्रजातियां विलुप्त हो चुकी है और कुछ विलुप्त होने के कागार पर है एवं यह क्रम चलता हीं जा रहा है। कहीं मिट्टी खराब हो रही है और कहीं पानी और हवा दोनो की कमी हो रही है। बड़े अफसोस के साथ कहना पड़ रहा हैं कि पृथ्वी और पर्यावरण की इस दूर्दशा प्रमुख कारण मानव की गतिविधियां एवं मानवीय जनसंख्या है।
आज पृथ्वी खतरे में है और पृथ्वी पर जीवन के चारों ओर पृथ्वी के विनाश के संकेत मिल रहे हैं। पृथ्वी दिवस, पर्यावरण दिवस जैसे कई मानवीय सम्मेलन लोगों को पृथ्वी के प्रति जागरूक कर रही है, लेकिन यह जमीनी स्तर पर भी दिखना चाहिए। पृथ्वी को बचाने के लिए केवल नियम नहीं, नियत भी चाहिए। पृथ्वी दिवस का उद्देश्य पर्यावरण सुरक्षा का समर्थंन है और यहां पर इससे संबंधित कई कविताएं लिखी है,जैसे कि पर्यावरण, प्रकृति, ग्लोबल वार्मिंग और प्रदुषण। इन्हें भी पढ़ें और आइए मिलजुल कर पृथ्वी बचायें, इसे साफ रखें एवं वृक्ष लगायें। धन्यवाद!!!

धरती माता
Poem On Earth Day In Hindi
यह धरती जीवनदायिनी,
कहलाती हम सबकी माता।
नदियाँ प्यास बुझाती सबकी,
कृषक है फसल उगाता।
विपुल खनिजों का भंडार यही,
जीव भी आश्रय पाता।
ऊँचे-ऊँचे पर्वत शिखर यहीं,
सुंदर उपवन मन लुभाता।
धरती माता कर रही पुकार,
संकट से मुझे उबार लो।
हुआ रूप विकृत मेरा अतिदोहन से,
पुनः मुझे सँवार लो।
है बहुत बातें करने वाले,
अब कुछ कोशिश भी कर लो।
सब मिल छोटे-छोटे प्रयासों से,
धरती माता को बचा लो।
-अनिता चन्द्राकर
वसुंधरा पुकारती
Poem On Earth Day In Hindi
वसुंधरा पुकारती,
अब मानव जाग जाओ,
वसुंधरा पुकारती।
जन्म से मृत्यु तक तुम्हें,
निस्वार्थ भाव से पालती।
वसुंधरा पुकारती,
अब मानव जाग जाओ,
वसुंधरा पुकारती।
मार्गदर्शन करती है और,
सदा ही तुमको सुधारती।
वसुंधरा पुकारती,
अब मानव जाग जाओ,
वसुंधरा पुकारती।
स्वयं कष्ट सहकर तुम्हारी,
रक्षा करती है और,
अपनी गोद में तुम्हें पालती।
वसुंधरा पुकारती
अब मानव जाग जाओ,
वसुंधरा पुकारती।
हरी-भरी वादियाँ अब उजड़ रही हैं,
अनुसंधान के बहाने तन को न छेदो।
वसुंधरा खोखली हो रही है,
वसुंधरा पुकारती,
अब मानव जाग जाओ,
वसुंधरा पुकारती।
बनाए रखना मेरी हरियाली,
देती रहूँगी तुम्हें खुशहाली।
मैं ही तुम्हारी जननी हूँ,
हूँ मैं ही तुम्हारा रक्षक।
क्यों बनते हो बिना समझे,
तुम बेटे ही भक्षक,
मेरे साथ व्यवहार करो सब अच्छा,
वसुंधरा अब तुम्हें गुहारती।
वसुंधरा पुकारती,
अब मानव जाग जाओ,
वसुंधरा पुकारती।
-वसुंधरा कुरै
पृथ्वी दिवस
Poem On Earth Day In Hindi
मैं हूँ सौरमंडल की सबसे सुंदर ग्रह,
जहां जीव जंतु का जीवन है संभव।
निवास करती है मुझ में अनगिनत प्रजातियां,
करती हूं मैं सभी प्रकार की पोषण की उपलब्धियां।
29 प्रतिशत भाग है मेरा भूमि,
71 प्रतिशत भाग है मेरा पानी।
हरे भरे मैदान, जंगल और पर्वत मालाएँ,
नदियाँ, समुंदर, बर्फ की चट्टानें मुझ में समाए।
दिया तुमको जल, हवा और अन्न,
यह शुद्ध पवन और स्वच्छ वातावरण।
सौदर्य से भरा हुआ अनुकूल पर्यावरण,
इसके बदले तुम क्यों फैला रहे मुझ में प्रदूषण?
मुझे कहते हो धरती मां और मदर अर्थ,
हर समय मुझ में असंतुलन बना कर, कर रहे हो अनर्थ,
मुझसे ही तो होता है तुम्हारा लालन पोषण,
तो फिर क्यों नहीं करते हो मेरा संरक्षण?
मुझ में है तुम सब का निवास,
स्वयं को और मुझे बचाने का करो प्रयास,
मुझे फिर से स्वच्छ और हरी भरी बनाओ,
जिम्मेदारी और जागरूकता को बढ़ाते जाओ।
-डाॅ. माध्वी बोरसे
धरती कहे पुकार के
Poem On Earth Day In Hindi
धरती कहे पुकार के,
अपनी हर संतान से।
तुम सब मेरी संतान हो,
रहो सदा प्यार से।
जीत लो दिल सबका,
प्रेम, आदर, सम्मान से।
मुक्त रखो सदा,
अपने मन को अभिमान से।
धरती कहे पुकार के,
अपनी हर संतान से।
जवाबदेही तय करो,
भागो मत कर्तव्य से।
जो भी कर्म करो,
करो सदा सही मंतव्य से।
बात को समझा करो,
तर्क, ज्ञान, विज्ञान से।
धरती कहे पुकार के,
अपनी हर संतान से।
चाटुकारी करना नहीं,
जीना सदा स्वाभिमान से।
धर्म पूर्वक सभी,
कर्म करो नम्र भाव से।
मुक्ति पा लोगे तुम,
जीवन में सभी अभाव से।
धरती कहे पुकार के,
अपनी हर संतान से।
कर दो मुझे हरा भरा,
अपने लगन परिश्रम से।
मैला ना करो उसे,
प्यास बुझती है जिस जल से।
दम घुटने ना पाए,
भविष्य का दूषित पवन से।
धरती कहे पुकार के,
अपनी हर संतान से।
बचाओ मेरे कोख को,
पोषण पाया तुमने जिससे।
छलनी ना करो सीने को मेरे,
युद्ध, बम, बारूद से।
अमन, प्रेम, भाईचारे का,
करो प्रचार शुद्ध मन से।
धरती कहे पुकार के,
अपनी हर संतान से।
माँ हूं मैं, मुझे लाल ना करो,
एक दूजे के रक्त से।
कुछ तो सबक लो मेरे बच्चों,
गुजरे हुए विनाश से।
खिलवाड़ ना करो तुम,
अपने बच्चों के भविष्य से।
-लोकेश्वरी कश्यप
पृथ्वी
Poem On Earth Day In Hindi
थाली जैसी अपनी धरती,
सूरज का चक्कर लगाती।
एक चाँद, कई हैं तारे,
लगते हमको बहुत प्यारे।
आओ तुम्हें बताऊँ बात,
कैसे होती दिन और रात।
पृथ्वी धूरी पर घूमा करती,
ऐसे ही दिन व रात बनती।
जिधर सूर्य रोशनी पड़ती,
मानों उधर दिन है चढ़ती।
सब कहते हैं यही बात,
शेष जगहों में होती रात।
-सुशीला साहू
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