In this articles, you will find Top 15+ beautiful Poem On Subhash Chandra Bose In Hindi. हम यहां पर सुभाषचन्द्र बोस जी पर बहुत ही सुन्दर कविताएं आपके साथ साझा कर रहा हूं। इन कविताओं को अपने दोस्तों के साथ अवश्य शेयर करें।
खूनी हस्ताक्षर
Poem On Subhash Chandra Bose In Hindi
वह खून कहो किस मतलब का
जिसमें उबाल का नाम नहीं।
वह खून कहो किस मतलब का
आ सके देश के काम नहीं।
वह खून कहो किस मतलब का
जिसमें जीवन, न रवानी है।
जो परवश होकर बहता है,
वह खून नहीं, पानी है।
उस दिन लोगों ने सही-सही
खून की कीमत पहचानी थी।
जिस दिन सुभाष ने बर्मा में
माँगी उनसे कुरबानी थी।
बोले, स्वतंत्रता की खातिर
बलिदान तुम्हें करना होगा।
तुम बहुत जी चुके जग में,
लेकिन आगे मरना होगा।
आज़ादी के चरण में जो,
जयमाल चढ़ाई जाएगी।
वह सुनो, तुम्हारे शीशों के
फूलों से गूंथी जाएगी।
आजादी का संग्राम कहीं
पैसे पर खेला जाता है?
यह शीश कटाने का सौदा
नंगे सर झेला जाता है।
यूँ कहते-कहते वक्ता की
आंखों में खून उतर आया।
मुख रक्त-वर्ण हो दमक उठा
दमकी उनकी रक्तिम काया।
आजानु-बाहु ऊँची करके,
वे बोले, रक्त मुझे देना।
इसके बदले भारत की
आज़ादी तुम मुझसे लेना।
हो गई सभा में उथल-पुथल,
सीने में दिल न समाते थे।
स्वर इनकलाब के नारों के
कोसों तक छाए जाते थे।
हम देंगे-देंगे खून
शब्द बस यही सुनाई देते थे।
रण में जाने को युवक खड़े
तैयार दिखाई देते थे।
बोले सुभाष, इस तरह नहीं,
बातों से मतलब सरता है।
लो, यह कागज़, है कौन यहाँ
आकर हस्ताक्षर करता है?
इसको भरनेवाले जन को
सर्वस्व-समर्पण काना है।
अपना तन-मन-धन-जन-जीवन
माता को अर्पण करना है।
पर यह साधारण पत्र नहीं,
आज़ादी का परवाना है।
इस पर तुमको अपने तन का
कुछ उज्जवल रक्त गिराना है।
वह आगे आए जिसके तन में
खून भारतीय बहता हो।
वह आगे आए जो अपने को
हिंदुस्तानी कहता हो।
वह आगे आए, जो इस पर
खूनी हस्ताक्षर करता हो।
मैं कफ़न बढ़ाता हूँ, आए
जो इसको हँसकर लेता हो।
सारी जनता हुंकार उठी-
हम आते हैं, हम आते हैं।
माता के चरणों में यह लो,
हम अपना रक्त चढाते हैं।
साहस से बढ़े युबक उस दिन,
देखा, बढ़ते ही आते थे।
चाकू-छुरी कटारियों से,
वे अपना रक्त गिराते थे।
फिर उस रक्त की स्याही में,
वे अपनी कलम डुबाते थे।
आज़ादी के परवाने पर
हस्ताक्षर करते जाते थे।
उस दिन तारों ने देखा था
हिंदुस्तानी विश्वास नया।
जब लिखा महा रणवीरों ने
खून से अपना इतिहास नया।
-गोपाल दास व्यास
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नेताजी का नाम अमर
Poem On Subhash Chandra Bose
नेताजी का नाम अमर,
किया देश के लिए समर।
क्रांति की आवाज उठाई,
आजादी की राह दिखाई।
लेकर हाथ तिरंगा प्यारा,
लगाया था जय-हिन्द का नारा।
जनगण को आह्वान किया,
दिल्ली चलो ऐलान किया।
देश को हम स्वाधीन करेंगे,
फिरंगियों से नहीं डरेंगे।
नवयुवकों में जोश जगाया,
अंग्रेजों को दूर भगाया।
-राजन श्रीवास्तव
नेताजी सुभाष चंद्र बोस
Poem On Subhash Chandra Bose
तेईस जनवरी सन अट्ठारह सौ सत्तानवे,
पावन नगर कटक उड़ीसा धाम।
प्रभावती-जानकीनाथ बोस के घर,
जन्मा एक वीर इंसान।
सुभाष चंद्र बोस था उसका नाम।
पांच वर्ष में शुरू की शिक्षा,
पढ़-लिख बना महान,
पढ़ने-लिखने में लगाता मन सदा।
कभी करता न अभिमान,
सुभाष चंद्र बोस था उसका नाम।
सम्मान सहित उत्तीर्ण कर स्नातक,
परीक्षा आई.सी.एस. में कर दिया कमाल।
संकल्प ले मातृभूमि सेवा का,
आई.सी.एस.पद दिया था त्याग।
आजाद हिंद फौज का गठन कर,
किया था बहुत बड़ा काम।
सुभाष चंद्र बोस था उसका नाम।
तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आजादी दूंगा,
जन-जन को दिया था ये पैगाम,
सुभाष चंद्र बोस था उसका नाम।
मातृभूमि की आजादी के खातिर,
सर्वस्व कर दिया था कुर्बान,
सुभाष चंद्र बोस था उसका नाम।
कहते हैं विमान दुर्घटना में,
नेताजी त्यागे थे अपना प्राण।
पर इस अनबूझ पहेली का,
आज तक मिला न कोई प्रमाण।
अगाध मातृभूमि प्रेम के खातिर,
इतिहास में लिखा है जिसका नाम।
भारत मां के वीर सपूत को,
मेरा शत-शत प्रणाम।
-सुनील कुमार
दयालु बालक
Poem On Subhash Chandra
माँ ने देखा, उस कमरे में,
बालक जहाँ पढ़ा करता है।
अलमारी थी किताब की,
चींटी उससे निकल रहीं हैं।
दो रोटी जो वही पड़ीं थी,
बेटा आया विद्यालय से।
माँ ने पूछा- ये रोटियाँ कहाँ से आई?
प्रश्न सुना, बालक शरमाया।
बार-बार पूछे जाने पर,
कहा कि माँ, भोजन से रोटियाँ बचाकर।
दो रोटी प्रतिदिन देता, भिक्षुक बुढिया को,
कल वह आई नहीं।
इसी से अलमारी में रखी हुई हैं,
हर्षित माँ ने गोद उठाकर गले लगाया।
अन्य न कोई बालक था,
नेता सुभाष थे।
-रूपसिंह
सुभाष चन्द्र बोस
Poem On Subhash Chandra Bose In Hindi
23 जनवरी 1897 को जन्मे कोलकाता।
देश के बच्चे बच्चे को नाम खूब है भाता।
मां प्रभावती देवी पिता जानकीनाथ बोस।
अविस्मरणीय व्यक्तित्व था भरा खूब जोश।
साहस वीरता निडरता भरी ललकार।
अंग्रेज डर जाते सुनके आप की हुंकार।
तुम मुझे खून दो, मैं तुझे दूगा आजादी।
वरना ये फिरंगी, देश का करेंगे बर्बादी।
उन्नीस सौ अड़तीस में थे कांग्रेसाध्यक्ष।
विरोधी खेमे देख के बौखलाया प्रत्यक्ष।
पांच जुलाई, उन्नीस सौ था तिरालिस।
सिंगापुर की धरती से उद्घोष निखालिस।
“दिल्ली चलों” मेरा वतन, तुझे पुकारा।
आजादी के लिए, उन्होंने लगाया नारा।
सन् तिरालीस में बनाये अस्थाई सत्ता।
सुभाष के नाम से कापे अंग्रेजी पता।
छः जुलाई चौवालीस को गये रंगून।
रेडियो स्टेशन की घोषणा से, सगुन।
राष्ट्रपिता महात्मा गांधी, दो आशीर्वाद।
भारत भूमि से अंग्रेजों को करू बर्बाद।
वतन की पुकार सुनों, हे भारत के शेर।
फिरंगियों को मार भगाओ, न करों देर।
लोकप्रियता से, नेताजी था उपनाम।
देश की आजादी के लिए किये थे काम।
“जय हिंद” नेताजी का ही था उद्घोष।
आज भी कह कर, करते है जयघोष।
आज उनकी जयंती पर करती शत शत नमन।
हृदय पुष्प अर्पित करके करती हूं उनका वंदन।
-गीता पाण्डेय
हैं सुभाष चन्द्र बोस अमर
Subhash Chandra Bose Par Kavita In Hindi
परमवीर निर्भीक निडर,
पूजा जिनकी होती घर घर,
भारत मां के सच्चे सपूत,
हैं सुभाष चन्द्र बोस अमर।
सन अट्ठारह सौ सत्तानवे,
नेता जी महान थे जन्मे,
कटक ओडिशा की धरती पर,
तेईस जनवरी की शुभ बेला में।
देशभक्तों के देशभक्त,
दूरंदेश थे अति शशक्त,
नारा जय हिन्द का देकर बोले,
आजादी दूंगा तुम देना रक्त।
आजादी की लड़ी लड़ाई,
आजाद हिन्द फ़ौज बनाई,
जन जन को आगे ले आए,
तरुणाई को दिशा दिखाई।
अन्याय कभी न सहना है,
सुलह न उससे करना है,
अपराध है ऐसा कुछ करना,
नेता जी का यह कहना है।
-हरजीत निषाद
सुभाष बोस का वंदन
Subhash Chandra Bose Par Kavita In Hindi
एक सौ पच्चीसी जन्म जयंती पर
सुभाष बोस को नमन।
पराक्रम दिवस के रूप में,
राष्ट्र कर रहा महापुरुष का वंदन।।
कटक में जन्मे सुभाष की,
कोलकाता कर्मभूमि रही।
उच्च शिक्षा के साथ देश सेवा की,
भावना बलवती बड़ी।।
‘स्वराज पार्टी’ और ‘आज़ाद
हिंद फौज’ का किया गठन।
‘तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें
आजादी दूंगा’ का था आव्हान।।
‘जय हिंद’ नारों के साथ,
युवा तैयार हुए हर कुर्बानी को।
उच्च आदर्शों सहित अंग्रजों से,
संघर्ष की कहानी को।।
मातृभूमि हित प्राणोत्सर्ग करने पर,
याद रखेगा हिंदुस्तान।
हर भारतवासी के प्रेरणास्रोत हैं,
अपने नेताजी महान।।
-संजय गुप्त
क्रांतिकारी छात्र सुभाष
Poem On Subhash Chandra Bose In Hindi
शट अप ब्लैक हिन्दोस्तानी, कहकर उसने झकझोरा।
कालर पकड़े डैम डाग वक्ता था बालक गोरा।।
सहम गया बिल्कुल बेचारा, उस गुस्से से डर कर।
लज्जित हो, नीची आँखे कर, काँप रहा था थर-थर।।
रोब देख गोरे का, कक्षा में सन्नाटा छाया।
रक्षा में भारतीय छात्र के, एक न आगे आया।।
किन्तु पास बैठे साथी की, फड़क रही थी बाँहैं।
ओठ काटता था, गुस्से से लोहित हुई निगाहें।।
चुप्पी देख सभी की, गोरा अधिक बिगड़ता जाता।
साथी की बदले की ज्वाला, और रहा भड़काता।।
कुछ ही क्षण में अध्यापक जी, उस कक्षा में आये।
किसी तरह वह बैठा था, सीने में आग दबाये।।
आज न लिखना पढ़ना था, कुछ उसे समझ में आता।
“डेम-डाग” का शब्द कान में, बार-बार टकराता।।
सोच रहा था-गोरों का, कब तक अपमान सहेंगे।
कब तक हम सब भारतवासी बुजदिल, मौन रहेंगे।।
घन्टा बीता किसी तरह, कक्षा से बाहर आया।
अपमानित उस सहपाठी को,अपने पास बुलाया।।
बोला-“मुझे न मालूम था, तुम होंगे इतने कायर।
क्यों न पकड़कर उसे रख दिया,फौरन यही मसलकर।।
मेरे साथ अगर उसने, की होती इतनी हिम्मत।
माँ दुर्गा की शपथ वहीं, कर देता मैं क्षत-विक्षत।।
रोकर बालक बोला- “क्या मैं वहाँ अकेला करता।
कोई साथ न देगा मेरा, यही रहा मैं डरता।”
“भाई मेरे! एक अकेला भी कर सकता सर्वस।
दृढ़ संकल्प सहित यदि, रखता अपने मन में साहस।।
अब तक जो कुछ हुआ, न उस पर घबराओ, पछताओ।
“आगे क्या मैं अब करता हूँ, इसे देखते जाओ।”
लेकिन भइया! डरते बालक, के मुँह से निकला स्वर।
“उस गोरे का बाप शहर में, बहुत बड़ा है अफसर।।”
“कितना भी हो बड़ा किन्तु वह तो भगवान नहीं है।
नहीं सभ्यता आती जिसको, वह इंसान नहीं है।।
अंग्रेजियत बड़प्पन का है, उसे नशा चढ़ आया।
बड़े बाप का बेटा बन कर फिरता है इतराया।।
जो भी उसने किया नहीं हम उसको माफ करेंगे।
कैसा हो परिणाम किन्तु हम तो इंसाफ करेंगे।”
बालक बोला- “धन्यवाद है आप सत्य कहते हैं।
बुजदिल मुर्दा है वे जो चुपचाप जुल्म सहते हैं।
इसी हमारी कमजोरी को गोरों ने पहचाना।
सौदागर से शासक बन, कर रहे जुल्म मनमाना।।
“अच्छा अब छुट्टी होने पर तुम मेरे सँग रहना।
और बताता हूँ जैसा बस वही मानना कहना।।
गोरे दुष्ट हमारी इज्जत से ये खेल रहे हैं।
हम सब मूक बने अत्याचारों को झेल रहे हैं।”
घुमड़ रहे ये भाग तभी, छुट्टी की घंटी बोली।
शोर मचाते कक्षा से बच्चों की निकली टोली।।
गोरा सब कुछ और निकलकर दूर अकेले आया।
साथी ने आ पास लगाकर, टॅंगड़ी उसे गिराया।।
टाई खींची भटक पैर से, दिया जोर का धक्का।
अब गोरे की सिट्टी-पिट्टी गुम था हक्का-बक्का।।
“अब दुष्ट बदमाश बिदेशी, बना घूमता राजा।
हिम्मत हो तो अभी सामने, मुझसे भिड़ ले आजा।।
बोल हमारे साथी का क्यों कर अपमान किया है।
सुन ले अंगारों का तूने न्यौता आज दिया है।
आइन्दा यदि किसी छात्र से दुर्व्यवहार करेगा।
इतना रखना याद, किसी कुते की मौत मरेगा।।”
तब तक लड़के बहुत दौड़कर घटना स्थल पर आए।
यह रोमांचक दृश्य देख, आश्चर्य चकित घबराये।।
कालर पकड़ बीर बालक ने, उसको पुनः उठाया।
और पैर की तगड़ी ठोकर देकर उसे भगाया।।
जिसमें साहस, जोश, वीरता की थी भरी उमंगें।
भारत माँ की आजादी की मचली प्रबल तरंगें।।
“मुझे खून दो मैं आजादी दूंगा”- जिसका नारा।
बचपन का यह वीर छात्र नेता सुभाष था प्यारा।।
-रामकुमार गुप्त
नेताजी सुभाषचंद्र बोस
Subhash Chandra Bose Par Kavita In Hindi
नेताजी सुभाष जब चलें खाकी पहने तो,
राष्ट्र ध्वज लहरा के जयहिंद गाता था।
हिंद देश के समक्ष शीश नवाते थे सदा,
तन-मन राष्ट्र हित गीत गोहराता था।
गोरों के विरूद्ध लड़े स्वाभिमानी कहलाए,
बोस जी का साहस ही जोश बन जाता था।
भानु के समान था ललाट पर तेज और,
आजाद हिन्द फौज संस्थापक कहाता था।
-सरिता चौहान
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