17+ भारत के स्वतंत्रता सेनानियों पर सुंदर कविता | Poem On Freedom Fighters In Hindi

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poem on freedom fighters in hindi :-

 

Poem On Freedom Fighters In Hindi

 

खूनी हस्ताक्षर

Poem On Freedom Fighters Bose In Hindi

 

वह खून कहो किस मतलब का,

जिसमें उबाल का नाम नहीं।

वह खून कहो किस मतलब का,

आ सके देश के काम नहीं।

 

वह खून कहो किस मतलब का,

जिसमें जीवन, न रवानी है।

जो परवश होकर बहता है,

वह खून नहीं, पानी है।

 

उस दिन लोगों ने सही-सही,

खून की कीमत पहचानी थी।

जिस दिन सुभाष ने बर्मा में,

माँगी उनसे कुरबानी थी।

 

बोले, स्वतंत्रता की खातिर,

बलिदान तुम्हें करना होगा।

तुम बहुत जी चुके जग में,

लेकिन आगे मरना होगा।

 

आज़ादी के चरण में जो,

जयमाल चढ़ाई जाएगी।

वह सुनो, तुम्हारे शीशों के,

फूलों से गूंथी जाएगी।

 

आजादी का संग्राम कहीं,

पैसे पर खेला जाता है?

यह शीश कटाने का सौदा,

नंगे सर झेला जाता है।

 

यूँ कहते-कहते वक्ता की,

आंखों में खून उतर आया।

मुख रक्त-वर्ण हो दमक उठा,

दमकी उनकी रक्तिम काया।

 

आजानु-बाहु ऊँची करके,

वे बोले, रक्त मुझे देना।

इसके बदले भारत की,

आज़ादी तुम मुझसे लेना।

 

हो गई सभा में उथल-पुथल,

सीने में दिल न समाते थे।

स्वर इंकलाब के नारों के,

कोसों तक छाए जाते थे।

 

हम देंगे-देंगे खून,

शब्द बस यही सुनाई देते थे।

रण में जाने को युवक खड़े,

तैयार दिखाई देते थे।

 

बोले सुभाष, इस तरह नहीं,

बातों से मतलब सरता है।

लो, यह कागज़, है कौन यहाँ,

आकर हस्ताक्षर करता है?

 

इसको भरनेवाले जन को,

सर्वस्व-समर्पण काना है।

अपना तन-मन-धन-जन-जीवन,

माता को अर्पण करना है।

 

पर यह साधारण पत्र नहीं,

आज़ादी का परवाना है।

इस पर तुमको अपने तन का,

कुछ उज्जवल रक्त गिराना है।

 

वह आगे आए जिसके तन में,

खून भारतीय बहता हो।

वह आगे आए जो अपने को,

हिंदुस्तानी कहता हो।

 

वह आगे आए, जो इस पर,

खूनी हस्ताक्षर करता हो।

मैं कफ़न बढ़ाता हूँ, आए,

जो इसको हँसकर लेता हो।

 

सारी जनता हुंकार उठी-

हम आते हैं, हम आते हैं।

माता के चरणों में यह लो,

हम अपना रक्त चढाते हैं।

 

साहस से बढ़े युबक उस दिन,

देखा, बढ़ते ही आते थे।

चाकू-छुरी कटारियों से,

वे अपना रक्त गिराते थे।

 

फिर उस रक्त की स्याही में,

वे अपनी कलम डुबाते थे।

आज़ादी के परवाने पर,

हस्ताक्षर करते जाते थे।

 

उस दिन तारों ने देखा था,

हिंदुस्तानी विश्वास नया।

जब लिखा महा रणवीरों ने,

खून से अपना इतिहास नया।

-गोपाल दास व्यास

 

शेरे हिन्दुस्तान

Poem On Freedom Fighters In Hindi

 

अलीराजपुर मध्यप्रदेश का

ग्राम एक भाबरा,

23 जुलाई 1906 मे जन्मा

आजादी का बावरा।

 

आजाद हैं हम, आजाद रहेगें, नारा यह लगाया।

सारे हिन्दुस्तान मे, चंद्रशेखर ‘आजाद’ कहलाया।

जगह-जगह पर घूम-घूम कर,

क्रांति का फिर बिगुल फूंककर।

 

डोलाया अंग्रेजों का शासन,

थर्राया अंग्रेज प्रशासन।

27 फरवरी 1931 के दिन,

आजादी का वह दीवाना।

 

इलाहाबाद, अल्फ्रेड पार्क में,

लिये अपनी पिस्तौल हाथ में।

अंग्रेजों से लड़ता रहा शेर,

बहादुरी से किये कई अंग्रेज ढेर।

 

हर्ष से किया न्यौछावर खुद को,

आजादी का अर्थ सिखाया सबको।

नमन क्रांति के उस वीर को।

गर्व है उस सपूत पर हम को।

-डॉ. अखिलेश शर्मा

 

नमन चंद्रशेखर

Poem On Freedom Fighters In Hindi

 

दिव्य चेहरा, मूंछों पर ताव

कांधे जनेऊ, रौवीले भाव

कहने में कम करने में विश्वास

पिस्टल की भाषा आती थी रास

आजाद हूँ में शत्रु को जताया

जब तक रहे प्रण को निभाया

नमन चंद्रशेखर वंदन चंद्रशेखर

ऋणी देश सारा स्मरण चंद्रशेखर

-व्यग्र पाण्डे

 

निडर थे भगत सिंह

Poem On Freedom Fighters In Hindi

 

हँसते हँसते शूली पर चढ़ने वाले,

नज़र नहीं आते अब वैसे मतवाले।

स्वतंत्रता संग्राम के सच्चे सेनानी,

भगत सिंह थे फौलादी सीने वाले।

फिरंगियों से ऐसा जम कर युद्ध हुआ,

राजगुरु सुखदेव का सच्चा संग हुआ।

संसद में बम फेंक डरे न भागे वो,

देख वीरता उनकी दुश्मन दंग हुआ।

खुला किया विद्रोह ब्रिटिश साम्राज्य हिला,

आजादी की घुट्टी सबको दिया पिला।

युवकों के आदर्श निडर थे भगत सिंह,

सांडर्स को मारा गोरों को सबक मिला।

देश है अब आजाद स्वतंत्रता दिवस मनाएं,

वीर शहीदों को पर न कभी भुलाएं।

कायम रखना आजादी को हर कीमत पर,

प्रण कर लें जीवन भर ऐसा हम कर पायें।

-हरजीत निषाद

 

शहीद भगत सिंह

Poem On Freedom Fighters In Hindi

 

सुनो जम्बू के वीर लाल,

गाथा वर्णन एक भरत बाल।

रग-रग में जिसके इंकलाब,

जीवन जैसे क्रांति मशाल।

जननी जिसकी विद्यावती,

पिता सरदार किशन सिंह।

जन्मे 1907 में,

नाम पाया भगत सिंह।

बारह बरस में देख रक्तपात,

अपने ही परिवार का।

ठाना भगत ने लूँगा प्रतिशोध,

जलियाँवाला बाग का।

त्याग कर लड़कपन की अठखेलियाँ,

पोथी शुर-वीरों की पढ़ने लगा।

काटकर परतंत्रता की बेड़ियाँ,

आज़ादी का स्वप्न गढ़ने लगा।

पगड़ी बाँध, भर जोश हृदय में,

नौजवान काफिला उसने बनाया।

निराश हो चौरा-चौरी कांड से,

सशस्त्र क्रांति का मार्ग अपनाया।

क्षुब्ध हो लाला जी की हत्या से,

की प्रतिशोध की जंग शुरु।

संगठित किया क्रांति वीरों को,

प्रमुख जिनमें चंद्रशेखर और राजगुरु।

फेका बम असेम्बली में उस स्थान,

जहाँ न खड़ा था कोई इंसान।

जो स्वार्थ में बिक जाये वो देशभक्त नहीं,

जो डरकर भाग जाये ऐसा भगत सिंह नहीं।

कहकर बटुकेश्वर संग अपने पैर जमा दिए,

और इंकलाब जिंदाबाद, इंकलाब जिंदाबाद,

उद्धोष संग सारे पर्चे उड़ा दिए।

फिर आयी शाम तेईस की,

मार्च का था महीना।

सीने में भरकर जोश जोशीला,

चले जवान पहन बसंती चोला।

मौत का न था डर उनको,

भारतभूमि शीश चढ़ाने बढ़े चले।

फाँसी के फंदे को गले लगाने,

वतन के शहीदे आजम बढ़े चले।

-समीक्षा गायकवाड़

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